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________________ -६. २३६ ] मिश्रकन्यवहारः [१५१ अत्रोद्देशकः मार्ग त्रिभिर्वणिग्भिः पोट्टलकं दृष्टमाह तत्रैकः । पोट्टलकमिदं प्राप्य द्विगुणधनोऽहं भविष्यामि ॥२३६॥ उदाहरणार्थ प्रश्न तीन व्यापारियों ने सड़क पर एक थैली पड़ी हुई देखी । एक ने शेष उन से कहा, “यदि मुझे यह थैली मिल जाय, तो तुम्हारे हाथ में जितनी रकमें हैं उनके हिसाब से मैं तुम दोनों लोगों से दुगुना धनवान हो जाऊँगा।" तब दूसरे ने कहा, "मैं तिगुना धनवान हो जाऊँगा।" तब तीसरे ने कहा, "मैं पांच गुना धनवान हो जाऊँगा।" थैली की रकम तथा प्रत्येक के हाथ की रकमों को अलग-अलग बतलाओ ॥२३६॥ हाथ की रकमों के मान तथा थैली की रकम निकालने के लिये नियम, जबकि थैली की रकम का विशेष उल्लिखित भिन्नीय भाग दत्त-संख्या के मनुष्यों में, प्रत्येक के हाथ की रकम में क्रमशः जोड़ने पर, प्रत्येक दशा में उनके धन की हाथ की रकम के वही गुणज ( multiple ) हो जावेंतब य+ क = अ (ख+ग), य+ख = ब (ग+क), जहाँ अ, ब, स प्रश्न में गुणजों का निरूपण करते हैं । य+ग = स (क+ख), ) अब य+क+ख+ग =(अ+१) (ख+ग) = (ब+ १) (ग+क) = (स+१) (क+ ख). (अ+ १) (ब+ १) (स + १)(ख + ग) = (ब+ १) (स + १),......(१) ता जहाँ ता-य+क+ख+ग है। इसी प्रकार, (ज (अ+ १) (ब+ १) (स + १) x (ग+क) = (स + १) (अ+ १)......(२) ता ही (अ+ १) (ब+ १) (स + १)x(क+ख) = (अ+ १) (ब+ १)......(३) ता (१), ( २ ) और ( ३ ) को जोड़ने पर, (अ+ १) (ब+ १) (स+ १)४२ (क+ख+ग) ता = (ब + १) (स+१) + (स + १) (अ+ १) + (अ+ १) (ब+ १) = शा......(४) (१), (२) और (३) को अलग-अलग २ द्वारा गुणित करके (४) में से घटाने पर(अ+१) (ब+१) (स+१) ४२ क शा -२ (ब+ १) (स+१), ता (अ+१) (ब+१) (स+१) ४२ ख-शा-२ (स+१) (अ+ १), ता (अ+१)(ब+१) (स +१). ४२ ग = शा - २ (अ+ १) (ब+ १), तब
SR No.090174
Book TitleGanitsara Sangrah
Original Sutra AuthorMahaviracharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain, L C Jain
PublisherJain Sanskriti Samrakshak Sangh
Publication Year1963
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, & Maths
File Size35 MB
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