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सूत्र ११
काल लोक : उदाहरण सहित समय के स्वरूप का प्ररूपण
गणितानुयोग
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(१)
५०–एवं वयंतं पण्णवर्ग चोयए एवं वयासी-जेणं कालेणं प्र०-उस सूचिकार (दरजी) पुत्र ने उस तन्तु के ऊपर वाले
तेणं तुण्णागदारएणं तस्स तंतुस्स उवरिल्ले पम्हे छिण्णे पक्ष्म को जिस काल मे छिन्न किया, क्या वह समय है ?
से समए? उ०-ण भवइ।
उ०-नहीं है। प०-कम्हा?
प्र०-कैसे? उ०- जम्हा अणंताणं संघाताणं समुदयसमितिसमागमेणं एगे उ०-अनन्त संघातों (सूक्ष्मकणों) के सम्मिलित समुदाय के
णिप्फज्जइ । उवरिल्लेसंघाते अविसंघातिए हेछिल्ले परस्पर मिलने से एक पक्ष्म निष्पन्न होता है । ऊपर वाले संघात संघाते णं विसंघाडिज्जइ । अण्णंम्मि काले उवरिल्ले (सूक्ष्मकण) के भिन्न हुए बिना नीचे वाला संघात भिन्न नहीं संघाए विसंघाइज्जइ, अण्णम्मि काले हेट्ठिल्ले संघाए होता है । ऊपर वाला संघात अन्य काल में भिन्न होता है और विसंघाइज्जइ तम्हा से समए ण भवइ,
नीचे वाला संघात अन्य काल में भिन्न होता है इसलिए वह समय
नहीं होता है। (१) एत्तो वि णं सुहुमतराएसमए पण्णत्ते समणाउसो। (१) हे आयुष्मान श्रमण ! इससे भी सूक्ष्मतर "समय" कहा
-अणु० सु० ३६६ । गया है । आवलियाईणं पमाणं
आवलिका आदि का प्ररूपण(२) असंखेज्जाणं समयाणं समुदयसमितिसमागमेणं सा (२) असंख्य समयों के सम्मिलित समुदाय के परस्पर समाएगा आवलियत्ति पवुच्चइ । (३) संखेज्जओ आव- गम से एक "आवलिका" कही जाती है। (३) संख्येय आवलिका लियाओ ऊसासो, (४) संखेज्जाओ आवलियाओ जितना एक उच्छ्वास होता है । (४) संख्येय आवलिका जितना नोसासो।
एक निश्वास होता है। गाहाओ
गाथार्थ५. हदुस्स अणवगल्लस्स, निरुवकिट्ठस्स जंतुणो। (५) जरा और व्याधि रहित सन्तुष्ट मनुष्य का एक उच्छ्एगे ऊसास-नीसासे, एस "पाणु" ति बुच्चइ। वास-निश्वास "पाण" कहा जाता है। ६. सत्तपाणुणि से "थोवे",
(६) सात प्राण जितना (काल) एक "स्तोक" होता है । ७. सत्तथोबाणि से "लवे"।
(७) सात स्तोक जितना (काल) एक "लव" होता है । ८. लवाणं सत्तहत्तरिए, एस "मुहत्ते" वियाहिए। (८) सततर लव जितना काल एक "मुहूर्त" होता है। ६. तिण्णि सहस्सा सत्तय, सयाणि तेहरि'च उस्सासा। (8) तीन हजार सात सौ तिहत्तर उच्छवास जितने काल को एस "मुहुत्तो" भणिओ, सम्वेहि अणंतनाणीहिं। सभी ज्ञानियों ने एक मुहूर्त कहा है।
इस मुहूर्त प्रमाण से(१०) एएणं मुहत्तपमाणेणं तीसमुहत्ता "अहोरत्ते", (१०) तीस मुहूर्त का एक अहोरात्र, (११) पण्णरस अहोरत्ता "पक्खो",
(११) पन्द्रह अहोरात्र का एक पक्ष, (१२) दो पक्खा "मासो",
(१२) दो पक्षों का एक मास, (१३) दो मासा "उऊ",
(१३) दो मासों की एक ऋतु, (१४) तिण्णि उऊ "अयणं".
(१४) तीन ऋतु का एक अयन, (१५) दो अयणाई "संवच्छरे",
(१५) दो अयन का एक संवत्सर, (१६) पंच संवच्छरिए "जुगे",
(१६) पाँच सवत्सरों का एक युग, (१७) वीसं जुगाई "वाससयं",
(१७) बीस युगों के सौ वर्ष, (१८) दसवाससयाइं “वाससहस्सं",
(१८) दस सौ वर्षों का एक हजार वर्ष, (१९) सयं वाससहस्साणं "वाससयसहस्सं",
(१६) सौ हजार वर्षों का एक लाख वर्ष, (२०) चउरासीई काससयसहस्साई से एगे "पुग्वंगे", (२०) चौरासी लाख वर्षों का एक पूर्वांग,