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अलोय-पण्णत्ति
अलोक-प्रज्ञप्ति
अलोगस्स एगत्तं
अलोक का एकत्व१. एगे अलोए'
-ठाणं. अ. १, सु. ५। १. अलोक एक है। दव्वओ अलोगस्स सरूवं
द्रव्य से अलोक का स्वरूप२. दव्वओ गं अलोए
____२. द्रव्य से अलोक में न जीव द्रव्य है, न अजीव द्रव्य है और णेवत्थि जीवदन्वा, णेवत्थि अजीवदव्वा, णेवत्थि जीवाजीब- न जीवाजीव द्रव्य है । दध्वा।
-भग. स. ११, उ. १०, सु. २३ । एगे अजीवदब्वदेसे अगुरुलहुए ।
अलोक अजीव द्रव्य का एक देश है, वह अगुरुलघु है, अनन्त अणतेहि अगुरुलहुयगुणेहिं संजुत्ते सव्वागासे अणंतभागणे अगुरुलघु गुणों से युक्त है, अनन्त भाग कम पूर्ण आकाश है।
-भग. स. २, उ. १०, सु. १२ । कालओ अलोगस्स णिच्चत्तं
काल से अलोक का नित्यत्व३. कालओ णं अलोए न कयायि-जाव-णिच्चे'
३. काल से अलोक कदापि नहीं था-यावत्-नित्य है। -भग. स. ११, उ. १०, सु. २४/२ । भावओ अलोगस्स अरूवत्त
भाव से अलोक का अरूपत्व४. भावओ णं अलोए णेवत्थि वण्णपज्जवा-जाव-णेवत्यि अगुरु- ४. भाव से अलोक न वर्णपर्यव है-यावत्-न अगुरुलघु
लहुयपज्जवा। -भग. स. ११, उ. १०, सु. २५/३। पर्यव है ? अलोग-संठाण परूवणं
अलोक के संस्थान का प्ररूपण५. ५०-अलोए णं भंते ! कि संठिए पण्णत्ते ?
५. प्र०-भगवन् ! अलोक का कौन सा संस्थान कहा गया है ? उ०-गोयमा ! झुसिर गोल संठिए पण्णत्ते ।
___ उ०-गौतम ! पोले गोले के जैसा संस्थान कहा गया है । --भग. स. ११, उ. १०, सु. ११ । अलोगागास-सरूवं
अलोकाकाश का स्वरूप६.५०–अलोगागासे गं भंते ! कि जीवा, जीवदेसा, जीव ६. प्र०-भगवन् ! अलोकाकाश क्या जीव है, जीव देश है,
पएसा, अजीवा, अजीवदेसा, अजीवपएसा? जीव प्रदेश है, अजीव है, अजीव देश है, अजीव प्रदेश है ? उ०-गोयमा ! नो जीवा, नो जीवदेसा, नो जीव पएसा, उ०—गौतम ! न जीव है, न जीव देश है, न जीव प्रदेश
नो अजीवा, नो अजीवदेसा, नो अजीवपएसा। है, न अजीव है, न अजीव देश है, न अजीव प्रदेश है।
१ सम० स० १, सु०३। २ (क) भग० स० ११, उ० १०, सु० १६ ।
(ग) भग० स० ११, उ० १०, सु० २३ ।
(ङ) पण्ण० ५० १५, सु० १००५ । ३ एवं जाव अलोगे।
(ख) भग० स० ११, उ० १०, सु० २१ । (घ) भग० स० ११, उ० १०, सु० २५/३ ।
-भग० स० ११, उ० १०, सु० २४/२