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________________ ११४] गणितसारसंग्रहः [६.१०३अत्रोद्देशकः अधं द्वौ व्यंशौ च त्रीन् पादांशांश्च' संगृह्य । विक्रीय क्रीत्वान्ते पञ्चभिरंध्यंशकैः समानधनाः ।। ११०॥ ___इष्टगुणेष्टसंख्यायामिष्टसंख्यासमर्पणानयनसूत्रम्अन्त्यपदे स्वगुणहृते क्षिपेदुपान्त्यं च तस्यान्तम् । तेनोपान्त्येन भजेद्यल्लब्धं तद्भवेन्मूलम् ॥१११।। अत्रोद्देशकः कश्चिच्छावकपुरुषश्चतुर्मुखं जिनगृहं समासाद्य । पूजां चकार भक्त्या सुरभीण्यादाय कुसुमानि ॥ ११२३ ॥ द्विगुणमभूदाद्यमुखे त्रिगुणं च चतुर्गुणं च पश्चगुणम् । सर्वत्र पञ्च पञ्च च तत्संख्याम्भोरुहाणि कानि स्युः ॥ ११३३ ।। द्वित्रिचतुर्भागगुणाः पश्चार्धगुणात्रिपञ्चसप्ताष्टौ । भक्तैर्भक्त्याहेभ्यो दत्तान्यादाय कुसुमानि।।११४॥ इति मिश्रकव्यवहारे प्रक्षेपककुट्टीकारः समाप्तः । १. M में श्लोक क्रम ११०३ के पश्चात् निम्नलिखित श्लोक जोड़ा गया है, जो B में प्राप्य नहीं है: अर्धत्रिपादभागा धनानि षट्पञ्चमांशकान्त्याः । एकार्पण क्रीत्वा विक्रीय च समधना जाताः॥ उदाहरणार्थ प्रश्न ,,, क्रमशः व्यापार में लगाकर वही वस्तु खरीदने और बेचने तथा अवशिष्ट-मूल्य से तीन व्यापारी अंत में समान विक्रयोदय (बेचने की रकम) वाले हो जाते हैं। खरीद की कीमत बेचने की कीमत और बिक्री की तुल्य रकमें क्या क्या हैं ? ॥११०॥ . ऐसे प्रश्न को हल करने के लिये नियम जिसमें मन से चुनी हुई संख्या बार चुने गये अपवयों में मन से चुनी हुई राशियाँ समर्पित को ( दी) गई हों: उपअंतिम राशि को, अंतिम राशि की ही संवादी अपवर्त्य संख्या द्वारा विभाजित अंतिम राशि में जोड़ा जावे। इस क्रिया से प्राप्त फल को उस अपवर्य संख्या द्वारा विभाजित किया जावे जो कि इस दी गई उपअंतिम राशि से संयवित (associated) है। सब विभिन्न दी गई राशियों के सम्बन्ध में इस क्रिया को करने पर इष्ट मूल राशि प्राप्त होती है । ॥ १११३॥ उदाहरणार्थ प्रश्न किसी श्रावक ने चार दरवाजों वाले जिन मंदिर में (अपने साथ ) सुगंधित फूल लेजाकर उन्हें पूजन में इस प्रकार भक्ति पूर्वक भेंट किये-चार दरवाजों पर क्रमशः वे दुगने हो गये, तब तिगुने हो गये, तब चौगुने हो गये और तब पाँचगुने हो गये । प्रत्येक द्वार पर उसने ५ फूल अर्पित किये बतलाओ कि उसके पास कुल कितने कमल के फूल थे? ॥१२-११३३ ॥ भक्तों द्वारा भक्ति पूर्वक फूल प्राप्त किये गये और पूजन में ट किये गये । फूल जो इस प्रकार भेंट किये गये उत्तरोत्तर ३, ५, ७, और ८ थे। उनकी संवादी अपवरी राशियाँ क्रमशः... और थीं। फूलों की कुल मूल संख्या क्या थीं? ॥११४३॥ इस प्रकार, मिश्रक व्यवहार में प्रक्षेपक कुट्टीकार नामक प्रकरण समाप्त हुआ ।
SR No.090174
Book TitleGanitsara Sangrah
Original Sutra AuthorMahaviracharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain, L C Jain
PublisherJain Sanskriti Samrakshak Sangh
Publication Year1963
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, & Maths
File Size35 MB
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