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________________ गणित सारसंग्रहः [ ६.१५० १३० ] त्रिभिः पणेः शुण्ठिपलानि पञ्च चतुर्भिरेकादश पिप्पलानाम् । अष्टाभिरेकं मरिचस्य मूल्यं षष्ट्यानयाष्टोत्तरषष्टिमाशु || १५० ॥ इष्टारिष्टमूल्यैरिष्टवस्तुप्रमाणानयनसूत्रम्मूल्यन्नफलेच्छा गुणपणान्त रेष्टन्नयुतिविपर्यासः । द्विष्ठः स्वधनेष्टगुणः प्रक्षेपककरणमवशिष्टम् ॥ १५१ ॥ - ११ पल लम्बी मिर्च, और ८ पण में १ पल मिर्च प्राप्त होती है । ६० पण खरीद के दामों में शीघ्र ही ६८ पल वस्तुओं को प्राप्त करो ॥ १५० ॥ इच्छित रकम ( जो कि कुल कीमत है ) में इच्छित दरों पर खरीदी गई कुछ विशिष्ट वस्तुओं के इच्छित संख्यात्मक मान को निकालने के लिये नियम ( खरीदी गई विभिन्न वस्तुओं के ) दर-मानों में से प्रत्येक को ( अलग-अलग खरीद के दामों के ) कुलमान द्वारा गुणित किया जाता है ।-दर-रकम के विभिन्न मान अलग-अलग समान होते हैं । वे खरीदी गई वस्तुओं की कुल संख्या से गुणित किये जाते हैं। आगे के गुणनफल क्रमवार पिछले गुणनफलों में से घटाये जाते हैं । धनात्मक शेष एक पंक्ति में नीचे लिख लिये जाते हैं । ऋणात्मक शेष एक पंक्ति में उनके ऊपर लिखे जाते हैं। सभी में रहने वाले साधारण गुणनखंडों को अलग कर इस सबको अल्पतम पदों में प्रहासित ( लघुकृत ) कर लिया जाता है । तब इन प्रह्वासित अंतरों में से प्रत्येक को मन से चुनी हुई अलग राशि द्वारा गुणित किया जाता है। उन गुणनफलों को जो नीचे की पंक्ति में रहते हैं तथा उन्हें जो ऊपर की पंक्ति में रहते हैं, अलग-अलग जोड़ते हैं, और योगों को ऊपर नीचे लिखते हैं । संख्याओं की नीचे की पंक्ति के योग को ऊपर लिखते हैं और ऊपर की पंक्ति के योग को नीचे लिखते हैं। इन योगों को उनके सर्वसाधारण गुणनखंड हटाकर अल्पतम पदों में प्रहालित कर लिया जाता है | परिणामी राशियों में से प्रत्येक को नीचे दुबारा लिख लिया जाता है, ताकि एक को दूसरे के नीचे उतनी बार किया जा सके, जितने कि संवादी एकान्तर योग में संघटक तत्व होते हैं। इन संख्याओं को इस प्रकार दो पंक्तियों में जमाकर, उनकी क्रमवार दर-कीमतों और चीजों के दर- मानों द्वारा गुणित करते हैं। ( अंकों की एक पंक्ति में दर-मूल्य गुणन और अंकों की दूसरी पंक्ति में दर-संख्या का गुणन करते हैं ।) इस प्रकार प्राप्त गुणनफलों को फिरसे उनके सर्वसाधारण गुणनखंडों को हटाकर अल्पतम पदों में प्रहासित कर लिया जाता है । प्रत्येक ऊर्ध्वाधर ( vertical ) पंकि के परिणामो अंकों में से प्रत्येक को अलग-अलग उनके संवादी मन से चुने हुए गुणकों (multipliers) द्वारा गुणित करते हैं। गुणनफलों को पहिले की तरह दो क्षैतिज पंक्तियों में लिख लिया जाना चाहिये । गुणनफलों की ऊपरी पंक्ति की संख्यायें उस अनुपात में होती हैं, जिसमें कि क्रयधन वितरित किया गया है। और, जो संख्यायें गुणनफलों की निम्न पंक्ति में रहती हैं वे उस अनुपात में होती हैं जिसमें कि संवादी खरीदी गई वस्तुएँ वितरित की जाती हैं। इसलिये अब जो शेष रहती है वह केवल प्रक्षेपक करण की क्रिया ही है । (प्रक्षेपक करण क्रिया में त्रैराशिक नियम के अनुसार आनुपातिक विभाजन होता है ॥ १५१ ॥ अलग घटाने पर हमें दे और प्राप्त होते हैं । उपर्युक्त अल्पतम राशि को दी गई मिश्रित कीमत ५६ से से गुणित करने पर ५६ x ६ प्राप्त होता है । कुल पक्षियों की संख्या ७२ में से इसे घटाते हैं। शेष २४ को तीन भागों में बाँटते हैं; और ३ । इन्हें क्रमशः और २० द्वारा भाजित करने पर हमें प्रथम तीन प्रकार के पक्षियों की कीमतें १४, १२ और ३६ प्राप्त होती हैं । इन तीनों कीमतों को कुल ५६ में से घटाकर पक्षियों के चौथे प्रकार की कीमत प्राप्त की जा सकती है । ( १५१ ) गाथा १५२ - १५३ में दिये गये प्रश्न का साधन निम्नलिखित रीति से करने पर सूत्र
SR No.090174
Book TitleGanitsara Sangrah
Original Sutra AuthorMahaviracharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain, L C Jain
PublisherJain Sanskriti Samrakshak Sangh
Publication Year1963
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, & Maths
File Size35 MB
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