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उड्ढ लोओ
उड्डलोग खेत्तलोगस्स पण्णरसविह परूवणं१. ५० लोग खेत्तलोए में भंते कवि पम्पले ?
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उ०- गोयमा ! पण्णरसविहे पण्णत्ते, तं लोगखेलोए ।
जहा -
१. सोहम्
२ - ११- जाव- १२. अच्चय उड्ढलोगखेत्तलोए, १३. गेवेजविमान उड़लोग खेतलोए, १४. अणुरविमाण उठलोग बेत्तलए, १५. इसिपचार पुढवि उडलोग खेतनोए ।
- भग. स. ११, उ. १०, सु. ६ उलोग खेत्तलोगस्स संठाण परूवणं२. ५० लोग खेललोए
भंते! कि संठिए पम्णते ?
उ०- गोवमा मुगाकार संठिए
।
- भग. स. ११, उ. १०, सु. ६ उलोग खेतलोए जीवाजीव बेस-पदेश-परूवणं
३. पं० – उड्ढलोग खेत्तलोए णं भंते ! कि जीवा जीवबेसा जीवपदेसा अजीवा अजीवदेसा अजीव पदेसा ?
उ०- गोयमा ! जीवा वि तं चेव जाव अजीव पदेसा वि ।
जे जीवा से यम एगिदिया जाय-पंचेरिया अणिदिया,
जे जीवदेसा ते नियमं एगिदिया देसा जाव - अण दिय देसा ।
जे जीव पदेसा ते नियमं पदेसा जाव अणिदिय-पदेसा ।
ऊर्ध्व लोक
ऊर्ध्वलोक क्षेत्र लोक का पन्द्रह प्रकार से प्ररूपण -
१. प्र० – भगवन् ! उर्ध्वलोक क्षेत्र लोक कितने प्रकार का कहा गया है ?
उ०- गौतम ! पन्द्रह प्रकार का कहा गया है, यथा
(१) सौधर्म कल्प ऊर्ध्वलोक क्षेत्र लोक,
(२-११) यावत् (१२) अच्युत (काप) सोक क्षेत्रलोक,
(१३) चैवेयक विमान लोक क्षेत्र लोक (१४) अनुत्तर विमान असोक क्षेत्र लोक, (१५) ईपत् प्राग्भार पृथ्वी लोक क्षेत्र लोक ।
ऊर्ध्वलोक क्षेत्र लोक के संस्थान का प्ररूपण२. प्र० - भगवन् ! ऊर्ध्वलोक क्षेत्र लोक का संस्थान किस प्रकार का कहा गया है ?
उ०- गौतम ! ऊर्ध्वं मृदङ्गकार संस्थान कहा गया है।
ऊर्ध्वलोक क्षेत्र लोक में जीव तथा अजीव के देशों और प्रदेशों का प्ररूपण -
३. प्र० - भगवन् ! ऊर्ध्वलोक क्षेत्र लोक में क्या जीव, जीव के देश, जीव के प्रदेश तथा अजीव, अजीव के देश अजीव के प्रदेश हैं ?
उ०- गौतम ! जीव हैं, (प्रश्न सूत्र के समान ) - यावत, - अजीव के प्रदेश भी है।
जो जीव हैं वे निश्चित रूप से एकेन्द्रिय है-यावत्पंचेन्द्रिय हैं या अनिन्द्रिय के देश हैं ।
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जो जीव के देश हैं वे निश्चित रूप से एकेन्द्रिय के देश हैं, - यावत् — अनिन्द्रियके देश हैं।
जो जीव के प्रदेश हैं वे निश्चित रूप से एकेन्द्रिय के प्रदेश हैं -- यावत् — अनिन्द्रिय के प्रदेश हैं ।