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________________ -६.१४] मिश्रकव्यवहारः [९३ मूलानयनसूत्रम्मूलं स्वकालगुणितं स्वफलेन विभाजितं तदिच्छायाः। कालेन भजेल्लब्धं फलेन गुणितं तदिच्छा स्यात् ॥ १० ॥ अत्रोद्देशकः पश्चार्धकशतयोगे पञ्च पुराणान्दलोनमासौ द्वौ । वृद्धिं लभते कश्चित् किं मूलं तस्य मे कथय ॥११॥ सप्तत्याः सार्धमासेन फलं पञ्चार्धमेव च । व्यर्धाष्टमासे मूलं किं फलयोः सार्धयोर्द्वयोः ॥१२॥ त्रिकपञ्चकषट्कशते यथा नवाष्टादशाथ पश्चकृतिः । पञ्चांशकेन मिश्रा षट्सु हि मासेषु कानि मूलानि ॥ १३॥ कालानयनसूत्रम्-- कालगुणितप्रमाणं स्वफलेच्छाभ्यां हृतं ततः कृत्वा । तदिहेच्छाफलगुणितं लब्धं कालं बुधाः प्राहुः ॥ १४ ।। उधार दिये गये मूलधन को निकालने के लिये नियम मूलधन राशि को उसी से सम्बन्धित समय द्वारा गुणित करते हैं और सम्बन्धित ब्याज द्वारा विभाजित करते हैं। तब इस भजनफल को ( उधार दिये गये ) मलधन से सम्बन्धित अवधि द्र विभाजित करते हैं; यह अंतिम भजनफल जब उपार्जित ब्याज द्वारा गुणित किया जाता है तब वह मूलधन प्राप्त होता है जिस पर कि उक्त ब्याज प्राप्त हुआ है ॥१०॥ उदाहरणार्थ प्रश्न ब्याज दर २३ प्रतिशत प्रतिमाह से "माह तक रकम उधार देकर एक व्यक्ति ५ पुराण व्याज प्राप्त करता है। मुझे बतलाओ कि उस ब्याज के सम्बन्ध में मूलधन क्या है ? ॥११॥ ७. पर १३ माह में २३ व्याज होता है। यदि ७३ माह में २३ ब्याज होता हो तो बतलाओ कि कितना मूलधन ब्याज पर दिया गया है? ॥१२॥ क्रमशः ३.५ और ६ प्रतिशत प्रति माह की दर से उधार देने पर ६ माह में प्राप्त होने वाले व्याज क्रमशः ९, १८ और २५६ हैं; कौन-कौन से मूलधन ब्याज पर दिये गये हैं? ॥१३॥ अवधि निकालने के लिये नियम मूलधन को सम्बन्धित अवधि से गुणित करो; तब इस गुणनफल को उसो से सम्बन्धित ब्याज दर से भाजित करो और उधार दी हुई रकम से भी भाजित करो। प्राप्त भजनफल को उधार दी हुई रकम के ब्याज द्वारा गुणित करो। बुद्धिमान मनुष्य कहते हैं कि परिणामी गुणनफल (उपार्जित व्याज की) अवधि होता है ॥१४॥ (१०) प्रतीक रूप से, धा-आबा =ध बारअ धा आ४ब (१४) प्रतीक रूप से, बाब
SR No.090174
Book TitleGanitsara Sangrah
Original Sutra AuthorMahaviracharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain, L C Jain
PublisherJain Sanskriti Samrakshak Sangh
Publication Year1963
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, & Maths
File Size35 MB
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