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गणित सारसंग्रहः
'हीनालाप उदाहरणम्
महिषीणामष्टांशो व्येको वर्गीकृतो वने रमते । पञ्चदशाद्रौ दृष्टास्तृणं चरन्त्यः कियन्त्यस्ताः ॥ ६२॥ अनेकपानां दशमो द्विवर्जितः स्वसंगुणः क्रीडति सल्लकीवने ।
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चरन्ति षडुर्गमिता गजा गिरौ कियन्त एतेऽत्र भवन्ति दन्तिनः ॥ ६३ ॥ 'अधिकालाप उदाहरणम्
जम्बूवृक्षे पञ्चदशांशो द्विकयुक्तः स्वेनाभ्यस्तः केकिकुलस्य द्विकृतिघ्नाः । पचाप्यन्ये मत्तमयूराः सहकारे रंरम्यन्ते मित्र वदैषां परिमाणम् ॥ ६४ ॥ इत्यूनाधिकांशवर्गजातिः ।।
अथ मूलमिश्रजातौ सूत्रम्मिश्रकृतिरूनयुक्ता व्यधिका च द्विगुणमिश्रसंभक्ता । वर्गीकृता फलं स्यात्करणमिदं मूलमिश्रविधौ ।। ६५ ।।
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२ M में यह तथा अनुगामी श्लोक छूट गये हैं । हीनालाप प्रकार के उदाहरण
कुल झुंड के टे वें भाग के पूर्ण वर्ग से एक कम महिष (भैंसा) राशि वन में क्रीड़ा कर रही है ।
शेष १५, पर्वत पर घास चरते हुए दिखाई दे रहे हैं। बतलाओ कुल कितने भैंसे हैं ? ||१२|| कुल झुंड के भाग से दो कम प्रमाण, उसी प्रमाण द्वारा गुणित होने से लब्ध हस्ति राशि सल्लकी
वन में क्रीड़ा कर रही है। शेष हाथी जो संख्या में ६ की वर्गराशि प्रमाण हैं, पर्वत पर विचर रहे हैं। लाभ वे कुल कितने हैं ? ॥ ६३ ॥
[ ४.६२
M में 'हीन' छूट गया है ।
अधिकालाप प्रकार का उदाहरण
कुल झुंड के भाग से २ अधिक राशि को स्व द्वारा गुणित करने से प्राप्त राशि प्रमाण मयूर जम्बू वृक्ष पर खेल रहे हैं। शेष गवले २२ x ५ मयूर आम के वृक्ष पर खेल रहे हैं । हे मित्र ! उस झुंड के कुल मयूरों की संख्या बतलाओ ? ॥ ६४ ॥
इस प्रकार ऊनाधिक 'अंश वर्ग' जाति प्रकरण समाप्त हुआ । 'मूलमिश्र' जाति सम्बन्धी नियम
( विशिष्ट अज्ञात राशियों के वर्गमूलों के ) मिश्रित (ज्ञात ) योग के वर्ग में ( दी गई ) ऋणात्मक राशि जोड़ दी जाती है, अथवा दी गई धनात्मक राशि उसमें से घटा दी जाती है । परिणामी राशि को उपर्युक्त मिश्रित योग की दुगुनी राशि द्वारा विभाजित करते हैं। इसे वर्गित करने पर इष्ट अज्ञात समूह की अह ( value) प्राप्त होती है। यही, 'मूलमिश्र' प्रकार के प्रश्नों का साधन करने का नियम हैं ॥ ६५ ॥
:: ( ६४ ) इस गाथा में 'मत्तमयूर' शब्द का अर्थ 'गर्वीला मयूर' होता है। यह इस छन्द का भी नाम है जिसमें यह गाथा संरचित हुई है।
( ६५ ) बौजीय रूप से, क = {
म #द } है यह क की अर्जा समीकार √क +√क=द = म द्वारा सरलता से प्राप्त हो सकती है । यहाँ 'म'; नियम में उल्लिखित शात मिश्रित योग है ।
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