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________________ ६.२०९ १४४] गणितसारसंग्रहः ___ इष्टांशदानेन इष्टवर्णानयनस्य तदिष्टांशकयोः सुवर्णानयनस्य च सूत्रम्अंशाप्तकं व्यस्तं क्षिप्त्वेष्टन्नं भवेत् सुवर्णमयी। सा गुलिका तस्या अपि परस्परांशाप्तकनकस्य ।। २०९।। स्वदृढक्षयेण वर्णी प्रकल्पयेत्प्राग्वदेव यथा । एवं तद्वययोरप्युभयं साम्यं फलं भवेद्यदि चेत् ॥२१०॥ प्राक्कल्पनेष्टवी गुलिकाभ्यां निश्चयौ भवतः । नो चेत्प्रथमस्य तदा किंचिन्न्यूनाधिको क्षयौ कृत्वा ॥२११॥ तत्क्षयपूर्वक्षययोरन्तरिते शेषमत्र संस्थाप्य । त्रैराशिकविधिलब्धं वर्णों तेनोनिताधिको स्पष्टौ ।।२१२॥ दूसरे व्यक्ति के पास के वान्छित भिन्नीय भाग वाले स्वर्ण की पारस्परिक दान की सहायता से इष्ट वर्ण निकालने के लिये, तथा उन मन से चुने हुए दिये गये भागों के संगत स्वर्णों के भारों को क्रमशः निकालने के लिये नियम (दो विशिष्ट रूप से ) दिये गये भागों में से प्रत्येक के संख्यात्मक मान द्वारा को भाजित कर व्युत्क्रम में लिखा जाता है। यदि इस प्रकार प्राप्त भजनफलों में से प्रत्येक को मन से चुनी हुई राशि द्वारा गुणित किया जाय, तो वह सोने की दो छोटी गेंदों में से प्रत्येक के भार को उत्पन्न करता है। सोने की इन छोटी गेंदों में से प्रत्येक का वर्ण, तथा व्यापार में दूसरे मनुष्य के द्वारा दिये गये स्वर्ण को, प्रत्येक दशा में, दिये गये अन्तिम औसत वर्ण की सहायता से प्राप्त करना पड़ता है। यदि इस प्रकार से प्राप्त उत्तर दोनों कुलक (sets) प्रश्न के इष्ट मानों से मेल खाते हैं, तो मन से चुनी हुई संख्या से प्राप्त दो वर्ण, (दो दिये गये छोटे स्वर्ण की गेंदों के सम्बन्ध में ), कथित सत्यापित वर्ण हो जाते हैं । यदि ये उत्तर मेल नहीं खाते, तो उत्तरों के प्रथम कुलक के वर्णों को आवश्यकतानुसार छोटा या कुछ बड़ा बनाना पड़ता है। तब सुधारे हुए संघटक वर्षों के संगत औसत वर्ण को आगे प्राप्त करना पड़ता है। इसके पश्चात् , इस औसत वर्ण और पहिले प्राप्त (बिना मेल खानेवाले औसत) वर्ण के अन्तर को लिख लिया जाता है और इष्ट समानुपातिक राशियाँ त्रैराशिक नियम द्वारा प्राप्त की जाती हैं। पहिली चुनी हई संख्या के अनुसार प्राप्त वर्णों को जब इन दो राशियों में से क्रमशः एक द्वारा हासित और दूसरी द्वारा जोड़ा जाता है, तब यहाँ इष्ट वर्णों की प्राप्ति होती है । ॥२०९-२१२॥ (२०९-२१२ ) गाथा २१३-२१५ के प्रश्न का साधन निम्न भाँति करने पर नियम स्पष्ट हो जावेगा १ को और द्वारा भाजित करने पर हमें क्रमशः २, ३ प्राप्त होते हैं। उनकी स्थिति बदल कर उन्हें किसी चुनी हुई संख्या (मानलो १) द्वारा गुणित करने से हमें ३, २ प्राप्त होते हैं। ये दो संख्याएं क्रमशः दो व्यापारियों की स्वर्ण मात्राओं का प्ररूपण करती हैं। ९ को प्रथम व्यापारी के स्वर्ण का वर्ण चुनकर, हम उसके द्वारा प्रस्तावित बदले (विनिमय) में से, दूसरे व्यापारी के स्वर्ण के वर्ण १३ को सरलता पूर्वक प्राप्त कर सकते हैं । ये वर्ण ९ और १३, दूसरे व्यापारी द्वारा प्रस्तावित बदले में, औसत वर्ण को उत्पन्न करते हैं, जब कि प्रश्न में दिया गया औसत वर्ण १२ अथवा होता है। इसलिये वर्ण ९ और १३ को बदलना पड़ता है। यदि ९ के स्थान पर ८ चुना जाय तो १३
SR No.090174
Book TitleGanitsara Sangrah
Original Sutra AuthorMahaviracharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain, L C Jain
PublisherJain Sanskriti Samrakshak Sangh
Publication Year1963
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, & Maths
File Size35 MB
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