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________________ -६. ११५३] मिश्रकव्यवहारः के मिश्रित प्रश्न के हल के लिये इष्ट लता समान अंकों की शृङ्खला प्राप्त की जाती है। यह शृङ्खला पहिले की भाँति नीचे से ऊपर की ओर बर्ती जाती है और, पहिले की तरह, परिणामी संख्या को इस इसी तरह, प. = १२ १३ = फ४ प +प., जहाँ प = २४ पर है; प = र3 पर + व = फ. प. + प., जहाँ प. = २५ प ब है । इस प्रकार हमें निम्नलिखित सम्बन्ध प्राप्त होते हैं. क= फर प.+प३, प, =फ प३+प; प. =फ प +प प फ पx+प ___५४ का मान इस तरह चुनते हैं ताकि रथ परब ( जोकि उपर बतलाए अनुसार प, का मान ह), एक पूर्णाक बन जावे । इस प्रकार, श्रृंखला फा, फा, फाप, और परको जमाते हैं जिससे क का मान प्राप्त हो जाता है: अर्थात ऊपरी राशि की गुणन विधि को तथा शृंखला की निम्नतर राशि की जाड़ विधि को सबसे ऊपर की राशि तक ले जाकर क का मान प्राप्त करते हैं। क का मान इस प्रकार प्राप्त कर, उसे आ के द्वारा विभाजित करते हैं। प्राप्त शेष, क की अल्पतम अर्हा को निरूपित करता है: क्योंकि क के वे मान जो समीकार बाक+ब = कोई पूर्णाक, का समाधान करते हैं, सब समान्तर आ श्रेदि में होते हैं जहाँ प्रचय ( common difference ) आ होता है । इस नियम के द्वारा वे प्रश्न भी हल किये जा सकते हैं जहाँ दो या दो से अधिक दशायें दी गई रहती हैं। ऐसे प्रश्न गाथाओं १२११ से लेकर १२९९ तक दिये गये हैं। १२१३ वी गाथा का प्रश्न इस नियम के अनुसार इस प्रकार हल किया जा सकता है दिया गया है कि फलों का एक ढेर जब ७ द्वारा हासित किया जाता है तब वह ८ मनुष्यों में ठीक-ठीक भाजन योग्य हो जाता है, और वही ढेर जब ३ द्वारा हासित किया जाता है तब १३ मनुष्यों में ठीक-ठीक भाजन योग्य हो जाता है। अब उपर्युक्त रीति द्वारा सबसे पहिले फलों की अल्पतम संख्या को निकाला जाता है जो प्रथम दशा का समाधान करे, और तब फलों की वह संख्या निकाली जाती है जो दूसरी दशा का समाधान करे। इस प्रकार, हमें क्रमशः १५ और १६ समूह वाचक मान प्राप्त होते हैं। अब अधिक बड़े समूह वाचक मान सम्बन्धी भाजक को छोटे समूह वाचक मान सम्बन्धी भाजक द्वारा विभाजित किया जाता है ताकि नयी वल्लिका (श्रंखला) प्राप्त हो जावे । इस प्रकार, १३ को ८ द्वारा विभाजित करने पर और भाग को जारी रखने पर हमें निम्नलिखित प्राप्त होता है८)१३(१ इसके द्वारा वल्लिका शृंखला इस प्रकार प्राप्त होती है५)८(१ १ को 'मति' चुनकर, और पहिले ही प्राप्त दो समूह मानों के अंतर (१६-१५ ) को अर्थात् १ को मति और अंतिम भाजक के गुणनफल में जोड़ते हैं। इस योग को अंतिम भाजक द्वारा भाजित करने पर हमें २ प्राप्त होता है जिसे वल्लिका (शृंखला) में मति के नीचे २)३(१ लिखना होता है। तब, वल्लिका के साथ पहिले की रीति करने पर हमें ११ प्राप्त होता है, जिसे प्रथम भाजक ८ द्वारा भाजित करने पर शेष ३ बच रहता है। इसे अधिक बड़े समूहमान सम्बन्धी भाजक १३ द्वारा गुणित कर, अधिक बड़े समूहमान में जोड़ दिया जाता है (१३४३+ १६५५)। इस प्रकार ढेर में फलों की संख्या ५५ प्राप्त होती है। १२(१
SR No.090174
Book TitleGanitsara Sangrah
Original Sutra AuthorMahaviracharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain, L C Jain
PublisherJain Sanskriti Samrakshak Sangh
Publication Year1963
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, & Maths
File Size35 MB
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