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________________ ११६] गणितसारसंग्रहः [-६. ११५३ १२ ५ अन्तिम अयुग्म स्थिति क्रम वाले अल्पतम शेष में जोड़कर परिणामी योगफल को ऊपर की भाजन श्रृंखला के अन्तिम भाजक द्वारा विभाजित करने के पश्चात् प्राप्त संख्या को रखना चाहिये । इस प्रकार इस बाद वाचक मान' को निकालना इष्ट होता है। अब इस नियम के अनुसार हम पहिले राशि अथवा समूहवाचक संख्या ६३ को छेद अथवा भाजक २३ द्वारा भाजित करते हैं, और तब हम जिस प्रकार दो संख्याओं का महत्तम समापवर्त्य निकालते हैं उसी प्रकार की भाग विधि को यहाँ जारी रखते हैं । २३ ) ६३ (२ यहाँ प्रथम भजनफल २ को उपेक्षित कर दिया ४६ जाता है; अन्य भजनफल बाजू के स्तम्भ में एक पंक्ति में १७) २३ (१ एक के नीचे एक लिखे गये हैं। अब हमें एक ऐसी ६) १७ (२ संख्या चुनना पड़ती है जो जब अन्तिम शेष १ के द्वारा गुणित की जाती है, और फिर ७ में जोड़ी जाती है, तो वह अन्तिम भाजक १ के द्वारा भाजन योग्य होती है । इसलिये, हम १ को चुनते हैं, जो श्रृंखला में अन्तिम अंक १)५ । ४ के नीचे लिखा हुआ है। इस चुनी हुई संख्या के नीचे, फिरसे चुनी हुई संख्या की सहायता से, उपर्युक्त भाग में प्राप्त भजनफल लिखा जाता है । इस प्रकार हमें बाजू में यहाँ हम पाँचवें शेष के साथ ही प्रथम स्तम्भ के अंकों में शृंखला अथवा वल्लिका प्राप्त भाग रोक देते हैं, क्योंकि वह भाजन हो जाती है। तब हम शृंखला के नीचे उप अन्तिम अंक को श्रेढियों में अयुग्म स्थिति क्रम वाला अर्थात् १ को लिखकर उसके ऊपर के अंक ४ द्वारा गुणित अल्पतम शेष है। करते हैं, और ८ जोड़ते हैं। यह ८, शृखला की अंतिम संख्या है। परिणामी १२ इस तरह लिख दिया जाता है २-३८ ताकि वह ४ के संवादी स्थान में हो । तत्पश्चात् इस १२ को १-१३ वल्लिका शृंखला में उसके ऊपर के अंक १ द्वारा गुणित करते ४-१२ है और १ जोड़ने पर (जो कि उसके उसी प्रकार नीचे है) हमें १३ एक के संवादी स्थान में प्राप्त होता है । इसी प्रकार, क्रिया को जारी रखकर हमें ३८ और ५१ भी प्राप्त होते हैं जो २ और १ के संवादी स्थान में प्राप्त किये जाते हैं। इस ५१ को २३ द्वारा भाजित किया जाता है; और शेष ५ एक गुच्छे में फलों को अल्पतम संख्या दृष्टिगत होती है। निम्नलिखित बीजीय निरूपण द्वारा इस नियम का मूलभूत सिद्धान्त ( rationale) स्पष्ट हो जावेगा 14ख ( जो एक पूर्णाक है )=फ, क+प., जहाँ प. -( बा-आफ, ) क+ब आ ... आप,-ब .( जहाँ र. =बा-आफ, जो प्रथम शेष है)=फ, प, +., जहाँ पर भा = २२ १५-१, और फर दूसरा भजनफल है तथा र, दूसरा शेष है । और फ तीसरा इसलिये, प, = र, प२ +4 = फ, प. +प, जहाँ पर = र १२ + भजनफल तथा र, तीसरा शेष है।
SR No.090174
Book TitleGanitsara Sangrah
Original Sutra AuthorMahaviracharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain, L C Jain
PublisherJain Sanskriti Samrakshak Sangh
Publication Year1963
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, & Maths
File Size35 MB
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