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________________ गणितसारसंग्रहः [ ६. १९९३__ बहुपदविनिमयसुवर्णकरणसूत्रम्वर्णनकनकमिष्टस्वर्णेनाप्तं दृढक्षयो भवति । प्राग्वत्प्रसाध्य लब्धं विनिमयबहुपदसुवर्णानाम् ॥१९९३।। अत्रोद्देशकः वर्णचतुर्दशकनकं शतत्रयं विनिमयं प्रकुर्वन्तः । वर्णादशदशवसुनगैश्च शतपञ्चकं स्वर्णम् । एतेषां वर्णानां पृथक् पृथक स्वर्णमानं किम् ।।२०१।। _ विनिमयगुणवर्णकनकलाभानयनसूत्रम्स्वर्णघ्नवर्णयुतिहृतगुणयुतिमूलक्षयनरूपोनेन । आप्तं लब्धं शोध्यं मूलधनाच्छेषवित्तं स्यात् ।।२०२॥ तल्लब्धमूलयोगाद्विनिमयगुणयोगभाजितं लब्धम् । प्रक्षेपकेण गुणितं विनिमयगुणवर्णकनकं स्यात् ।।२०३।। कई विशिष्ट प्रकार के बदले के परिणाम स्वरूप प्राप्त स्वर्ण के विभिन्न भारों को निकालने के लिये नियम यदि बदले जाने वाले दत्त स्वर्ण के भार को उसके ही वर्ण द्वारा गुणित कर उसे बदले में प्राप्त इष्ट स्वर्ण की मात्रा से भाजित किया जाय, तो समांग औसत वर्ण उत्पन्न होता है। इसके पश्चात् , पूर्व कथित क्रियाओं को प्रयुक्त करने पर, प्राप्त परिणाम बदले में प्राप्त विभिन्न प्रकार के स्वर्ण के इष्ट भारों को उत्पन्न करता है ॥१९९३॥ उदाहरणार्थ प्रश्न एक मनुष्य १४ वर्ण वाले ३०० भार के स्वर्ण के बदले में ५०० भार के विभिन्न वर्ण वाले १२,१०,८ और ७ वर्ण वाले स्वर्ण के प्रकारों को प्राप्त करता है। बतलाओ कि इन भिन्न वर्गों में से प्रत्येक का संगत अलग-अलग स्वर्ण कितने-कितने भार का होता है ? ॥२००३-२०१॥ बदले में प्राप्त स्वर्ण के विभिन्न ऐसे भारों को निकालने के लिये नियम, जो ज्ञात वर्ण वाले हैं और निश्वित गुणजों ( multiples ) के समानुपात में हैं दी गई समानुपाती गुणज (multiple) संख्याओं के योग को, ( दी गई समानुपाती मात्राओं वाले विभिन्न प्रकार के बदले में प्राप्त ) स्वर्ण की मात्राओं को, (उनके विशिष्ट ) वर्णों द्वारा गुणित करने पर, प्राप्त गुणनफलों के योग द्वारा भाजित करते हैं। परिणामी भजनफल को बदले जाने वाले स्वर्ण के मूल वर्ण द्वारा गुणित किया जाता है। यदि इस गुणनफल को १ द्वारा ह्वासित कर इसके द्वारा बदले में प्राप्त स्वर्ण के भार में जो बढती हुई है उसे भाजित करें, और प्राप्त भजनफल को स्वर्ण के मूल भार में से घटायें, तो (जो बदला नहीं गया है ऐसे ) स्वर्ण का शेष भार प्राप्त होता है। यह शेष भार मूल स्वर्ण के भार तथा बदले के कारण भार में हुई वृद्धि के योग में से घटाया जाता है। इस प्रकार प्राप्त परिणामी शेष को बदले से सम्बन्धित समानुपाती गुणज ( multiple ) संख्याओं के योग द्वारा भाजित किया जाता है, और तब उन समानुपाती संख्याओं में से प्रत्येक द्वारा अलग-अलग गुणित किया जाता है। तब बदले में प्राप्त स्वर्ण के विशिष्ट वर्ण वाले और विशिष्ट अनुपात वाले विभिन्न भारों की प्राप्ति होती है ॥२०२-२.३॥ ( १९९१ ) यहाँ उल्लिखित क्रिया १८५ वी गाथा से मिलती है।
SR No.090174
Book TitleGanitsara Sangrah
Original Sutra AuthorMahaviracharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain, L C Jain
PublisherJain Sanskriti Samrakshak Sangh
Publication Year1963
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, & Maths
File Size35 MB
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