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________________ -३. 110] कलासवर्णव्यवहारः द्वित्र्यंशाप्तं रूपं त्रिपादभक्तं द्विकं द्वयं चापि । द्विव्यंशोद्धृतमेकं नवकात्संशोध्य वद शेषम् ॥११२॥ इति प्रभागभागभागजाती। भागानुबन्धजातौ सूत्रम्हरहतरूपेध्वंशान् संक्षिप भागानुबन्धजातिविधौ। गुणयाग्रांशच्छेदावंशयुतच्छेदहाराभ्याम् ॥११३।। __ रूपभागानुबन्ध उद्देशकः 'द्वित्रिषटकाष्टनिष्काणि द्वादशाष्टषडंशकैः । पञ्चाष्टमैः समेतानि विंशतः शोधय प्रिय ॥११४॥ सार्धनैकेन पङ्कजं साष्टांशैर्दशभिहिमम । सार्धाभ्यां कुछमं द्वाभ्यां क्रीतं योगे कियद्भवेत ॥१५॥ 'साष्टमाष्टौ षडंशान् षड्द्वादशांशयुतं द्वयम् । त्रयं पञ्चाष्टमोपेतं विंशतेः शोधय प्रिय ॥११६॥ सप्ताष्टौ नवदशमाषकान् सपादान दत्त्वा ना जिननिलये चकार पूजाम् । उन्मीलत्कुरबककुन्दजातिमल्लीमालाभिर्गणक वदाशु तान् समस्य ॥११७।। १ B में गुणयेयांशहरौ सहितांशच्छेद', पाठ है। ३ M द्वदेत् २ यह श्लोक P में अप्राप्य है। ४ यह श्लोक केवल P में प्राप्य है। ने पर क्या शेष रहेगा? ॥११२॥ इस प्रकार, कलासवर्ण षड्जाति में, प्रभागजाति नामक परिच्छेद समाप्त हुआ। भागानुबंध जाति [ संयव भिन्न ] भागानुबंध भिन्नों के सरलीकरण के सम्बन्ध में नियम भागानबंध भिन्न को सरल करने के लिये अंश को संयवित पूर्णसंख्या (associated whole number ) और हर के गुणनफल में जोड़ देते हैं। यदि सम्बन्धित संख्या पूर्णाक न होकर भिनीय हो तो प्रथम भिन्न के अंश और हर को दूसरे भिन्न के क्रमशः अंशसहित हर तथा हर से गुणित करो ॥११॥ रूपभागानुबंध (संयवित पूर्णाक वाले भागानुबंध भिन्न) पर उदाहरणार्थ प्रश्न : निष्क क्रमशः २, ३, ६ और ८ हैं और वे और १ से संयवित हैं। हे मित्र इनके योग को २० में से घटाओ ॥ ११४ ॥ १३ निष्क के कमल, १०१ निष्क का कपूर और २३ निष्क की सौंफ खरीदी गई। योग करनेपर उनका कुल मान बतलाओ? ॥ ११५॥ हे मित्र २० में से निम्नलिखित को घटाओ-१,६१.२१और ३५॥११६॥ एक व्यक्ति जिन मंदिर में पूजन हेतु ७१.८१. ९१ और १०१ माषों के खिले हुए कुरवक, कुन्द, जाति और मल्लिका ( जूही) फूलों के हार भेंट करता, है। हे गणितज्ञ ! मुझे शीघ्र बताओ कि उन माषों को जोड़ने के बाद क्या प्राप्त होगा?॥ ११७॥ (११३) भागानुबंध का शाब्दिक अर्थ संयवित भिन्न है। यह नियम दो प्रकार के संयवित भिन्नों में प्रयोज्य होता है। प्रथम मिश्र संख्या है अर्थात् पूर्णाक से संयवित भिन्न है, और दूसरा प्रकार वह है जिसमें भिन्न से संयवित भिन्न रहते हैं। जैसे 3 से संयवित; स्व के 3 से संयवित | और इस संयवित राशि के १ से संयवित ३ । " से संयवित ३" का अर्थ होता है ३+३का; दूसरे उदाहरण का अर्थ है:३+३ का +2 का (३+३ का 3) इस प्रकार के संयवन को “योजित अनुगमन" (additive consecution) कहते हैं।
SR No.090174
Book TitleGanitsara Sangrah
Original Sutra AuthorMahaviracharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain, L C Jain
PublisherJain Sanskriti Samrakshak Sangh
Publication Year1963
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, & Maths
File Size35 MB
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