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________________ [१०५ -१.६९] मिश्रकन्यवहार प्रक्षेपो गुणकारः स्वफलोनाधिकसमानमूलानि ॥ ६६ ॥ अत्रोद्देशकः त्रिकपञ्चकाष्टकशतैः प्रयोगतोऽष्टासहस्त्रपञ्चशतम् । विंशतिसहितं वृद्धिभिरुद्धृत्य समानि पञ्चभिर्मासैः ॥ ६७ ॥ त्रिकषटकाष्टकषष्ट्या मासद्वितये चतुस्सहस्राणि । पञ्चाशद्विशतयुतान्यतोऽष्टमासकफलाहते सदृशानि ।। ६८ ॥ द्विकपञ्चकनवकशते मासचतुष्के त्रयोदशसहस्रम् । सप्तशतेन च मिश्रा चत्वारिंशत्सवृद्धिसममूलानि ।। ६९ ।। किया जाता है। इससे उधार दी गई रकमें उत्पन्न होती हैं जो उनके ब्याजों द्वारा मिलाई जाने पर अथवा हासित किये जाने पर समान हो जाती हैं ॥६६॥ उदाहरणार्थ प्रश्न ८,५२० रुपये क्रमशः ३, ५ और ८ प्रतिशत प्रतिमास की दर से ( भागों में ) ब्याज पर दिये जाते हैं। ५ माह में उपार्जित ब्याजों द्वारा हासित करने पर वे दत्त रकमें बराबर हो जाती हैं। इस तरह ब्याज पर लगाये हुए धनों को बतलाओ ॥ ६७ ॥ १,२५० द्वारा निरूपित कुल धन को (भागों में) क्रमशः ३, ६ ओर ८प्रति ६० की दर से २ माह के लिये ब्याज पर लगाया गया है । ८ माह में होने वाले ब्याजों को धनों में से घटाने पर जो धन प्राप्त होते हैं वे तुल्य देखे जाते हैं। इस प्रकार विनियोजित विभिन्न धनों को बतलाओ॥ ६॥ १३,७४० रुपये, (भागों में )२,५ और ९ प्रतिशत प्रतिमाह के अर्घ से ब्याज पर लगाये जाते हैं। ४ माह के लिये उधार दिये गये धनों में व्याजों को जोड़ने पर वे बराबर हो जाते हैं। उन धनों को बतलाओ ॥ ६९ ॥ ३,६४३ रुपये (भागों में ) क्रमशः १३, ३ और ई प्रति ८० प्रतिमाह की दर से ब्याज पर लगाये जाते हैं। ८ माह में (६६) प्रतीक रूप से, - १ (kxxबा.) १ (१XXX वा.) व १. (१XXबा आ.Xधा, - + इत्यादि /१XअXबार) आ३ धार (१४अXबार आ, धा, इसी प्रकार, १ /१XXबा, आ. धा । -- + इत्यादि /१४अXबा) आधा १+(१Xxबाघ, इसी तरह (आ.xधार घ, धर आदि के लिये। म. सा. स०-१४ ग० सा० सं०-१४
SR No.090174
Book TitleGanitsara Sangrah
Original Sutra AuthorMahaviracharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain, L C Jain
PublisherJain Sanskriti Samrakshak Sangh
Publication Year1963
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, & Maths
File Size35 MB
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