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-४, ७०
नालाप उद्देशकः
मूलं कपोतवृन्दस्य द्वादशोनस्य चापि यत् । तयोर्योगे कपोताः षड् दृष्टास्तन्निकरः कियान् ॥ ६६ ॥ पारावतीयसंघे चतुर्घनोनेऽपि तत्र यन्मूलम् । तद्द्द्वययोगः षोडश तद्वृन्दे कति विहङ्गाः स्युः ॥६७॥ अधिकालाप उद्देशकः राजहंसनिकरस्य यत्पदं साष्टषष्टिसहितस्य चैतयोः । संयुतिर्द्विकविहीनषट्कृतिस्तद्गणे कति मरालका वद् ॥ ६८ ॥ इति मूलमिश्रजातिः ।
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प्रकीर्णकव्यवहारः
अथ भिन्नदृश्यजातौ सूत्रम् -
दृश्यांशोने रूपे भागाभ्यासेन भाजिते तत्र । यल्लब्धं तत्सारं प्रजायते भिन्नदृश्यविधौ ।। ६९ ।। अत्रोद्देशकः
सिकतायामष्टांशः संदृष्टोऽष्टादशांश संगुणितः । स्तम्भस्यार्धं दृष्टं स्तम्भायामः कियान् कथय ||७०|| २ B, M और K में 'गगने' पाठ है ।
नालाप के उदाहरणार्थ प्रश्न
कपोतों की कुल संख्या के वर्गमूल में १२ द्वारा हासित कपोतों की कुल संख्या के वर्गमूल को जोड़ने पर ( ठीक फल ) ६ कबूतर प्रमाण देखने में आता है । उस वृन्द के कपोतों की कुल संख्या क्या है ? ॥ ६६ ॥ कपोतों के कुल समूह का वर्गमूल, तथा ४ के घन द्वारा हासित कपोतों की कुल संख्या का वर्गमूल निकालकर इन ( दोनों राशियों ) का योग १६ प्राप्त होता है । बतलाओ समूह में कुल कितने विहंग हैं ? ॥ ६७ ॥
B में 'योगः', पाठ है |
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अधिकालाप का उदाहरणार्थ प्रश्न
राजहंसों के समूह के संख्यात्मक मान का वर्गमूल तथा ६८ अधिक उसी समूह की संख्या का वर्गमूल निकालने से प्राप्त ) इन ( दोनों राशियों) का योग ६२ - २ होता है । बतलाओ उस समूह में कितने हंस हैं ? ॥ ६८ ॥
इस प्रकार 'मूल मिश्र' जाति प्रकरण समाप्त हुआ ।
'भिन्न दृश्य' जाति सम्बन्धी नियम --
(६९) बीजीय रूप से, क =
ग० सा० सं०-११
जब एक को ( अज्ञात राशियों से सम्बन्धित दी गई ) भिन्नीय शेष राशि द्वारा द्वासित कर ( सम्बन्धित विशिष्ट ) भिन्नीय भागों के गुणन फल द्वारा भाजित करते हैं, तब प्राप्त फल (भिनों पर प्रश्नों के ) 'भिन्न दृश्य' प्रकार का साधन करने में, इष्ट उत्तर होता है ॥ ६९ ॥
उदाहरणार्थ प्रश्न
किसी स्तम्भ का है भाग, उसो स्तम्भ के पटे भाग द्वारा गुणित होता है । इससे प्राप्त भाग प्रमाण रेत में गड़ा हुआ पाया गया। उस स्तम्भ का ३ भाग ऊपर दृष्टिगोचर हुआ । बतलाओ कि स्तम्भ की ( उदद्म vertical ) लम्बाई क्या है ? ॥ ७० ॥ कुल हाथियों के झुंड के
23 वें भाग
(१ - 7 ) + मय है । यह, समीकरण कनफ
मन क
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