________________
सूत्र १०६४
तिर्यक् लोक : नक्षत्रों के ताराओं की संख्या
गणितानुयोग
६.३
१
२८. १०-उत्तरासाढा णक्खत्त कतितारे पण्णत्त ?
(२८) प्र०-उत्तराषाढा नक्षत्र के कितने तारे कहे गये हैं ? उ०-चउतारे पण्णते।
उ०-चार तारे कहे गये हैं। - सूरिय. पा. १०, पाहु. ६, सु. ४२ (क) ठाणं, ठा. ४, उ. ४, सु. ३८६ ।
(ख) सम. ४ सु.६ । (ग) सम० की गणना से ६८, जम्बु० की गणना से ६७ नक्षत्र होते हैं।) (घ) चन्द० पा० सु० ४२ ।।
आगमों में और ज्योतिष ग्रन्थों में नक्षत्रों के ताराओं की संख्या समान होनी चाहिए क्योंकि नक्षत्रों के ताराओं की संख्य । आकाश में तो सुनिश्चित एवं एक रूप है फिर यह अन्तर क्यों है । सुर्य प्रज्ञप्ति और जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति में मूल नक्षत्र का एक तारा कहा गया है और समवायांग के इग्यारहवें समवाय में मुल नक्षत्र के इग्यारह तारे कहे गये हैं। सूर्य प्रज्ञप्ति और जम्बुद्वीप प्रज्ञप्ति में नक्षत्रों के ताराओं की गणना अभिजित् नक्षत्र से प्रारम्भ होकर उत्तराषाढा नक्षत्र पर्यन्त की कही गई है। किन्तु सूर्य प्रज्ञप्ति में अनुराधा नक्षत्र के पाँच तारे कहे गये हैं और स्थानांग, समवायांग, जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति में अनुराधा नक्षत्र के चार तारे गये हैं। यदि यह अन्तर लिपिक युग के लेखकों की असावधानी से हो गया हो तो आधुनिक आकाश दर्शक यन्त्र द्वारा निर्णय करके संशोधन करना आवश्यक है। आगमों में सदा नक्षत्रों के ताराओं की वास्तविक संख्या एवं एकवाक्यता होना ही उनकी प्रामाणिकता का मूल है।
नक्षत्रों के तारे क्रम० स्थानांग स्थान
विवरण २२७
अभिजित् के ३ तारे
श्रवण के तीन तारे ४७३
धनिष्ठा के ३ तारे
सूत्र
पूर्वाभाद्र पद के २ तारे उत्तराभाद पद के दो तारे
m m x.rror murrrorxmro
GG WWW.GM WEGWGG ० ० ० ०WG
५३६
४७३
अश्विनी के ३ तारे भरणी के ३ तारे कृत्तिका के ६ तारे रोहिणी के ५ तारे मृगशिरा के ३ तारे आर्द्रा का १ तारा पुनर्वसु के ५ तारे पुष्य के ३ तारे अश्लेषा के ६ तारे मघा के ७ तारे पूर्वाफाल्गुनी के २ तारे उत्तराफाल्गुनी के २ तारे हस्त के ५ तारे चित्रा का ? तारा स्वाती का १ तारा (क्रमशः)
५३६
५८६
११०
४७३
xxx
५५