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________________ - ६. १०९३ ] मिश्रकंव्यवहारः चत्वारिंशत् सैका समधनसंख्या षडेव चरमाघः । आचक्ष्व गणक शीघ्रं ज्येष्ठधनं किं च कानि मूलानि ॥ १०५३ ॥ समधनसंख्या पञ्चत्रिंशद्भवन्ति यत्र दीनाराः । चत्वारश्वरमार्घे ज्येष्ठधनं किं च गणक कथय त्वम् ॥ १०६ ॥ चरमार्घभिन्नजातौ समधनार्घानयनसूत्रम्तुल्यापच्छेदधनान्त्यार्घाभ्यां विक्रयक्रयाच प्राग्वत् । छेदच्छेदकृतिघ्नावनुपातात् समधनानि भिन्नेऽन्त्यार्धे ॥ १०७३ ।। अत्रिपादभागा धनानि षटपञ्चमांश काश्चरमार्घः । एकार्घेण क्रीत्वा विक्रीय च समधना जाताः ।। १०८३ ।। पुनरपि अन्त्यार्घे भिन्ने सति समधनानयनसूत्रम् - ज्येष्ठांशद्विहरहतिः सान्त्यहरा विक्रयोऽन्त्यमूल्यन्नः । नैकोद्वय खिलहरघ्नः स्यात्क्रय संख्यानुपातोऽथ ॥। १०९३ ।। [ ११३ जाती हैं वह ६ है । हे अंकगणितज्ञ ! मुझे शीघ्र बतलाओ कि कौन सी सबसे ऊंची लगाई गई रकम है और विभिन्न अन्य रकमें कौन-कौन हैं ? ।। १०५३ ।। उस दशा में जब कि ३५ दीनार समान धन राशि है, और ४ वह कीमत है जिस पर शेष वस्तुएं बेची जाती हैं, हे गणितज्ञ ! मुझे बतलाओ कि सबसे ऊंची लगाई जाने वाली रकम क्या है ? ।। १०६२ ।। जब अवशिष्ट कीमत ( अन्त्य अर्ध ) भिन्नीय रूप में हों तब समान बेचने की रकमें उत्पन्न करने वाली कीमतों के मान निकालने के लिये नियम समान हर वाला बना कर । तब इष्ट बेचने और खरीदने अवशिष्ट - कीमत ( अन्त्य अर्घ ) भिन्नीय होने पर बेचने और खरीदने की दरों को पहिले की भाँति प्राप्त करते हैं जब कि लगाई गई रकमों और अवशिष्ट कीमत को उपयोग में लाते हैं । यह हर इस समय उपेक्षित कर दिया जाता है की दरों को प्राप्त करने के लिये इन बेचने और खरीदने की दरों को गुणित करते हैं । तब समान विक्रयोदय ( बेचने की रकमों) को करते हैं ।। १०७३ ।। इस हर और हर के वर्ग द्वारा त्रैराशिक के नियम द्वारा प्राप्त उदाहरणार्थ प्रश्न किसी व्यापार में 2, 3, तीन व्यक्तियों द्वारा लगाई गई रकमें हैं। अवशिष्ट कीमत ( अन्त्यार्ध ) ६ है । उन्हीं कीमतों पर खरीदने और बेचने पर वे समान धन राशि वाले बन जाते हैं । बेचने को कीमत और खरीदने की कीमत तथा समान विक्रय-धन निकालो ।। १०८३ ॥ जब अवशिष्ट कीमत ( अन्त्यार्ध ) भिन्नीय हो तब समान विक्रयोदय ( बेचने की रकमों ) को निकालने के लिये दूसरा नियम सबसे बड़े अंश, दो और ( लगाई गई मूळ रकमों के प्राप्य ) हरों का संतत गुणनफल जब अवशिष्ट मूल्य के मान के हर में जोड़ा जाता है तब बेचने की दर उत्पन्न होती है। जब इसे अवशिष्ट - मूल्य ( अन्ध्यार्घ ) से गुणित कर और १ द्वारा हासित कर और फिर उत्तरोत्तर दो तथा समस्त हरों द्वारा गुणित किया जाता है, तब खरीदने की दर प्राप्त होती है। तत्पश्चात् त्रैराशिक की सहायता से बेचने की रकम ( sale-proceeds ) का साधारण मान प्राप्त होता है ।। १०९३ ॥ " १०५३ ) यहाँ आलोकनीय है कि इस नियमानुसार केवल सबसे बड़ी रकम निकाली जाती है । अन्य रकमें मन से चुन ली जाती हैं, ताकि वे सबसे बड़ी रकम से छोटी हों । ग० सा० सं०-१५
SR No.090174
Book TitleGanitsara Sangrah
Original Sutra AuthorMahaviracharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain, L C Jain
PublisherJain Sanskriti Samrakshak Sangh
Publication Year1963
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, & Maths
File Size35 MB
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