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सूत्र
अलोक का स्पर्श
गणितानुयोग
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२०-तेसि णं देवाणं कि गए बहुए अगए बहुए ?
उ०-गोयमा ! नो गए बहुए, अगए बहुए,
प्र०-उन देवों का गत अलोक अधिक या अगत अलोक अधिक ?
उ०-गौतम ! गत अलोक अधिक नहीं अपितु अगत अलोक अधिक है।
गत अलोक से अगत अलोक अनन्तगुण अधिक है । गत अलोक अगत अलोक का अनन्तवां भाग है। गौतम ! अलोक इतना बड़ा कहा गया है ।
गयाओ से अगए अणंत गुणे, अगयाओ से गए अणंतभागे, अलोए णं गोयमा ! ए महालए पण्णत्ते।
-भग. स. ११, उ. १०, सु. २७ । अलोगस्स फुसणं६.५०-अलोए गं भंते ! किण्णा फुडे ?
कइहिं वा काहिं फुडे? किं धम्मस्थिकाएणं फुडे ?-जाव
कि आगासत्थिकारणं फुडे ? उ०-गोयमा ! नो धम्मत्थिकाएणं फुडे-जाव-नो आगासस्थि
कारणं फुडे । आगासत्थिकायस्स देसेणं फुडे । आगासत्थिकायस्स पदेसेहिं फुडे । नो पुढविक्काइएणं फुडे-जाव-नो अद्धासमएणं फुडे।
अलोक का स्पर्श६.प्र०-भगवन् ! अलोक किससे स्पृष्ट है ? कितनी कायों से स्पृष्ट है ? क्या धर्मास्तिकाय से स्पृष्ट है ? यावत् क्या आकाशास्तिकाय से स्पृष्ट है ?
उ०—गौतम ! न धर्मास्तिकाय से स्पृष्ट है-यावत-न आकाशास्तिकाय से स्पृष्ट है ।
आकाशास्तिकाय के देश से स्पृष्ट है। आकाशास्तिकाय के प्रदेशों से स्पृष्ट है।
पृथ्वीकाय से स्पृष्ट नहीं है यावत्-अद्धासमय (काल द्रव्य) से स्पृष्ट नहीं है।
-पण्ण० ५० १५, उ० १, सु०१००५ ॥अलोय पण्णत्ति समत्ता ॥
॥ अलोक प्रज्ञप्ति समाप्त ॥