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-६. १६९] गणितसारसंग्रहः
[१३५ क्रयविक्रयलाभैः मूलानयनसूत्रम्अन्योऽन्यमूलगुणिते विक्रयभक्ते क्रयं यदुपलब्धं । तेनैकोनेन हृतो लाभः पूर्वोद्धृतं मूल्यम् ॥१६७।।
अत्रोद्देशकः त्रिभिः क्रोणाति सप्तव विक्रोणाति च पञ्चभिः ।। नव प्रस्थान वणिक् किं स्याल्लाभो द्वासप्ततिधनम् ॥ १६८ ।।
इति मिश्रकव्यवहारे सकलकुट्टीकारः समाप्तः ।
सुवर्णकुट्टीकारः ____ इतः परं सुवर्णगणितरूपकुट्टीकारं व्याख्यास्यामः । समस्तेष्टवर्गरेकीकरणेन संकरवर्णानयनसूत्रम्कनकक्षयसंवर्गो मिश्रस्वर्णाहृतः क्षयो ज्ञेयः । परवणेप्रविभक्तं सुवर्णगुणितं फलं हेम्नः ॥ १६९ ॥
खरीद की दर, बेचने की दर और प्राप्त लाभ द्वारा, लगाई गई रकम का मान प्राप्त करने के लिये नियम
वस्तु को खरीदने और बेचने की दरों में से प्रत्येक को, एक के बाद एक, मूल्य दरों द्वारा गुणित किया जाता है । खरीद की दर की सहायता से प्राप्त गुणनफल को बेचने की दर से प्राप्त गुणनफल द्वारा भाजित किया जाता है। लाभ को एक कम परिणामी भजनफल द्वारा विभाजित करने पर लगाई गई मूल रकम उत्पन्न होती है ॥१६७॥
उदाहरणार्थ प्रश्न किसी व्यापारी ने ३ पण में प्रस्थ अनाज खरीदा और ५ पण में ९ प्रस्थ की दर से बेचा। इस तरह उसे ७२ पण का लाभ हुआ। इस व्यापार में लगाई गई रकम कौन सी है? ॥१६८॥ इस प्रकार, मिश्रक व्यवहार में सकल कुट्टीकार नामक प्रकरण समाप्त हुआ।
सुवर्ण कुट्टीकार इसके पश्चात् हम उस कुट्टीकार की व्याख्या करेंगे जो स्वर्ण गणित सम्बन्धी है। इच्छित विभिन्न वर्गों के सोने के विभिन्न प्रकार के घटकों को मिलाने से प्राप्त हुए संकर (मिश्रित) स्वर्ण के वर्ण को प्राप्त करने के लिए नियम
यह ज्ञात करना पड़ता है कि विभिन्न स्वर्णमय घटक परिमाणों के (विभिन्न ) गुणनफलों के योग को क्रमशः उनके वर्णों से गुणित कर, जब मिश्रित स्वर्ण की कुल राशि द्वारा विभाजित किया जाता है तब परिणामी वर्ण उत्पन्न होता है। किसी संघटक भाग के मूल वर्ण को जब बाद के कुल मिले हुए परिणामी वर्ण द्वारा विभाजित कर, और उस संघटक भाग में दत्त स्वर्ण परिमाण द्वारा गुणित करते हैं तब मिश्रित स्वर्ण की ऐसी संवादी राशि उत्पन्न होती है, जो मान में उसी संघटक भाग के बराबर होती है। ॥१६९॥ .
(१६७) यदि खरीद की दर ब में अ वस्तुएँ हो, और बेचने की दर द में स वस्तुएँ हो, तथा व्यापार में लाभ म हो, तो लगाई गई रकम
अद -म
। होती है। बस