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________________ -६. २१६ ] मिश्रकव्यवहार [१४५ अत्रोद्देशकः स्वर्णपरीक्षकवणिजौ परस्परं याचितौ ततः प्रथमः । अधं प्रादात् तामपि गुलिकां स्वसुवर्ण आयोज्य ।।२१३।। वर्णदशकं करीमीत्यपरोऽवादीत् त्रिभागमात्रतया। लब्धे तथैव पूर्ण द्वदाशवणं करोमि गलिकाम्याम ॥२१४॥ उभयोः सुवर्णमाने वौँ संचिन्त्य गणिततत्त्वज्ञ । सौवर्णगणितकुशलं यदि तेऽस्ति निगद्यतामाशु ॥२१५।। इति मिश्रकव्यवहारे सुवर्णकुट्टीकारः समाप्तः । _ विचित्रकुट्टीकारः इतः परं मिश्रकव्यवहारं विचित्रकुट्टीकारं व्याख्यास्यामः । सत्यानृतसूत्रम्पुरुषाः सैकेष्टगुणा द्विगुणेष्टोना भवन्त्यसत्यानि । पुरुषकृतिस्तैरूना सत्यानि भवन्ति वचनानि ।२१६। ___ उदाहरणार्थ प्रश्न स्वर्ण के मूल्य को परखने में कुशल दो व्यापारियों ने एक दूसरे से स्वर्ण बदलने के लिये कहा । पहिले ने दूसरे से कहा, "यदि अपना आधा स्वर्ण मुझे दे दो, तो उसे मैं अपने स्वर्ण में मिलाकर कुल स्वर्ण को १० वर्ण वाला बना लूँगा।" तब दूसरे ने कहा, "यदि मैं तुम्हारा केवल भाग स्वर्ण प्राप्त करलूँ, तो मैं पूरे स्वर्ण को दो गोलियों की सहायता से १२ वर्ण वाला बना लूँगा।" हे गणित तत्वज्ञ ! यदि तुम स्वर्ण गणित में कुशल हो तो सोचविचार कर शीघ्र बतलाओ कि उनके पास कितने-कितने वर्ण वाला कितना-कितना स्वर्ण ( भार में ) है ? ॥२१३-२१५॥ इस प्रकार, मिश्रक व्यवहार में सुवर्ण कुट्टीकार नामक प्रकरण समाप्त हुआ। ___ विचित्र कुट्टीकार इसके पश्चात् , हम मिश्रक व्यहार में विचित्र कुट्टीकार की व्याख्या करेंगे। ( ऐसी परिस्थिति में जैसी कि नीचे दी गई है, जहाँ दोनों बातें साथ ही साथ सम्भव हैं,) सत्य और असत्य वचनों की संख्या ज्ञात करने के लिये नियम मनुष्यों की संख्या को उनमें से चाहे गये मनुष्यों की संख्या को द्वारा बढ़ाने से प्राप्त संख्या द्वारा गुणित करो, और तब उसे चाहे गये मनुष्यों की संख्या की दुगुनी राशि द्वारा हासित करो । जो संख्या उत्पन्न होगी वह असत्य वचनों की संख्या होगी। सब मनुष्यों का निरूपण करनेवाली संख्या का वर्ग इन असत्य वचनों की संख्या द्वारा हासित होकर सत्य वचनों की संख्या उत्पन्न करता है ॥२१६॥ को पहिले बदले में १६ तक बढ़ाना पड़ता है। इन दो वर्गों ८ और १६ को, दूसरे बदले में प्रयुक्त करने से, हमें औसतवर्ण के बदले में प्राप्त होता है ।। इस प्रकार, दूसरे बदले में हम देखते हैं कि भार और वर्ण के गुणनफलों के योग में (४०३५) अथवा ५ की बढ़ती है, जबकि पूर्व के चुने हुए वर्गों के सम्बन्ध में घटती और बढ़ती क्रमशः ९-८-१ और १६ - १३ =३ हैं। परन्तु दूसरे बदले में भार और वर्ण के गुणनफलों के योग में बढ़ती ३६ -३५ = १ है । त्रैराशिक के नियम का प्रयोग करने पर हमें वर्गों में संगत घटती और बढती और प्राप्त होती हैं। इसलिये वर्ण क्रमशः ९-२ या ८६ और १३+३= १३६ हैं। (२१६) इस नियम का मूल आधार गाथा २१७ में दिये गये प्रश्न के निम्नलिखित बीजीय ग० सा० सं०-१९
SR No.090174
Book TitleGanitsara Sangrah
Original Sutra AuthorMahaviracharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain, L C Jain
PublisherJain Sanskriti Samrakshak Sangh
Publication Year1963
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, & Maths
File Size35 MB
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