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१०२] गणितसारसंग्रहः
[ ६. ५३पश्चत्रिंशन्मिश्रं सप्तत्रिंशच्च नवयुतत्रिंशत् । विंशतिरष्टाविंशतिरथ षट्त्रिंशञ्च वृद्धिधनम् ।। ५३ ।।
उभयप्रयोगमूलानयनसूत्रम्रूपस्येच्छाकालादुभयफले ये तयोर्विशेषेण । लब्धं विभजेन्मूलं स्वपूर्वसंकल्पितं भवति ॥५४॥
अत्रोद्देशकः उवृत्त्या षटकशते प्रयोजितोऽसौ पुनश्च नवकशते। .. मासैस्त्रिभिश्च लभते सैकाशीति क्रमेण मूलं किम् ॥ ५५ ॥ -- - त्रिवृद्धयैव शते मासे प्रयुक्तश्चाष्टभिःशते । लाभोऽशीतिः कियन्मूलं भवेत्तन्मासयोर्द्वयोः ।। ५६ ।।
वृद्धिमूलविमोचनकालानयनसूत्रम्मूलं स्वकालगुणितं फलगुणितं तत्प्रमाणकालाभ्याम् । भक्तं स्कन्धस्य फलं मूलं कालं फलात्प्राग्वत् ।। ५७॥
१ इसी नियम को कुछ अशुद्ध रूप में परिवर्तित पाठ में इस प्रकार उल्लिखित किया गया है
पुनरप्युभयप्रयोगमूलानयनसूत्रम्इच्छाकालादुभयप्रयोगवृद्धिं समानीय । तवृद्धयन्तरभक्तं लब्धं मूलं विजानीयात् ।।
ब्याज २०, २८ और ३६ हैं । समान अरे वाला मूलधन क्या है ? ॥५३॥
दो भिन्न ब्याजदारों पर लगाया हुआ मूलधन प्राप्त करने के लिये नियम
दो ब्याज राशियों के अंतर को उन दो राशियों के अंतर द्वारा विभाजित करो जो दी हुई अवधियों में १ पर ब्याज होती हैं । यह भजनफल स्वपूर्व संकल्पित मूलधन होता है ॥५४॥
उदाहरणार्थ प्रश्न ६ प्रतिशत की दर पर उधार लेकर, और तब ९ प्रतिशत की दर पर उधार देकर कोई व्यक्ति चलन ( differential) लाभ के द्वारा ठीक ३ माह के पश्चात् ८१ प्राप्त करता है । मूलधन क्या है ? ॥५५।। ३ प्रतिशत प्रतिमास के अर्घ से कोई रकम उधार ली जाकर ८ प्रतिशत प्रतिमाह के अर्घ से ब्याज परदी जाती है। चलन लाभ, २ माह के अन्त में ८० होता है। बतलाओ वह रकम क्या है ? ॥५६॥
जब मूलधन और ब्याज दोनों (किश्तों द्वारा) चुकाये जाते हों तय समय निकालने के नियम
उधार दिया गया मूलधन किश्त के समय द्वारा गुणित किया जाता है और फिर ब्याज दर द्वारा गुणित किया जाता है। इस गुणनफल को मूलधनदर द्वारा और अवधिदर द्वारा विभाजित करने पर उस किश्त सम्बन्धी ब्याज प्राप्त होता है। इस ब्याज से, किश्त का मूलधन और ऋण को चुकाने का समय, दोनों को प्राप्त किया जाता है ॥५७॥
बराबर (५४) प्रतीक रूप से,
१४अ, बा, १४ अ.x बार घ
आ.xधा, आ२४धार (५७) प्रतीक रूप से,
ध बा -कित सम्बन्धी व्याज. जहाँ प प्रत्येक किश्त की अवधि है।
धा आ