SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 207
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १५०] गणितसारसंग्रहः [६. २३१ अत्रोद्देशकः शिबिका नयन्ति पुरुषा विंशतिरथ योजनद्वयं तेषाम् । वृत्तिर्दीनाराणां विंशत्यधिकं च सप्तशतम् ॥२३१॥ क्रोशद्वये निवृत्तौ द्वावुभयोः क्रोशयोस्त्रयश्चान्ये । पञ्च नरः शेषार्धाब्यावृताः का भृतिस्तेषाम् ॥२३२॥ इष्टगुणितपोट्टलकानयनसूत्रम्सैकगुणा स्वस्वेष्टं हित्वान्योन्यनशेषमितिः। अपवर्त्य योज्य मूलं (विष्णोः) कृत्वा व्येकेन मूलेन ॥२३३॥ पूर्वापवर्तराशीन हत्वा पूर्वापवर्तराशियुतेः । पृथगेव पृथक् त्यक्त्वा हस्तगताः स्वधनसंख्याः स्युः ॥२३४।। ताः स्वस्वं हित्वैव त्वशेषयोगं पृथक् पृथक् स्थाप्य । स्वगुणनाः स्वकरगतैरूनाः पोट्टलकसंख्याः स्युः ।।२३५॥ उदाहरणार्थ प्रश्न २० मनुष्यों को कोई पालकी २ योजन दूर ले जाने पर ७२० दीनार मिलते हैं। दो मनुष्य दो क्रोश दूर जाकर रुक जाते हैं; दो क्रोश दूर और जाने पर अन्य तीन रुक जाते हैं, तथा शेष की आधी दूरी जाने पर ५ मनुष्य रुक जाते हैं। ढोने वाले विभिन्न मजदूरों को क्या-क्या मजदूरी मिलती है ? ॥२३१-२३२॥ किसी थैली में भरी हुई रकम को निकालने के लिये नियम, जो कुछ मनुष्यों में से प्रत्येक के हाथ में जितनी रकम है उसमें जोड़ी जाने पर, अन्य के हाथों में रखी हुई रकमों के योग की विशिष्ट गुणज ( multiple) बन जाती है प्रश्न में विशिष्ट गुणज ( multiple) संख्याओं में से प्रत्येक में एक जोड़कर योग राशियां प्राप्त करते हैं। इन योगों को एक दूसरे से, प्रत्येक दशा में, विशेष उल्लिखित गुणज के सम्बन्धी योग को उपेक्षित करते हुए, गुणित करते हैं। इन्हें, साधारण गुणनखंडों को हटा कर, अल्पतम पदों में प्रवासित (लघुकृत) करते हैं। तब इन प्रहासित (लघुकृत) राशियों को जोड़ा जाता है । इस परिणामी योग का वर्गमूल प्राप्त किया जाता है, जिसमें से एक घटा दिया जाता है। उपर्युक्त प्रहासित राशियों को इस । द्वारा हासित वर्गमूल द्वारा गुणित किया जाता है। तब इन्हें अलग-अलग उन्हीं प्रह्वासित राशियों के योग में से घटाया जाता है । इस प्रकार, कई व्यक्तियों में से प्रत्येक के हाथ की रकमें प्राप्त होती हैं । उन व्यक्तियों में से केवल एक के पास के धन के मान को प्रत्येक दशा में जोड़ से वश्चित कर, इन सब हाथ की रकमों की राशियों को एक दूसरे में जोड़ना पड़ता है। इस प्रकार प्राप्त कई योग अलग-अलग लिखे जाते हैं। इन्हें क्रमशः उपर्युक्त उल्लिखित गुणज राशियों द्वारा गुणित किया जाता है। इस प्रकार प्राप्त कई गुणनफलों में से हाथ की रकमों को अलग-अलग घटाया जाता है। तब हाथ में कई रकमों में से प्रत्येक के सम्बन्ध में अलग-अलग थैली की रकम का वही मान प्राप्त होता है ॥२३३-२३५॥ ( २३३-२३५ ) गाथा २३६-२३७ में दिये गये प्रश्न में, मानलो क, ख, ग हाथ में रखी हुई तीन व्यापारियों की रकमें हैं; और थैली में य रकम है।
SR No.090174
Book TitleGanitsara Sangrah
Original Sutra AuthorMahaviracharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain, L C Jain
PublisherJain Sanskriti Samrakshak Sangh
Publication Year1963
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, & Maths
File Size35 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy