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________________ ६. मिश्रकव्यवहारः प्राप्तानन्तचतुष्टयान् भगवतस्तीर्थस्य कर्तन जिनान् सिद्धान् शुद्धगुणांत्रिलोकमहितानाचार्यवर्यानपि । सिद्धान्तार्णवपारगान भवभृतां नेतृनुपाध्यायकान् साधून सर्वगुणाकरान हितकरान् वन्दामहे श्रेयसे ॥१॥ इतः परं मिश्रगणितं नाम पञ्चमव्यवहारमुदाहरिष्यामः । तद्यथा संक्रमणसंज्ञाया विषमसंक्रमणसंज्ञायाश्च सूत्रम्युतिवियुतिदलनकरणं संक्रमणं छेदलब्धयो राश्योः । संक्रमणं विषममिदं प्राहुर्गणिततार्णवान्तगताः ॥२॥ ६. मिश्रकव्यवहार जिन्होंने अनन्त चतुष्टय प्राप्त कर धर्म तीर्थ की प्रवर्तना की है ऐसे अरिहंत प्रभुओं की, जो अष्टक्षायिक गुण सम्पन्न हैं तथा तीनों लोकों में आदर को प्राप्त हैं ऐसे सिद्ध प्रभुओं को, श्रेष्ठ आचार्यों की, जो जैन सिद्धान्त सागर के पारगामी हैं तथा संसारी जीवों को मोक्षमार्ग के उपदेशक हैं ऐसे उपाध्यायों की और जो सर्व सद्गुणों के धारक हैं तथा दूसरों के हितकर्ता हैं ऐसे साधुओं की हम अपने सर्वोपरि हित के लिये वन्दना करते हैं ॥१॥ इसके पश्चात् हम मिश्रित उदाहरण नामक पाँचवें व्यवहार का प्रतिपादन करेंगे। पारिभाषिक शब्द 'संक्रमण' और 'विषम संक्रमण' के अर्थों को स्पष्ट करने के लिये सूत्र गणित समुद्र के पारगामी, किन्हीं दो राशियों के योग अथवा अन्तर के आधा करने को संक्रमण कहते हैं । और, ऐसी दो राशियाँ जो क्रमशः भाजक तथा भजनफल रहती हैं, उनके संक्रमण को विषम संक्रमण कहते हैं ॥२॥ (१) कर्म और जन्म मरण के दुःखों से पूर्ण संसारीजीवनरूपी नदी को पार करने के लिये 'तीर्थ' शब्द का प्रयोग 'एक ऐसे स्थान के लिये हुआ है जो उथला होने के कारण नदी को पार करने में सहायक सिद्ध होता है। संसार अर्थात् चतुश्चक्रमण के दुःखों रूपी सागर को पार कराने के लिये भगवान् आत्माओं के लिये नैमित्तिक सहायक माने गये हैं। इसलिये इन जिनों को तीर्थकर कहा जाता है। ( २ ) बीजीय रूप से, दो राशियों अ और ब का संक्रमण अब और अब के मान निका लना है । उनका विषम संक्रमण, और "ब के मान निकालना है ।
SR No.090174
Book TitleGanitsara Sangrah
Original Sutra AuthorMahaviracharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain, L C Jain
PublisherJain Sanskriti Samrakshak Sangh
Publication Year1963
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, & Maths
File Size35 MB
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