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________________ --६. २४१] मिश्रकन्यवहारः अत्रोद्देशकः वैश्यैः पञ्चभिरेकं पोट्टलकं दृष्टमाह चैकैकः ।। पोटलकषष्ठसप्तमनवमाष्टमदशमभागमाप्त्वैव ॥२३९।। स्वस्वकरस्थेन सह त्रिगुणं त्रिगुणं च शेषाणाम् । गणक त्वं मे शीघ्रं वद हस्तगतं च पोट्रलकम् ।।२४०॥ इष्टांशेष्टगुणपोट्टलकानयनसूत्रम्इष्टगुणानान्यांशाः सेष्टांशाः सैकनिजगुणहृता युक्ताः । घनपदनेष्टांशन्यूनाः सैकेष्टगुणहृता हस्तगताः ॥२४१।। उदाहरणार्थ प्रश्न पाँच व्यापारियों ने एक थैली देखी। उन्होंने ( एक के बाद दूसरे से ) इस प्रकार कहा कि थैली की रकम का क्रमशः १.१.१ और भाग पाने पर वह अपने हाथ की रकम मिलाकर अन्य व्यापारियों के कुल धन से तिगुना धनी हो जायगा । हे गणितज्ञ ! उनके हाथों की अलग-अलग रकम तथा थैली में भरी हुई रकम को शीघ्र ही बतलाओ ॥२३९-२४०॥ थैली की रकम प्राप्त करने के लिये नियम, जब कि उल्लिखित भिन्नीय भागों को, क्रमशः उन व्यक्तियों के हाथ की रकम जोड़ने पर, प्रत्येक अन्य की कुल रकमों के मान से विशिष्ट गुणा धनी बन जावे (दृष्ट मनुष्य के भाग को छोड़कर,) शेष सभी से सम्बन्धित उल्लिखित भिन्नीय भागों को साधारण हर में प्रवासित कर हर को उपेक्षित कर दिया जाता है। इन्हें ( अलग-अलग दृष्ट मनुष्य सम्बन्धी ) निर्दिष्ट अपवयं ( multiple) द्वारा गुणित करते हैं । इन गुणनफलों में उस दृष्ट मनुष्य के भिन्नीय भाग को जोड़ते हैं। परिणामी योगों में से प्रत्येक को अलग-अलग उसके संगत उल्लिखित अपवर्त्य ( multiple) से एक अधिक राशि द्वारा भाजित करते हैं। तब इन भजनफलों को भी जोड़ा जाता है। अलग-अलग दशाओं सम्बन्धी इस प्रकार प्राप्त योगों को, दो कम दशाओं की संख्या द्वारा गुणित कर, निर्दिष्ट भिन्नीय भाग द्वारा ह्वासित करते हैं। अन्तर को एक अधिक निर्दिष्ट अपवर्य द्वारा भाजित करते हैं । यह फल (इस विशिष्ट दशा में) हाथ की रकम है ॥२४॥ ( २४१) नियम में दिया गया सूत्र इस प्रकार है - [अ + मब + अ + मस + अ + मद + ...-(श-२ ) अ} (म + १) ' न+१ 'य+१ 'र+१ ' ब+ नअ.ब+ नस ब+ नद. . . म+१ य+१ +१ जहाँ क, ख,........ .... हाथ की रकमें हैं; अ, ब, स, द मिनीय भाग हैं; म, न, य, र,............विभिन्न अपवर्त्य संख्यायें हैं; और श व्यापार सम्बन्धी व्यक्तियों की संख्या है। ग० सा० सं०-२०
SR No.090174
Book TitleGanitsara Sangrah
Original Sutra AuthorMahaviracharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain, L C Jain
PublisherJain Sanskriti Samrakshak Sangh
Publication Year1963
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, & Maths
File Size35 MB
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