SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 119
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गणितसारसंग्रहः भागानुबन्ध उद्देशकः स्वत्र्यंशपादसंयुक्तं दलं पञ्चांशकोऽपि च । त्र्यंशः स्वकीयषष्ठार्धसहितस्तद्युतौ कियत् ॥११॥ त्र्यंशाचंशकसप्तमांशचरमैः स्वैरन्वितादर्धतः पुष्पाण्यर्धतुरीयपश्चनवमैः स्वीयैर्युतात्सप्तमात् । गन्धं पञ्चमभागतोऽर्धचरणव्यंशांशकैमिश्रिताद् धूपं चार्चयितुं नरो जिनवरानानेष्ट किं तद्युतौ ॥ स्वदलसहितं पादं स्वत्र्यंशकेन समन्वितद्विगुणनवमं स्वाष्टांशत्र्यंशकाविमिश्रितम् । नवममपि च स्वाष्टांशाद्यर्धपश्चिमसंयुतं निजदलयुतं व्यंशं संशोधय त्रितयात्प्रिय ॥१२०।। स्वदलसहितपादं सस्वपादं दशांशं निजदलयुतषष्ठं सस्वकत्र्यंशमधम् । चरणमपि समेतस्वत्रिभागं समस्य प्रिय कथय समग्रप्रज्ञ भागानुबन्धे ॥१२१॥ अत्राग्राव्यक्तानयनसूत्रम्लब्धात्कल्पितभागा रूपानीतानुबन्धफलभक्ताः। क्रमशः खण्डसमानास्तेऽज्ञातांशप्रमाणानि ॥१२२ १ B. स्वचरणाद्यर्धान्तिमैः । भाग भागानुबंध [ संयवित भिन्नों वाले ] भिन्न पर उदाहरणार्थ प्रश्न यहाँ । स्व के भाग और इस राशि (3) के भाग से संयवित है। : भी इसी तरह संयवित है स्वके भाग और इस संयवित राशि (१) के ३ भाग से संयवित है। बतलाओ कि इन सबका योग प्राप्त करने पर क्या मान प्राप्त होगा ? ॥ ११८॥ श्री जिनवर के पूजन के लिये कोई व्यक्ति, से भारम्भ होकर 3 में अंत होनेवाले भिन्नों से संयवित निष्क के फूल, और से संयवित निष्क के इन्त्र (गंध); और ३,१और से इसी तरह संयवित निष्क की धूप खरीदता है। इन निष्कों का योगफल क्या होगा? ॥ ११९॥ हे मित्र! ३ में से निम्नलिखित को घटाओ: स्व के से तथा इस राशि के भाग से संयवित; स्व के है, और ३ भागों से संयवित ३ (यौगिक अनुगम में); से आरम्भ होकर में अंत होने वाले भिन्नों से संयवित है, और स्वः के भाग से संयवित ॥१२०॥ हे भागानुबंध में समग्र प्रज्ञ मित्र ! क्या योगफल होगा जब कि निम्नलिखित भिन्न जोड़े जावेंगे? स्व के ३ से संयवित १; स्व के भाग से संयवित; स्वके : भाग से संयवित , स्व के भाग से संयवित और स्वके 3 से संयवित ॥१२१॥ अब अग्र अव्यक्त (जिनका योग दिया गया है ऐसे संयवित भिन्नों में प्रत्येक के आरम्भ में आने वाला एक अज्ञात ) निकालने के लिये नियम यह है-- जो इष्ट विघटक तत्वों की संख्या के बराबर है तथा जिनका योग दिया गया है ऐसे कल्पित भागों को, जब क्रम से, इन विघटक तत्वों सम्बन्धी संयवित राशि को मानकर प्राप्त की हुई परिणामी राशियों द्वारा विभाजित किया जाता है तब इष्ट अज्ञात सम्बन्धी राशियों का मान उत्पन्न होता है ॥१२॥ (१२२) गाथा १२३ के प्रश्न को साधित करने पर यह नियम स्पष्ट हो जावेगा किसी भिन्न के तीन कुलक ( sets ) दिये गये हैं; योग १ को, नियम ७५ के अनुसार तीन भिन्नों में विपाटित करने पर हमें ३, और प्राप्त होते हैं। इन भिन्नों को तीन दिये गये, अज्ञात राशि १ वाले, भित्रों के कुलकों को सरल करने से प्राप्त हुई राशियों द्वारा भाजित करने पर हमें, और पी इष्ट राशियाँ प्राप्त होती हैं।
SR No.090174
Book TitleGanitsara Sangrah
Original Sutra AuthorMahaviracharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain, L C Jain
PublisherJain Sanskriti Samrakshak Sangh
Publication Year1963
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, & Maths
File Size35 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy