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________________ १३६] मिश्रकव्यवहारः । ६.१७०अत्रोद्देशकः एकक्षयमेकं च द्विक्षयमेकं त्रिवर्णमेकं च । वर्णचतुष्के च द्वे पञ्चक्षयिकाश्च चत्वारः ॥ १७० ॥ सप्त चतुर्दशवर्णास्त्रिगुणितपश्चक्षयाश्चाष्टौ । एतानेकीकृत्य ज्वलने क्षिप्त्वैव मिश्रवणं किम् । एतमिश्रसुवर्ण पूर्वैर्भक्तं च किं किमेकस्य ॥ १७१३ ।। इष्टवर्णानामिष्टस्ववर्णानयनसूत्रम्स्वैःस्वैवर्णहतैमिश्रं स्वर्णमिश्रेण भाजितम् । लब्धं वर्ण विजानीयात्तदिष्टाप्तं पृथक पृथक ॥१७२३ ॥ अत्रोद्देशकः विंशतिपणास्तु षोडश वर्णा दशवर्णपरिमाणैः। परिवर्तिता वद त्वं कति हि पुराणा भवन्त्यधुना ॥ १७३३ ।। अष्टोत्तरशतकनकं वर्णाष्टांशत्रयेन संयुक्तम् । एकादशवर्णं चतुरुत्तरदशवर्णकैः कृतं च किं हेम ॥ १७४३ ।। अज्ञातवर्णानयनसूत्रम्कनकक्षयसंवर्ग मिश्रं स्वर्णनमिश्रतः शोद्धधम् । स्वर्णेन हृतं वर्ण वर्णविशेषेण कनकं स्यात् ।।१७५३॥ . ___ उदाहरणार्थ प्रश्न स्वर्ण का एक भाग १ वर्ण का है, एक भाग २ वर्गों का है, एक भाग ३ वर्णों का है, २ भाग ४ वर्णों के हैं, ४ भाग ५ वर्गों के हैं, ७ भाग १४ वर्गों के है, और ८ भाग १५ वर्गों के हैं। इन्हें अग्नि में डालकर एक पिण्ड बना लिया जाता है। बतलाओ कि इस प्रकार मिश्रित स्वर्ण किस वर्ण का है? यह मिश्रित स्वर्ण उन भागों के स्वामियों में वितरित कर दिया जाता है। प्रत्येक को क्या मिलता है ? ॥१७०-१७१३॥ जो मान में दिये गये वर्णों वाली दत्त स्वर्ण की मात्राओं के तुल्य है ऐसे किसी वान्छित वर्ण वाले स्वर्ण का ( इच्छित ) वजन निकालने के लिये नियम स्वर्ण की दी गई मात्राओं को अलग-अलग उनके ही वर्ण द्वारा क्रमवार गुणित किया जाता है, और गुणनफलों को जोड़ दिया जाता है। परिणामी योग को मिश्रित स्वर्ण के कुल वजन द्वारा भाजित किया जाता है। भजनफल को परिणामी औसत वर्ण समझ लिया जाता है। यह उपर्युक्त गुणनफलों का योग, इस स्वर्ण के समान (इच्छित ) वजन को लाने के लिये, अलग-अलग वान्छित वर्णों द्वारा भाजित किया जाता है ॥१७२३॥ उदाहरणार्थ प्रश्न १६ वर्ण के २० पण वजनवाले स्वर्ण को १० वर्ण वाले स्वर्ण से बदला गया है; बतलाओ कि अब वह वजन में कितने पण हो जावेगा ? ॥१७३३॥ १११ वर्ण वाला १०८ वजन का स्वर्ण १४ वर्ण वाले स्वर्ण से बदला जाने पर कितने वजन का हो जावेगा ? ॥१७॥ अज्ञात वर्ण को निकालने के लिये नियम स्वर्ण की कुल मात्रा को मिश्रण के परिणामी वर्ण से गुणित करो। प्राप्त गुणफल में से उस योग को घटाओ जो स्वर्ण की विभिन्न घटक मात्राओं को उनके निज के वर्णों द्वारा गुणित करने से प्राप्त गुणनफलों को जोड़ने पर प्राप्त होता है । जब शेष को अज्ञात वर्ण वाले स्वर्ण की ज्ञात घटक मात्रा से विभाजित किया जाता है, तब इष्ट वर्ण उत्पन्न होता है; और जब वह शेष परिणामी वर्ण तथा ( स्वर्ण को अज्ञात घटक मात्रा के ) ज्ञात वर्ण के अंतर द्वारा भाजित किया जाता है, तब उस स्वर्ण का इष्ट वजन उत्पन्न होता है ॥१७५३॥
SR No.090174
Book TitleGanitsara Sangrah
Original Sutra AuthorMahaviracharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain, L C Jain
PublisherJain Sanskriti Samrakshak Sangh
Publication Year1963
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, & Maths
File Size35 MB
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