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________________ -४. ४६] प्रकीर्णकग्यवहारः [७५ अत्रोद्देशकः गजयूथस्य त्र्यंशः शेषपदं च त्रिसंगुणं सानौ । सरसि त्रिहस्तिनीभिर्नागो दृष्टः कतीह गजाः॥४१ ।। निर्जन्तुकप्रदेशे नानाद्रुमषण्डमण्डितोद्याने । आसीनानां यमिनां मूलं तरुमूलयोगयुतम् ॥ ४२ ॥ शेषस्य दशमभागो मूलं नवमोऽथ मूलमष्टांशः । मूलं सप्तममूलं षष्ठो मूलं च पञ्चमो मूलं ॥४३॥ एते भागाः काव्यप्रवचनधर्मप्रमाणनयविद्याः । वादच्छन्दोज्यौतिषमन्त्रालङ्कारशब्दज्ञाः ॥ ४४ ॥ द्वादशतपःप्रभावा द्वादशभेदाङ्गशास्त्रकुशलधियः।...... द्वादश मुनयो दृष्टाः कियती मुनिचन्द्र यतिसमितिः ॥ ४५ ॥ मूलानि पञ्च चरणेन युतानि सानौ शेषस्य पञ्चनवमः करिणां नगाग्रे । मूलानि पञ्च सरसीजवने रमन्ते नद्यास्तटे षडिह ते द्विरदाः कियन्तः ॥ ४६॥ इति शेषमूलजातिः। 1 B में शेषस्य पदं त्रिसंगुणं पाठ है । उदाहरणार्थ प्रश्न हाथियों के यूथ ( झुंड ) का भाग तथा शेष भाग की वर्गमूल राशि के हाथी, पर्वतीय उतार पर देखे गये। शेष एक हाथी ३.हस्तिनियों के साथ एक सरोवर के किनारे देखा गया। बतलाओ कितने हाथी थे? ॥ ४५ ॥ कई प्रकार के वृक्षों के समूह द्वारा-मंडित उद्यान के निर्जन्तुक प्रदेश में कई साधु आसीन थे। उनमें से कुल के वर्गमूल की संख्या के साधु तरूमूल में बैठे हुए योगाभ्यास कर रहे थे। शेष के , ( इसको घटाकर ) शेष का वर्गमूल, ( इसको घटाकर ) शेष के २, ( इसको घटाकर ) शेष का; (इसको घटाकर ) शेष का; (इसको घटाकर ) शेष का वर्गमूल; (इसको घटाकर ) शेष का; (इसको घटाकर) शेष का इसको घटाकर शेष के वर्गमूल द्वारा निरूपित संख्याओं वाले वे थे जो ( क्रमशः) कान्य प्रवचन, धर्म, प्रमाण नयविचा, वाद, छन्द, ज्योतिष, मंत्र, अलंकार और शब्द शास्त्र (व्याकरण) जानने वाले थे, तथा वे भी थे जो बारह प्रकार के तप के प्रभाव से प्राप्त होनेवाली ऋद्धियों के धारी थे. तथा बारह-प्रकार के अंग शास्त्र को कुशलता पूर्वक जामने वाले थे । इनके अतिरिक्त अंत में १२ मुनि देखे गये । हे मुनिचंद्र ! बतलाओ कि यति समिति का संख्यात्मक मान क्या था ? ॥ ४२-४५॥ हाथियों के समूह के वर्गमूल का ५१ गुना भाग पर्वतीय उतार पर क्रीड़ा कर रहा है। शेष का भाग पर्वत के शिखर पर क्रीड़ा कर रहा है। (इसको घटाकर) शेष का वर्गमूल प्रमाण हस्तीगण कमल के वन में रमण कर रहा है। और, शेष ६ हस्ती नदी के तीर पर हैं। यहाँ सब हस्ती कितने हैं ? ॥ ४६॥---- इस प्रकार, 'शेषमूल' जाति प्रकरण समाप्त हुआ। "द्विरम शेष मूल" जाति | शेषों की संरचना करने वाली दो ज्ञात राशियों वाले 'शेषमूल' प्रकार] सम्बन्धी नियम ( समूह वाचक अज्ञात राशि के ) वर्गमूल का गुणांक, और ( शेष रहने वाली ) अंतिम ज्ञात (स/ क - बक + अ) = • द्वारा उपर्युक्त क - बक का मान सरलतापूर्वक प्राप्त किया जा सकता है। यहाँ भी 'क' अज्ञात राशि है।
SR No.090174
Book TitleGanitsara Sangrah
Original Sutra AuthorMahaviracharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain, L C Jain
PublisherJain Sanskriti Samrakshak Sangh
Publication Year1963
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, & Maths
File Size35 MB
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