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________________ -६. १४९] मिश्रकन्यवहारः [१२९ जघन्योनमिलितराश्यानयनसूत्रम्पण्यहृताल्पफलोनैश्छिन्द्यादल्पन्नमूल्यहीनेष्टम् । कृत्वा तावत्खण्डं तदूनमूल्यं जघन्यपण्यं स्यात् ।। १४६३ ।। अत्रोद्देशकः द्वाभ्यां त्रयो मयूरास्त्रिभिश्च पारावताश्च चत्वारः । हंसाः पञ्च चतुर्भिः पञ्चभिरथ सारसाः षट् च ।। १४७३ ।। यत्रार्घस्तत्र सखे षटपञ्चाशत्पणैः खगान् क्रीत्वा । द्वासप्ततिमानयतामित्युक्त्वा मूलमेवादात् । कतिभिः पणेस्तु विहगाः कति विगणय्याशु जानीयाः ।। १४९ ।। कुल कीमत के दिये गये मिश्रित मान में से, क्रमशः, मँहगी और सस्ती वस्तुओं के मूल्यों के संख्यात्मक मानों को निकालने के लिये नियम - (दी गई वस्तुओं की दर-राशियों को) उनकी दर-कीमतों द्वारा भाजित करो। ( इन परिणामी राशियों को अलग-अलग) उनमें से अल्पतम राशि द्वारा ह्वासित करो। तब ( उपर्युक्त भजनफल राशियों में से ) अल्पतम राशि द्वारा सब वस्तुओं की मिश्रित कीमत को गुणित करो; और ( इस गुणनफल को) विभिन्न वस्तुओं की कुल संख्या में से घटाओ। तब (इस शेष को मन से) उतने भागों में विभक्त करो ( जितने कि घटाने के पश्चात् बचे हुए उपर्युक्त भजनफलों के शेष होते हैं)। और तब, ( इन भागों को उन भजनफल राशियों के शेषों द्वारा ) भाजित करो । इस प्रकार, विभिन्न सस्ती वस्तुओं की कीमतें प्राप्त होती हैं। इन्हें कुल कीमत से अलग करने पर खरीदी हुई महंगी वस्तु की कीमत प्राप्त होती है ॥१४६॥ उदाहरणार्थ प्रश्न "२ पण में ३ मोर, ३ एण में ४ कबूतर, ४ पण में ५ हंस, और ५ पण में ६ सारस की दरों के अनुसार, हे मित्र, ५६ पण के ७२ पक्षी खरीद कर मेरे पास लाओ।" ऐसा कहकर एक मनुष्य ने खरीद की कीमत ( अपने मित्र को ) दे दी। शीघ्र गणना करके बतलाओ कि कितने पणों में उसने प्रत्येक प्रकार के कितने पक्षी खरीदे ॥ १४७३-१४९ ॥ ३ पण में ५ पल शुण्ठि, ४ पण में (४) को (क-श) से विभाजित करने पर हमें भजनफल अ प्राप्त होता है, और शेष ब (ख-श)+ स (ग-श ) प्राप्त होता है, जहाँ क-श उपयुक्त पूर्णाक है। इसी प्रकार, हम यह क्रिया अंत तक ले जाते हैं। इस प्रकार, यह देखने में आता है कि उत्तरोत्तर चुने गये भाजक क-श, ख - श और ग-श, जब श में मिलाये जाते हैं, तब वे विभिन्न कीमतों के मान को उत्पन्न करते हैं, प्रथम वस्तु की कीमत श ही होती है, और यह कि उत्तरोत्तर भजनफल अ, ब, स और साथ ही न-(अ+ब+स) विभिन्न प्रकारों की वस्तुओं के मान हैं। इस नियम में, दी गई वस्तुओं के प्रकारों की संख्या से एक कम संख्या के विभाजन किये जाते हैं । अंतिम भाजन में कोई भी शेष नहीं बचना चाहिए । (१४६३) अगली गाथा (१४७३-१४९) में दिये गये प्रश्न को साधन करने पर नियम स्पष्ट हो जावेगा-दर-राशियां ३, ४, ५, ६ को क्रमवार दर-कीमतों २, ३, ४, ५ द्वारा विभाजित करते हैं । इस प्रकार हमें 3,,५,६ प्राप्त होते हैं। इनमें से अल्पतम६ को अन्य तीन में से अलग ग० सा० सं०-१७
SR No.090174
Book TitleGanitsara Sangrah
Original Sutra AuthorMahaviracharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain, L C Jain
PublisherJain Sanskriti Samrakshak Sangh
Publication Year1963
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, & Maths
File Size35 MB
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