SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 759
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५६६ लोक-प्रज्ञप्ति तिर्यक् लोक : नक्षत्रों के देवता सूत्र १०६२-१०६३ २७. ५०–ता पुब्वासाढा णक्खत्ते कि देवयाए पण्णत्ते? (२७) प्र०-पूर्वाषाढा नक्षत्र का कौनसा देवता कहा गया है? उ०-आउदेवयाए' पण्णत्ते, उ०-आप =जल देवता कहा गया है । २८. ५०–ता उत्तरासाढा णक्खत्ते कि देवयाए पण्णते? (२८) प्र०-उत्तराषाढा नक्षत्र का कौनसा देवता कहा गया है? उ०-विस्सदेवयाए पण्णत्ते, उ०-विश्व देवता कहा गया है। -सूरिय. पा. १०, पाहु. १२, सु. ४६ णक्खत्ताणं संठाणं नक्षत्रों के संस्थान६३. ता कहं ते णक्खत्त संठिई ? आहिए त्ति वएज्जा, ६३. नक्षत्रों के संस्थान किस प्रकार के हैं ? कहें । १.५०-ता एएसि णं अट्ठावीसाए णक्ख ताणं अभीयो (१) प्र०-इन अठाईस नक्षत्रों में अभिजित् नक्षत्र का णक्खत्ते कि संठिए पण्णत्ते ? संस्थान किस प्रकार का कहा गया है ? उ०—गोसीसावलि संठिए पण्णत्ते, उ०- 'गो शृंग' जैसा संस्थान कहा गया है । २. ५०–ता सवणे णक्खत्ते कि संठिए पण्णते? (२) प्र०-श्रवण नक्षत्र का संस्थान किस प्रकार का कहा गया है? उ०-काहार संठिए पण्णत्ते, उ०—'कावड' जैसा संस्थान कहा गया है । ७ आपो-जलनामा देवस्तेन पूर्वाषाढा तोमिति प्रसिद्धम् । ४ (क) विश्वेदेवास्त्रयोदश । (ख) प०-एएसि ण भंते ! अट्ठावीसाए णक्खत्ताणं अभीई णक्खत्ते किं देवयाए पण्णत्ते ? उ०-गोयमा ! बम्हदेवया पण्णत्ता, ___एएणं कमेणं णेयव्वा अणुपरिवाडी य इमाओ देवयाओ, गाहाओ-(१) बम्हा, (२) विण्ड, (३) वसू, (४) वरुणे, (५) अय, (६) अभिवद्धी, (७) पूसे, (८) आसे, (९) जमे, (१०) अग्गी, (११) पयावई, (१२) सोमे, (१३) रुद्दे, (१४) अदिइ ।। १ ॥ (१५) बहस्सई, (१६) सप्पे, (१७) पिऊ, (१८) भगे, (१६) अज्जम, (२०) सविआ, (२१) तट्ठा, (२२) वाउ, (२३) इंदग्गी, (२४) मित्तो, (२५) इंद, (२६) निरई, (२७) आउ, (२८) विस्सा य ।। २ ।। एवं णक्खत्ताणं एगा परिवाडी अब्वा, जावप०-उत्तरासाढा णक्खत्ते ण ऋते किं देवयाए पण्णत्ते ? उ०–गोयमा ! विस्सदेवया पण्णत्ता । -जम्बु० वक्ख० ७. सु. १५७ । (ग) एतया-ब्रह्म-विष्णु-वरुणादिरूपया परिपाट्या, न तु परतीथिकप्रयुक्त-अश्व-यम-दहन-कमल आदिरुपया नेतव्या-परिसमदि प्रापणीया । गाहाओ-(१) बम्हा, (२) विण्हू, (३) वसू, (४) वरुणे, (५) अय, (६) वुड्ढी, (७) पूस, (८) आस, (६) जमे । (१०) अग्गि, (११) पयावइ, (१२) सोमे, (१३) रुद्दे, (१४) अदिति, (१५) बहस्सई, (१६) सप्पे ॥१॥ (१७) पिउ, (१८) भग, (१६) अज्जम, (२०) सविआ, (२१) तट्ठा, (२२) वाउ, (२३) तहेव इंदग्गी। (२४) मित्ते, (२५) इंदे, (२६) निरूई, (२७) आउ, (२८) विस्साय बोद्धब्वे ॥ २ ॥ -जम्बु० वक्व०७, सु. १७०. (घ) चंद. पा. १० सु. ४६. (१) एक ही आगम में अट्ठावीस नक्षत्र देवताओं के नामों की गाथाएँ भिन्न भिन्न रचना शैली में दो बार आना, विचारणीय. प्रश्न है । इसका समाधान बहुश्रुत करें तो जिज्ञासुओं के ज्ञान की वृद्धि होंगी।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy