SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 213
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १५६ ] गणितसारसंग्रहः अत्रोद्देशकः वैश्यैखिभिः परस्परहस्तगतं याचितं धनं प्रथमः । चत्वार्यथ द्वितीयं पञ्च तृतीयं नरं प्राथ्यं ॥ २५३३ ।। द्विगुणोऽभवद्वितीयः प्रथमं चत्वारि षट् तृतीयमगात् । त्रिगुणं तृतीयपुरुषः प्रथमं पञ्च द्वितीयं च ॥ २५४३ ॥ षट प्रार्थ्याभूत्पश्चकगुणः स्वहस्तस्थितानि कानि स्युः। कथयाशु चित्रकुट्टीमिश्रं जानासि यदि गणक ।। २५५३ ।। पुरुषास्त्रयोऽतिकुशलाश्चान्योन्यं याचितं धनं प्रथमः । स द्वादश द्वितीयं त्रयोदश प्राथ्य तत्रिगुणः ।। २५६३ ।। प्रथमं दश त्रयोदश तृतीयमभ्ययं च द्वितीयोऽभूत । पञ्चगुणितो द्वितीयं द्वादश दश याचयित्वाद्यम् ॥ २५७३ ।। सप्तगुणितस्तृतीयोऽभवन्नरो वाञ्छितानि लब्धानि । कथय सखे विगणय्य च तेषां हस्तस्थितानि कानि स्युः ।। २५८३ ।। अन्त्यस्योपान्त्यतुल्यधनं दत्त्वा समधनानयनसूत्रम्वाञ्छाभक्तं रूपं स उपान्त्यगुणः सरूपसंयुक्तः। शेषाणां गुणकारः सैकोऽन्त्यः करणमेतत्स्यात् ।। २५९३ ।। उदाहरणार्थ प्रश्न तीन व्यापारियों ने एक दूसरे से उनके पास की रकमों में से रकमें मांगी। पहिला व्यापारी दूसरे से ४ और तीसरे से ५ माँगकर शेष के कुल धन से दुगुना धन वाला बन गया । दूसरा पहिले से ४ और तीसरे से ६ मांग कर शेष के कुल धन से तिगुना धनवाला बन गया। तीसरा पहिले से ५ और दूसरे से ६ मांग कर उन दोनों से पाँचगुना धनवाला बन गया। हे गणितज्ञ, यदि तुम विचित्र कुट्टीकार विधि से परिचित हो, तो मुझे शीघ्र ही उनके हाथों की रकमें बतलाओ ॥२५३१-२५५९॥ तीन अतिकुशल पुरुष थे। उन्होंने एक दूसरे से रकमें मांगी। पहिला पुरुष दूसरे से १२ और तीसरे से १३ लेकर उन दोनों से ३ गुना धनवाला बन गया। दूसरा पहिले से १० और तीसरे से १३ लेकर शेष दोनों से ५ गुना धनवाला बन गया तीसरा दूसरे से १२ और पहिले से १० लेकर शेष दोनों से ७ गुना धनवाला बन गया। उनकी वाच्छाएं पूर्ण हो गई। हे मित्र! गणना कर उनके हाथों की रकमों को बतलाओ ॥२५६३-२५८॥ समान धन राशियों को निकालने के लिये नियम.जब कि अन्तिम मनुष्य अपने खुद के धन में से उपअन्तिम को उसी के धन के बराबर दे देता है। और फिर, यह उपांतिम मनुष्य बाद में आनेवाले मनुष्य के सम्बन्ध में यही करता है, इत्यादि ____एक के द्वारा दूसरे को दिये जानेवाले धन के सम्बन्ध में मन से चुनी हुई गुणज ( multiple ) राशि द्वारा १ को विभाजित करो। यह उपअंतिम मनुष्य के धन के सम्बन्ध में गुणज हो जाता है। यह गुणज एक द्वारा बढ़ाया जाकर दूसरे के हस्तगत धनों का गुणज बन जाता है । इस अन्तिम व्यक्ति के इस प्रकार प्राप्त धन में १ जोड़ा जाता है । यही रीति उपयोग में लाई जाती है ॥२५९॥ ( २५९३ ) गाथा २६३३ के प्रश्न को निम्नलिखित रीति से हल करने पर यह नियम स्पष्ट हो
SR No.090174
Book TitleGanitsara Sangrah
Original Sutra AuthorMahaviracharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain, L C Jain
PublisherJain Sanskriti Samrakshak Sangh
Publication Year1963
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, & Maths
File Size35 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy