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गणितसारसंग्रहः
[६.१८२
___ युग्मवर्णमिश्रसुवर्णानयनसूत्रम्ज्येष्ठाल्पक्षयशोधितपक्वविशेषाप्तरूपकैः प्राग्वत् । प्रक्षेपमतः कुयोदेवं बहुशोऽपि वा साध्यम् ॥१८२।।
पुनरपि युग्मवर्णमिश्रस्वर्णानयनसूत्रम्इष्टाधिकान्तरं चैव हीनेष्टान्तरमेव च । उभे ते स्थापयेव्यस्तं स्वर्ण प्रक्षेपतः फलम् ।। १८३ ॥
अत्रोद्देशकः दशवर्णसुवणं यत् षोडशवर्णेन संयुतं पक्कम् । द्वादश चेत्कनकशतं द्विभेदकनके पृथक् पृथग्बृहि ॥ १८४ ॥
बहुसुवर्णानयनसूत्रम्व्येकपदानां क्रमशः स्वर्णानीष्टानि कल्पयेच्छेषम् । अव्यक्तकनकविधिना प्रसाधयेत् प्राक्तनायेव ॥ १८५ ॥
दिये गये वर्णों वाले स्वर्ण के दो दिये गये नमूनों के मिश्रण के ज्ञात वजन और ज्ञात वर्ण द्वारा दो दिये गये वर्णों के संवादी स्वर्ण के भारों को निकालने के लिये नियम
मिश्रण के परिणामी वर्ण और ( अज्ञात संघटक मात्राओं वाले स्वर्ण के) ज्ञात उच्चतर और निम्नतर वर्णों के अन्तरों को प्राप्त करो। १ को इन अन्तरों द्वारा क्रमवार भाजित करो। तब पहिले की भाँति प्रक्षेप क्रिया ( अथवा इन विभिन्न भजनफलों की सहायता से समानुपातिक विभाजन ) करो। इस प्रकार, स्वर्ण की अनेक संघटक मात्राओं की अर्थी को भी प्राप्त किया जा सकता है ।।१८२।।
पुनः, दिये गये वर्ण वाले स्वर्ण के दो दिये गये नमूनों के मिश्रण के ज्ञात वजन और ज्ञात वर्ण द्वारा दो दिये गये वर्गों के संवादी स्वर्ण के भारों को निकालने के लिये नियम
परिणामी वर्ण तथा ( स्वर्ण की दो संघटक मात्राओं वाले दो दिये गये वर्गों के ) उच्चतर वर्ण के अन्तर को और साथ ही परिणामी वर्ण तथा (दो दिये गये वर्गों के ) निम्नतर वर्ण के अन्तर को विलोम क्रम में लिखो। इन विलोम क्रम में रखे हुए अन्तरों की सहायता से समानुपातिक वितरण की क्रिया करने पर प्राप्त किया गया परिणाम (संघटक मात्राओं वाले) स्वर्ण ( के इष्ट भारों) को उत्पन्न करता है। ॥१८॥
उदाहरणार्थ प्रश्न यदि १० वर्ण वाला स्वर्ण, १६ वर्ण वाले स्वर्ण से मिलाया जाने पर १२ वर्ण वाला १०० वजन का स्वर्ण उत्पन्न करता है, तो स्वर्ण के दो प्रकारों के वजन के मापों को अलग-अलग प्राप्त करो ॥१८॥
ज्ञात वर्ण और ज्ञात वजनवाले मिश्रण में ज्ञात वर्ण के बहुत से संघटक मात्राओं वाले स्वर्ण के भारों को निकालने के लिये नियम
____एक को छोड़कर सभी ज्ञात संघटक वर्गों के सम्बन्ध में मन से चुने हुए भारों को ले लिया जाता है। तब, जो शेष रहता है उसे पहिले जैसी दी गई दशाओं के सम्बन्ध में अज्ञात भार वाले स्वर्ण के निश्चित करने के नियम द्वारा हल करना पड़ता है । ।।१८५।।
[१८५] यहाँ दिया गया नियम ऊपर दी गई गाथा १८० में उपलब्ध है।