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________________ १२४ ] गणितसारसंग्रहः सप्तोत्तरविंशतिरिति समानसारा निगृह्य सर्वेऽपि । ऊचुः किं ब्रूहि सखे पृथक् पृथग्भाण्डसारं मे ॥ १६२ ॥ अन्योऽन्यमिष्टरत्न संख्यां दत्त्वा समधनानयनसूत्रम् - पुरुषसमासेन गुणं दातव्यं तद्विशोद्धय पण्येभ्यः । शेषपरस्पर गुणितं स्वं स्वं हित्वा मणेर्मूल्यम् ॥ १६३ ।। अत्रोद्देशकः प्रथमस्य शक्रनीलाः षट् सप्त च मरकता द्वितीयस्य । वज्राण्यपरस्याष्टावेकैका र्घं प्रदाय समाः ॥ १६४॥ प्रथमस्य शक्रनीलाः षोडश दश मरकता द्वितीयस्य । वज्रास्तृतीयपुरुषस्याष्टौ द्वौ तत्र दत्वैव ।। १६५ ।। तेष्वेकैकोऽन्याभ्यां समधनतां यान्ति ते त्रयः पुरुषाः । तच्छत्रनीलमर कतवत्राणां किंबिधा अर्थाः ॥ १६६ ॥ और चौबे ने २० बतलाया। इस प्रकार कथन करने में प्रत्येक ने अपनी-अपनी लगाई हुई रकमों को वस्तु के कुलमान में से घटा लिया था । हे मित्र ! बतलाओ कि प्रत्येक का उस पण्यद्रव्य में कितनाकितना भाण्डसार ( हिस्सा ) था ? ॥१६०-१६२॥ किसी भी इष्ट संख्या के रत्नों का पारस्परिक विनिमय करने के पश्चात् समान रत्नमयी रकमों को निकालने के लिए नियम दिये जाने वाले रत्नों को संख्या को बदले में भाग लेनेवाले मनुष्यों की कुल संख्या द्वारा गुणित करो वह गुणगफल अलग-अलग ( प्रत्येक के द्वारा हस्तगत) बेचे जानेवाले रनों की संख्या में से घटाया जाता है । इस तरह प्राप्त शेषों का संतत गुणन प्रत्येक दशा में रत्न का मूल्य उत्पन्न करता है, जब कि उससे सम्बन्धित शेष इस प्रकार के गुणनफल को प्राप्त करने में त्याग दिया जाता है ॥ १६३ ॥ उदाहरणार्थ प्रश्न - [ ६. १६२ प्रथम मनुष्य के पास ( समान मूल्य वाले ) शक्र नील रन थे, दूसरे मनुष्य के पास ( उसी प्रकार के ) ७ मरकत ( मीना emeralds ) थे, और अन्य (तीसरे मनुष्य) के पास ८ ( उसी प्रकार के) डोरे थे। उनमें से प्रत्येक ने शेष अन्य में से प्रत्येक को अपने पास के एक रत्न के मूल्य को चुकाया जिससे वह दूसरों के समानधन वाला बन गया । प्रत्येक प्रकार के रत्न का मूल्य क्या-क्या है ? ॥१६४॥ प्रथम मनुष्य के पास १६ शक्र नील रत्न, दूसरे के पास १० मरकत हैं, और तीसरे मनुष्य के पास ८ हीरे हैं। उनमें से प्रत्येक दूसरों में से प्रत्येक को खुद के ही रनों को दे देता है, जिससे तीनों मनुष्य समान धनवाले बन जाते हैं। बतलाओ कि उन शक्र नील रत्न, मरकत तथा हीरों के अलग-अलग दाम क्या-क्या हैं ? ।। १६५-१६६॥ (१६३) मान लो 'म', 'न', 'प', क्रमशः तीन प्रकार के रत्नों की संख्याएँ है जिनके तीन भिन्न मनुष्य स्वामी है । मानलो परस्पर विनिमित रत्नों की संख्या 'अ' है, और 'क' 'ख', 'ग', किसी एक रत्न की क्रमशः तीन प्रकारों में कीमतें हैं तब सरलता पूर्वक प्राप्त किया जा सकता है कि क ( न ३ अ ) ( प - ३अ ); = ख = ( म - ३अ ) ( प - ३ अ ); ग (म-३अ) (न- ३अ ).
SR No.090174
Book TitleGanitsara Sangrah
Original Sutra AuthorMahaviracharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain, L C Jain
PublisherJain Sanskriti Samrakshak Sangh
Publication Year1963
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, & Maths
File Size35 MB
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