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________________ गणितसारसंग्रहः अत्रोदेशकः पथि पथिकाभ्यां पोट्टलकं दृष्टमाह तत्रैकः । अस्य संप्राप्य द्विगुणधनोऽहं भविष्यामि ॥ २४२ ॥ अपरस्त्र्यंशद्वितयं त्रिगुणधनस्त्वत्करस्थधनात् । मकरधनेन सहितं हस्तगतं किं च पोट्टलकम् ।। २४३ ।। दृष्टं पथि पथिकाय पोट्टलकं तद्गृहीत्वा च । द्विगुणमभूदाद्यस्तु स्वकरस्थधनेन चान्यस्य ॥ हस्तस्थधनादन्यस्त्रिगुणं किं करगतं च पोट्टलकम् ॥ २४४ ॥ मार्गे नरैश्चतुर्भिः पोट्टलकं दृष्टमाह तत्राद्यः । पोट्टकमिदं लब्ध्वा ह्यष्टगुणोऽहं भविष्यामि ॥ २४५३ ॥ स्वकरस्थधनेनान्यो नवसंगुणितं च शेषधनात् । दश गुणधनवानपरस्त्वेकादशगुणितधनवान् स्यात् । पोट्टलकं किं करगतधनं कियद् ब्रूहि गणकाशु || २४७ ।। मार्गे नरैः पोट्टलकं चतुर्भिर्दृष्टं हि तस्यैव तदा बभूवुः । पञ्चांशपादार्धतृतीयभागास्तद्वित्रिपञ्चन्नचतुर्गेणाश्च' ।। २४८ ।। १. M और B में स्युः पाठ है, जो स्पष्टरूप से अनुपयुक्त है । १५४] [ ६. २४२ उदाहरणार्थ प्रश्न दो यात्रियों ने सड़क पर धन से भरी हुई थैली देखी। उनमें से एक ने दूसरे से कहा, "थैली की आधी रकम प्राप्त होने पर मै तुमसे दुगुना धनी हो जाऊँगा ।" दूसरे ने कहा, "इस थैली की २/३ रकम मिल जाने पर मैं हाथ की रकम मिलाकर तुम्हारे हाथ की रकम से तिगुनी रकमवाला हो जाऊँगा ।" हाथ की अलग-अलग रकमें तथा थैली की रकम बतलाभो ॥२४२ - २४३॥ दो यात्रियों ने रास्ते पर पड़ी हुई धन से भरी थैली देखी। एक ने उसे उठाया और कहा, "इस धन और हाथ के धन को मिलाकर मैं तुमसे दुगुना धनी हूँ ।" दूसरे ने थैली को लेकर कहा, "मैं इस धन और हाथ के धन को मिलाकर तुमसे तिगुना धनी हूँ ।" हाथ की रकमें और थैली की रकम अलग-अलग बतलाओ । ॥२४४-२४४३॥ चार मनुष्यों ने धन से भरी एक थैली रास्ते में देखी । पहिले ने कहा, "यदि मुझे यह थैली मिल जाय, तो मैं कुल धन मिलाकर तुम सभी के धन से आठगुना धनवान हो जाऊँ।” दूसरे कहा, "यदि यह थैली मुझे मिल जाय तो मेरा कुलधन तुम्हारे कुलधन से ९ गुना हो जाय । " तीसरे ने कहा, “मैं १० गुना धनी हो जाऊँगा ।" और चौथे ने कहा, “मैं ११ गुना धनी हो जाऊँगा ।" हे गणितज्ञ ! थैली की रकम और उनमें से प्रत्येक के हाथ की रकमें बतलाओ ॥ २४५३ - २४७॥ चार मनुष्यों ने रकम भरी थैली रास्ते में देखी। तब जो कुछ प्रत्येक के हाथ में था, यदि उसमें थैली का क्रमशः पे है, 2 और 3 भाग मिलाया जाता, तो वह दूसरों के कुलधन से क्रमशः दुगुना, तिगुना, पाँच गुना और चारगुना धन हो जाता । थैली की रकम और उनमें से प्रत्येक के हाथ की रकमें बतलाओ ॥ २४८ ॥ तीन व्यापारियों ने रास्ते में धन से भरी हुई थैली देखी । पहिले ने ( शेष ) उनसे
SR No.090174
Book TitleGanitsara Sangrah
Original Sutra AuthorMahaviracharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain, L C Jain
PublisherJain Sanskriti Samrakshak Sangh
Publication Year1963
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, & Maths
File Size35 MB
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