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________________ -४.२२] प्रकीर्णकम्यवहारः फलभारनम्रकने शालिक्षेत्रे शुकाः समुपविष्टाः । सहसोत्थिता मनुष्यैः सर्व संत्रासिताः सन्तः ।।१२।। तेषामधं प्राचीमाग्नेयों प्रति जगाम षड्भागः । पूर्वाग्नेयोशेषः स्वदलोनः स्वार्धवर्जितो यामीम् ॥१३॥ याम्याग्नेयीशेषः स नैऋति स्वद्विपश्चभागोनः । यामोनैऋत्यंशकपरिशेषो वारुणीमाशाम् ॥१४॥ नैर्ऋत्यपरविशेषो वायव्यां सस्वकत्रिसप्तांशः । वायव्यपरविशेषो युतस्वसप्ताष्टमः सौमीम् ॥१५॥ वायव्युत्तरयोयुतिरैशानी स्वत्रिभागयुगहीना । दशगुणिताष्टाविंशतिरवशिष्टा व्योनि कति कीराः॥१६॥ काचिद्वसन्तमासे प्रसूनफलगुच्छभारनम्रोद्याने। कुसुमासवरसरञ्जितशुककोकिलमधुपमधुरनिस्वननिचिते ॥१७॥ हिमकरधवले पृथुले सौधतले सान्द्ररुन्द्रमृदुतल्पे । फणिफणनितम्बबिम्बा कनदमलाभरणशोभाङ्गी ॥१८॥ पाठीनजठरनयना कठिनस्तनहारनम्रतनुमध्या। सह निजपतिना युवती रात्रौ प्रोत्यानुरममाणा ॥१९॥ प्रणयकलहे समुत्थे मुक्तामयकण्ठिका तदबलायाः। छिन्नावन्नौ निपतिता ततञ्यंशश्चेटिकां प्रापत् ॥२०॥ षड्भागः शय्यायामनन्तरान्तरार्धमितिभागाः । षट्संख्यानास्तस्याः सर्वे सर्वत्र संपतिताः॥२१॥ एकाग्रषष्टिशतयुतसहस्त्रमुक्ताफलानि दृष्टानि । तन्मौक्तिकप्रमाणं प्रकीर्णकं वेत्सि चेत् कथय ॥२२॥ अर्द्ध राशि द्वारा हासित करने से प्राप्त राशि के तोते दक्षिण दिशा की ओर उड़े। जो दक्षिण की ओर उड़े तथा आग्नेय दिशा में उड़े उनके अन्तर को, निज के ३ भाग द्वारा हासित करने से प्राप्त राशि के तोते दक्षिण पश्चिम (नैऋत्य) दिशा में उड़े। जो नैऋत्य में उड़े तथा पश्चिम में उड़ें, उनके अन्तर में उस निज के भाग को जोड़ने से प्राप्त संख्या के तोते उत्तर-पश्चिम (वायव्य ) में उड़े । जो वायव्य और पश्चिम में उड़े उनके अन्तर में निज के है भाग को जोड़ने से प्राप्त संख्या के तोते उत्तर दिशा में उड़ें। जो वायव्य और उत्तर में उड़े उनका योगफल निज के 3 भाग द्वारा हासित होने से प्राप्त राशि के तोते उत्तर पूर्व (ईशान) दिशा में उड़े । तथा, २८० तोते ऊपर आकाश में शेष रहे। बतलाओ कुल कितने तोते थे? ॥१२-१६॥ वसन्त ऋतु के मास में एक रात्रि को, कोई......युवती अपने पति के साथ, फल और पुष्पों के गुच्छों से नम्रीभूत हुए वृक्षोंवाले, और फूलों से प्राप्त रस द्वारा मत्त शुक, कोयल तथा भ्रमरवृन्द के मधुर स्वरों से गुंजित बगीचे में स्थित .....महल के फर्श पर सुख से तिष्ठी थी। तभी पति और पत्नी में प्रणयकलह होने के कारण, उस अबला के गले की मुक्तामयी कठिका टूट गई और फर्श पर गिर पड़ी। उस मुक्ता के हार के मुक्ता दासी के पास पहुंचे शय्या पर गिरे, तब शेष के, और पुनः अग्रिम शेष के और फिर अग्रिम शेष के इसी तरह कुल ६ बार में प्राप्त मुक्ता राशि सर्वत्र गिरी। शेष बिना बिखरे हुए ११६१ मोती पाये गये। यदि तुम प्रकीर्णक भिन्नों का साधन करना जानते हो तो उस हार के मोतियों का संख्यात्मक मान बतलाओ ॥१७-२२॥ स्फुरित इन्द्रनीलमणि समान नीले रंग भिन्नीय भाग हैं । यह सूत्र निम्नलिखित समीकरण से प्राप्त किया जा सकता है । क-ब, क-ब. (क-ब, क)-ब हक-बक-ब, (क-ब, क)}-(इत्यादि)...... अ. (१७) कुछ शब्दों का अनुवाद छोड़ दिया गया है, जिन्हें पाठक मूल गाथा में देख सकते हैं।
SR No.090174
Book TitleGanitsara Sangrah
Original Sutra AuthorMahaviracharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain, L C Jain
PublisherJain Sanskriti Samrakshak Sangh
Publication Year1963
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, & Maths
File Size35 MB
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