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________________ ९२] गणितसारसंग्रहः अत्रोद्देशकः द्वादशसंख्याराशेाभ्यां संक्रमणमत्र किं भवति । तस्माद्राशेर्भक्तं विषमं वा किं तु संक्रमणम् ॥ ३ ॥ पञ्चराशिकविधिः पञ्चराशिकस्वरूपवृद्धथानयनसूत्रम्इच्छाराशिः स्वस्य हि कालेन गुणः प्रमाणफलगुणितः । कालप्रमाणभक्तो भवति तदिच्छाफलं गणिते ।।५।। अत्रोद्देशकः त्रिकपञ्चकषटकशते पञ्चाशत्षष्टिसप्ततिपुराणाः। लाभार्थतः प्रयुक्ताः का वृद्धिर्मासषट्कस्य ।। ५॥ व्यर्धाष्टकशतयुक्तास्त्रिशत्कार्षापणाः पणाश्चाष्टौ । मासाष्टकेन जाता दलहीनेनैव का वृद्धिः ॥ ६॥ षष्टया वृद्धिदृष्टा पञ्च पुराणाः पणत्रयविमिश्राः । मासद्वयेन लब्धा शतवृद्धिः का तु वर्षस्य ।। ७ ।। सार्धशतकप्रयोगे सार्धकमासेन पञ्चदश लाभः । मासदशकेन लब्धा शतत्रयस्यात्र का वृद्धिः ।।८।। साष्टशतकाष्टयोगे त्रिषष्टिकार्षापणा विशा दत्ताः। सप्तानां मासानां पञ्चमभागान्वितानां किम्।।९।। उदाहरणार्थ प्रश्न जब संख्या १२, दो से आयोजित हो तो संक्रमण क्या होगा? और, २ के सम्बन्ध में उसी संख्या १२ का भागीय विषम संक्रमण क्या होगा? पंचराशिक विधि पंचराशिक प्रकार के ब्याज को निकालने की विधि के लिये नियम इच्छा का प्ररूपण करनेवाली संख्या, अर्थात जिस पर ब्याज निकालना इष्ट होता है ऐसे धन को उससे सम्बन्धित समय द्वारा गुणित किया जाता है और तब दिये हुए मूलधन पर ब्याज दर का निरूपण करने वाली संख्या द्वारा गुणित किया जाता है। गुणनफल को समय तथा मूलधन राशि द्वारा भाजित किया जाता है। यह भजनफल, गणित में. इष्ट धन का ब्याज होता है ॥४॥ उदाहरणार्थ प्रश्न ५०, ६० और ७० पुराण क्रमशः ३.५ और ६ प्रतिशत प्रतिमाह की दर ( rate) से ब्याज पर दिये गये, उनका ६ माह में ब्याज क्या होगा?॥५॥ ३० कार्षापण और ८ पण, ७३ प्रतिशत प्रतिमाह की दर से ब्याज पर दिये गये.७१ माह में कितना ब्याज होगा? ॥ ६०पर २ माह में ५ पुराण और ३ पण व्याज होता है; १०. पण । वर्ष का ब्याज बतलाओ ॥७॥ १५० को १३ माह तक उधार देने से १५ ब्याज प्राप्त होता है। इसी अर्घ से ३०० पर १० माह का ब्याज क्या होगा? ॥८॥ एक व्यापारी ने ६३ कार्षापण, १०८ पर ८ प्रतिमाह की दर से उधार दिये, बतलाओ ७६ माह में कितना ब्याज होगा ॥१॥ (४) बीजीय रूप से ब= आधा सध अXबा "जहाँ आ, धा और बा प्रमाण अथवा दर सम्बन्धी क्रमशः अवधि, मूलधन और न्याज हैं और अ, ध तथा ब इच्छा की क्रमशः अवधि, मूलधन और ब्याज हैं। प्रमाण और इच्छा के विशेष स्पष्टीकरण के लिये अध्याय ५ की गाथा २ की पाद टिप्पणी देखिये । (५) ब्याज की दर यदि उल्लिखित न हो तो उसे प्रतिमास समझना चाहिये।
SR No.090174
Book TitleGanitsara Sangrah
Original Sutra AuthorMahaviracharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain, L C Jain
PublisherJain Sanskriti Samrakshak Sangh
Publication Year1963
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, & Maths
File Size35 MB
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