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- ६. ११५५ ]
मिश्रक व्यवहारः
काकुट्टीकार
इतः परं वल्लिकाकुट्टीकारगणितं व्याख्यास्यामः । कुट्टीका रे वल्लिकागणितन्यायसूत्रम् - छित्त्वा छेदेन राशि प्रथमफलमपोह्याप्तमन्योन्यभक्तं स्थाप्योर्ध्वाधर्यतोऽधो मतिगुणमयुजाल्पेऽवशिष्टे धनर्णम् । छित्त्वाधः स्वोपरिघ्नोपरियुतहर भागोऽधिकाग्रस्य हारं छित्त्वा छेदेन साम्रान्तरफलमधिकाग्रान्वितं हारघातम् ।। ११५३ ।।
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वल्लिका कुट्टीकार
इसके पश्चात् हम वल्लिका कुट्टीकार* नामक गणना विधि की व्याख्या करेंगे । कुट्टीकार सम्बन्धी वल्लिका नामक गणना विधि के लिये नियम
दो गई राशि ( समूह वाचक संख्या ) को दिये गये भाजक द्वारा विभाजित करो । प्रथम भजनफल को अलग कर दो । तब ( विभिन्न परिणामो शेषों द्वारा विभिन्न परिणामी भाजकों के उत्तरोत्तर भाग से प्राप्त विभिन्न ) भजनफलों को एक दूसरे के नीचे रखो, और फिर इसके नीचे मन से चुनी हुई संख्या रखो जिससे कि ( उत्तरोत्तर भाग की उपर्युक्त विधि में ) अयुग्म स्थिति क्रमवाले अल्पतम शेष को गुणित किया जाता है; और तब इसके नीचे इस गुणनफल को ( प्रश्नानुसार दी गई ज्ञात संख्या द्वारा ) बढ़ाकर या हासित कर और तब ( उपर्युक्त उत्तरोत्तर भाग की विधि में अन्तिम भाजक द्वारा ) भाजित कर रखो। इस प्रकार वल्लिका अर्थात् बेलि सरीखी अंकों की शृङ्खला प्राप्त होती है । इसमें शृङ्खला की निम्नतम संख्या को, ( इसके ठीक ऊपर की संख्या में ऊपर के ठीक ऊपर की संख्या का गुणन करने से प्राप्त ) गुणनफल में जोड़ते हैं। ऐसी रीति को तब तक करते जाते शृङ्खला समाप्त नहीं हो जाती है । यह योग पहिले ही दिये गये भाजक से भाजित [ इस अन्तिम भाजन में 'शेष' गुणक बन जाता है जिसमें, ( इस प्रश्न में विभाजित या वितरित की जाने वाली राशि को प्राप्त करने के लिये, पहिले दी गई राशि ( समूह वाचक संख्या) का गुणा किया जाता है । परन्तु, जो एक से अधिक बार बढ़ाई गई अथवा हासित की गई हों, ऐसी दी गई राशियों ( समूह वाचक संख्याओं ) को एक से अधिक समानुपात में विभाजित करना पड़ता है । यहाँ दो विशिष्ट विभाजनों में से कोई एक के सम्बन्ध में प्राप्त ] अधिक बड़ा समूह वाचक मान सम्बन्धी भाजक को ( छोटे समूह वाचक मान सम्बन्धी ) भाजक द्वारा ऊपर बतलाये अनुसार भाजित किया जाता है ताकि उत्तरोत्तर भजनफलों की लता के समान शृङ्खला पूर्व क्रम अनुसार इस दशा में भी प्राप्त हो जावे । इस श्रृंखला में निम्नतम भजनफल के नीचे, इस अन्तिम उत्तरोत्तर में भाग में अयुग्म स्थिति क्रमवाले अल्पतम शेष के मन से चुने हुए गुणक को रखा जाता है; और फिर इसके नीचे पहिले बतलाए हुए समूह वाचक मानों के अन्तर को ऊपर मन से चुने हुए गुणक द्वारा गुणित कर, *वल्लिका कुट्टीकार कहने का कारण यह है कि इस नियम में समझाई गई कुट्टीकार की विधि लता समान अंकों की शृंखला पर आधारित होती है ।
( ११५३) गाथा ११७३ वीं का प्रश्न साधित करने पर यह नियम स्पष्ट हो जावेगा । यहाँ कथन किया गया है कि ७ अलग फलों सहित ६३ केलों के ढेर २३ मनुष्यों में ठीक-ठीक भाजन योग्य हैं । एक ढेर में फलों की संख्या निकालना है । यहाँ ६३ को 'समूह वाचक संख्या ' ( राशि ) कहा जाता है, और प्रत्येक में स्थित फलों के संख्यात्मक मान को 'समूह वाचक मान' कहा जाता है। इसी 'समूह
जब तक कि पूरी किया जाता है ।
बतलाई गई विधि में )