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गणितसारसंग्रहः प्रोत्फुल्लाम्भोजषण्डे रविकरदलिते त्रिंशदंशोऽभिरेमे तत्रैको मत्तभृङ्गो भ्रमति नभसि का तस्य वृन्दस्य संख्या ॥६॥ आदायाम्भोरुहाणि स्तुतिशतमुखरः श्रावकस्तीर्थकृद्भयः । पूजां चक्रे चतुर्यो वृषभजिनवरात् व्यंशमेषाममुष्य । व्यंशं तुर्य षडंशं तदनु सुमतये तन्नवद्वादशांशी शेषेभ्यो द्विद्विपनं प्रमुदितमनसादत्त किं तत्प्रमाणम् ॥७॥ खवशीकृतेन्द्रियाणां दूरीकृतविषकषायदोषाणाम् । शीलगुणाभरणानां दयाङ्गनालिङ्गिताङ्गानाम् ॥८॥ साधूनां सद्वन्दं सन्दृष्टं द्वादशोऽस्य तर्कज्ञः । स्वयंशवर्जितोऽयं सैद्धान्तश्छान्दसस्तयोः शेषः ॥९॥ षड्नोऽयं धर्मकथी स एव नैमित्तिकः स्वपादोनः । वादी तयोर्विशेषः षङ्गुणितोऽयं तपस्वी स्यात् ॥१०॥ गिरिशिखरतटे मयोपदृष्टा यतिपतयो नवसगुणाष्टसङ्ख्याः । रविकरपरितापितोज्जवलाङ्गाः कथय मुनीन्द्रसमूहमाशु मे त्वम् ॥११॥
बतलाओ कि उस समूह में भ्रमरों की संख्या कितनी थी? ॥६॥ एक वक ने कमलों को एकत्रित कर, जोर से शत स्तुतियाँ करते हुए, पूजन में इन कमलों के भाग और इस भाग के 31 और । भागों को क्रमशः जिनवर ऋषम से आदि लेकर चार तीर्थंकरों को; इन्हीं 3 भाग कमलों के
और भागों को सुमति नाथ को; तब, शेष १९ तीर्थंकरों को प्रमुदित मन से २,२ कमल मेंट किये। बतलाओ कि उन सब कमलों का संख्यात्मक मान क्या है ? ॥७॥ कुछ साधुओं का समूह देखा गया। वे साधु इन्द्रियों को अपने वशमें कर चुके थे, विषरूपी कषाय के दोषों को दूर कर चके थे। उनके शरीर सच्चरित्रता से और सदगुणों रूपी आभरणों से शोभायमान थे तथा दया रूपी अंगना से आलिंगित थे । उस समूह का १२ भाग तर्क शास्त्रियों युक्त था। निज के भाग द्वारा हासित यह १३ वा भाग सदुन्द, संदृष्ट साधुओं युक्त था । इन दोनों का अन्तर [१२ औ
का] सिद्धान्त ज्ञाताओं की संख्या थी। इस अंतिम अनुपाती राशि में ६ का गुणन करने से प्राप्त राशि धर्म कथिकों की संख्या थी । निज के ? भाग द्वारा हासित बह राशि नैमित्तिक ज्ञानियों की संख्या थी । इन अंत में कथित दो राशियों के अन्तर का राशिफल वादियों की संख्या थी। ६ द्वारा गुणित यह राशि कठोर तपस्वियों की संख्या थी। और, ९४८ यति मेरे द्वारा गिरि के शिखर के पास देखे गये, जिनका शरीर सूर्य के किरणों द्वारा परितप्त होकर उज्वल दिखाई देता था। मुझे शीघ्र, इस मुनीन्द्र समुह का मान बतलाओ ॥८-११॥ पके हुए फलों (बलियों) के भार से झुके हुए सन्दर शालि क्षेत्र में कुछ तोते (शुक्र) उतरे। किसी मनुष्य द्वारा भयग्रस्त होकर वे सब सहसा ऊपर उड़े। उनमें से आधे पूर्व दिशा की ओर, दक्षिण पूर्व (आग्नेय) दिशा में उड़े। जो पूर्व और आग्नेय दिशा में उड़े उनके अन्तर को निज की आधी राशि द्वारा हासितकर और पुनः इस परिणामी राशि की
गये मिन्नीय भागों का योग है। यह स्पष्ट है, कि यह समीकरण क-बक = अ द्वारा प्राप्त किया जा सकता है। शेष प्रकार का नियम, बीजीय रूप से निदर्शित करने पर,
होता है, जहाँ ब,, बर, ब आदि उत्तरोत्तर शेषों के (१-ब)(१-बर) (१-ब)x......
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