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________________ गणितसारसंग्रहः १२८] अत्रोद्देशकः अथ मातुलुङ्गकदलीकपित्थदाडिमफलानि मिश्राणि । प्रथमस्य सैकविंशतिरथ द्विरमा द्वितीयस्य ॥ १४४३ ।। विंशतिरथ सुरभीणि च पुनस्त्रयोविंशतिस्तृतीयस्य । तेषां मूल्यसमासस्त्रिसप्ततिः किं फलं कोऽर्घः ॥ १४५३ ।। -- उदाहरणार्थ प्रश्न यहाँ, ३ ढेरियों में सुगन्धित मातुलुङ्ग, कदलो, कपिस्थ और दाडिम फलों को इकट्ठा किया गया है। प्रथम ढेरी में २१, दूसरी में २२, और तीसरी में २३ हैं। इन ढेरियों में से प्रत्येक की मिश्रित कीमत ७३ है। प्रत्येक ढेरी में विभिन्न फलों को संख्या और भिन्न प्रकार के फलों की कीमत निकालो। ॥ १४४३ और १४५३ ॥ नियम स्पष्ट हो जावेगा। प्रथम ढेरी में फलों की कुल संख्या २१ है। दूसरी " " " " २२ है । तीसरी" " " " २३ है। मन से कोई भी संख्या जैसे, २ चुनने पर और उससे इन कुल संख्याओं को गुणित करने पर हमें ४२, ४४, ४६ प्राप्त होते हैं। इन्हें अलग-अलग ढेरियों के मूल्य ७३ में से घटाने पर शेष ३१, २९ और ६७ प्राप्त होते हैं। इन्हें मन से चुनी हुई दूसरी संख्या ८ द्वारा भाजित करने पर भजनफल ३,३,३ और शेष ७,५ और ३ प्राप्त होते हैं। ये शेष, पुनः, मन से चुनी हुई संख्या २ द्वारा भाजित होनेपर भजनफल ३, २, १ और शेष १, १, १ उत्पन्न करते हैं। इन अंतिम शेषों को यहाँ मन से चुनी हुई संख्या १ द्वारा भाजित करने पर भजनफल १, १, १ प्राप्त होते हैं और शेष कुछ भी नहीं। पहिली कुल संख्या के सम्बन्ध में निकाले गये भजनफलों को उसमें से घटाना पड़ता है। इस प्रकार हमें २१-(३+३+१) = १४ प्राप्त होता है। यह संख्या और भजनफल ३, ३, १ प्रथम ढेरी में भिन्न प्रकारों के फलों की संख्या प्ररूपित करते हैं। इसी प्रकार, हमें दूसरे समूह में १६, ३, २, १ और तीसरे समूह में १८, ३, १,१ विभिन्न प्रकार के फलों की संख्या प्राप्त होती है। प्रथम चुना हुआ गुणक २, और उसके अन्य मन से चुने हुए गुणकों के योग कीमतें होती है। इस प्रकार, हमें क्रम से इन ४ भिन्न प्रकारों के फलों में प्रत्येक की कीमत २,२+८ या १०,२+२ या ४, और २+१ या ३, रूप में प्राप्त होती है । इस रीति का मूलभूत सिद्धान्त निम्नलिखित बीजीय निरूपण द्वारा स्पष्ट हो जावेगाअक+व ख+ स ग+ड घ प,"""" ......................"(१) ......................../ अ + ब+ स + ह न,.... ...........(२) मानलो घश; तब (२) को श से गुणित करने पर हमें श (अ+बस+ड)= शन .................(३) प्राप्त होता है । .......... (३) को (१) में से घटाने पर हमें अ (क-श)+ब (ख-श)+स (ग-श)=प-शन प्राप्त होता है। ....... ...."(४) .. . . ... . ..
SR No.090174
Book TitleGanitsara Sangrah
Original Sutra AuthorMahaviracharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain, L C Jain
PublisherJain Sanskriti Samrakshak Sangh
Publication Year1963
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, & Maths
File Size35 MB
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