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________________ सूत्र अलोक का स्पर्श गणितानुयोग ७३६ २०-तेसि णं देवाणं कि गए बहुए अगए बहुए ? उ०-गोयमा ! नो गए बहुए, अगए बहुए, प्र०-उन देवों का गत अलोक अधिक या अगत अलोक अधिक ? उ०-गौतम ! गत अलोक अधिक नहीं अपितु अगत अलोक अधिक है। गत अलोक से अगत अलोक अनन्तगुण अधिक है । गत अलोक अगत अलोक का अनन्तवां भाग है। गौतम ! अलोक इतना बड़ा कहा गया है । गयाओ से अगए अणंत गुणे, अगयाओ से गए अणंतभागे, अलोए णं गोयमा ! ए महालए पण्णत्ते। -भग. स. ११, उ. १०, सु. २७ । अलोगस्स फुसणं६.५०-अलोए गं भंते ! किण्णा फुडे ? कइहिं वा काहिं फुडे? किं धम्मस्थिकाएणं फुडे ?-जाव कि आगासत्थिकारणं फुडे ? उ०-गोयमा ! नो धम्मत्थिकाएणं फुडे-जाव-नो आगासस्थि कारणं फुडे । आगासत्थिकायस्स देसेणं फुडे । आगासत्थिकायस्स पदेसेहिं फुडे । नो पुढविक्काइएणं फुडे-जाव-नो अद्धासमएणं फुडे। अलोक का स्पर्श६.प्र०-भगवन् ! अलोक किससे स्पृष्ट है ? कितनी कायों से स्पृष्ट है ? क्या धर्मास्तिकाय से स्पृष्ट है ? यावत् क्या आकाशास्तिकाय से स्पृष्ट है ? उ०—गौतम ! न धर्मास्तिकाय से स्पृष्ट है-यावत-न आकाशास्तिकाय से स्पृष्ट है । आकाशास्तिकाय के देश से स्पृष्ट है। आकाशास्तिकाय के प्रदेशों से स्पृष्ट है। पृथ्वीकाय से स्पृष्ट नहीं है यावत्-अद्धासमय (काल द्रव्य) से स्पृष्ट नहीं है। -पण्ण० ५० १५, उ० १, सु०१००५ ॥अलोय पण्णत्ति समत्ता ॥ ॥ अलोक प्रज्ञप्ति समाप्त ॥
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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