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________________ ६] गणितसारसंग्रहः अथ द्विरप्रशेषमूलजातौ सूत्रम्- मूलं दृश्यं च भजेदशकपरिहाणरूपघातेन । पर्वाग्रमग्रराशौ क्षिपेदतः शेषमूलविधिः ।। ४७ ।। अत्रोद्देशकः मधुकर को दृष्टः खे पद्म शेषपश्च मचतुर्थौ । शेषत्र्यंशो मूलं द्वोवाने ते कियन्तः स्युः ॥ ४८ ॥ सिंहाश्चत्वारोऽद्रौ प्रतिशेष षडंशकादिमार्धान्ताः । मूले चत्वारोऽपि च विपिने दृष्टाः कियन्तस्ते ।। ४९ । १ B में 'द्वौ चाम्रे' पाठ है । लेकर एक में से हासित करने से ज्ञात राशि को उस अन्य ज्ञात राशि, इन दोनों को, प्रत्येक दशा में भिनीय समानुपाती राशियों को प्राप्त शेषों के गुणनफल द्वारा विभाजित करना चाहिये। तब प्रथम राशि में (जिसे ऊपर साधित किया है ) जोड़ देना चाहिये । तत्पश्चात् प्रकीर्णक भिन्नों के 'शेषमूल' प्रकार सम्बन्धी क्रिया की जाती है ॥ ४७ ॥ 15 उदाहरणार्थ प्रश्न वर्गमूल प्रमाण कमलों में दिखाई मधुमक्खियों के झुंड में से एक मधुमक्खी आकाश में दिखाई दी । शेष का पे भाग; पुनः, शेष का भाग; पुनः, शेष का ु भाग तथा झुंड के संख्यात्मक मान का हिया । अंत में शेष दो मधुमक्खियाँ एक आम्रवृक्ष पर दिखाई दीं। बतलाओ कि उस झुंड में कितनी मधुमक्खियाँ हैं ? ॥ ४८ ॥ सिंह दल में से चार पर्वत पर देखे गये । दल के क्रमिक शेषों के वें भाग से आरम्भ होकर वें भाग तक के भिनीय भाग; दल के संख्यात्मक मान के वर्गमूल का द्विगुणित प्रमाण तथा अन्त में शेष रहने वाले ४ सिंह वनमें दिखाई दिये । बतलाओ कि उस दल में कितने सिंह है ? ॥४९॥ मृग दल में से तरुण हरिणियों के दो युग्म वन में देखे गये । झुण्ड के क्रमिक शेषों और (४७) बीजीय रूप से, इस नियम से [ ४.४७ स १ - ब ) ( १ - ब २ ) X ... इत्यादि अ (१ - ब १) (१ - ब२) X · · · इत्यादि + अ पद संहतियाँ प्राप्त होती हैं जिनका शेषमूल के सूत्र में स और अ के स्थान पर प्रतिस्थापन करना पड़ता है । 'शेषमूल' का सूत्र यह है २ क - बक {इ+√()' + अ } '। इस सूत्र का प्रयोग करने में ब का मान शून्य हो जाता है; २ क्योंकि द्विरग्र शेषमूल में गर्भित रहने वाला मूल अथवा वर्गमूल कुल राशि का होता है न कि राशि के भिन्नीय भाग का । जैसा कि इष्ट है, आदेशन करने से हमें क = {२(१-ब,) (१-ब,) X...इत्यादि + अ + २ (१ - ब ) (१ - ब २ ) x इत्यादि स N(१२ (१ –चa) (१ -ब३)X...इत्यादि) प्राप्त होता है। यह फल समीकरण क - अ, – ब, (क - अ० ) - ब२ { क - अ, तापूर्वक प्राप्त हो सकता है; जहाँ कि ब१, ब२ और अ, तथा अ, क्रमशः प्रथम ज्ञात राशि और + अ ब, ( क - अ ) }...... - क - अ = ० से इत्यादि उत्तरोत्तर शेषों के विभिन्न भिन्नीय भाग हैं अंतिम ज्ञात राशि हैं। पुनः, यहाँ 'क' अज्ञात राशि है।
SR No.090174
Book TitleGanitsara Sangrah
Original Sutra AuthorMahaviracharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain, L C Jain
PublisherJain Sanskriti Samrakshak Sangh
Publication Year1963
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, & Maths
File Size35 MB
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