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गणितानुयोग : प्रस्तावना ४३ इसी प्रकार सूर्य इस दूसरी पूर्णिमा को किस नक्षत्र से योग गणितीय प्रक्रिया करता है। यह निकालने हेतु यहाँ भी ध्रुव राशि ६६+ + पूर्व क्रम की अपेक्षा से हेमन्त ऋतु की प्रथम आवृत्ति
वास्तव में दूसरी होती है । युगसम्बन्धी दस अयनों के प्रवर्तन
अवसर में प्रथम की दोनों ओर गणना होती है। अतः उसके ६२ ६२x६७
स्थान में दो ध्रुवांक रखते हैं। पूर्व कथित गाथानुसार क्रम से
इसमें से १ घटाने पर २-१ = १ प्राप्त होता है । यहाँ पूर्वकथित मुहूर्त प्राप्त होते हैं। इस गुणितांक रूप गुणनफल में से पुष्य
होती है। नक्षत्र का शोधनक
को घटाया जाता है।
नोट-उपर्युक्त ध्र वराशि को निम्न प्रकार से प्राप्त करते नोट-यह शोधनक किस प्रकार प्राप्त करते हैं ? पूर्व युग की समाप्ति -
६२ x ६७ है जिसे दो से गुणित करने पर १३२+१+
२.
६२-६७९
के अवसर पर पुष्य नक्षत्र का २३ भाग समाप्त होकर ६४
१ युग में सूर्य के १० अयन होते हैं । सूर्य के १० अयन से चंद्र नक्षत्र के ६७ पर्याय उपलब्ध होते हैं। अतः १ अयन से
भाग शेष रहता है। इसके मुहूर्त बनाने हेतु ३० का गुणन
४३ ३३ करने से ४३.०= १६+++
मुहूर्त प्राप्त
६७-६७ पर्याय प्राप्त होंगे । यहाँ ६ पूर्णांक होने से उन्हें
१०१०
छोड़कर इतनी पर्याय में मुहूर्त निकालने हेतु त्रैराशिक करते
होते हैं।
हैं । यहाँ १० भागों से २७२१ भाग लब्ध होते हैं, अतः ७ भागों
१.
०२ अतः इसे १३२+ - - -में से प्रताले
६२६२x६७
६७
से कितना लब्ध होगा : + मुहूर्त प्राप्त होते हैं। इसमें से अतिक्रमित ३०
___२७२१४७: १० = ( १८+8. )+ (२१४ मुहूर्त पुष्य के, १५ मुहूर्त अश्लेषा के, ३० मुहूर्त मघा के तथा ३० मुहूर्त पूर्वाफाल्गुनी के निकाल देने पर शेष मुहूर्त उत्तराफाल्गुनी के ) दिवस प्राप्त होते हैं । साथ योग के रह जाते हैं जो ७+-+ मुहूर्त होते हैं ।
(वास्तव में संक्षेप में २०२१ ४७ : १०= १२८१’ ६७ इसी प्रकार अगली-अगली पूर्णिमाओं की गणना होती है। सूत्र १०६६, पृ० ५७५, ५७६
होते हैं।) यहाँ पूर्वोक्त विधि के अनुसार ध्रुव राशि द्वारा अमावस्याओं इनके मुहूर्त निकालने हेतु ३० का गुणा करने पर में चन्द्र और सूर्य के साथ नक्षत्रों के योगों का विवरण है। सूत्र १०६७, पृ० ५७६-५७७
o=५४०+२७== ५६७ मुहूर्त प्राप्त यहाँ हेमंत ऋतु संबंधी पाँच आवृत्ति में चन्द्र सूर्य का नक्षत्र होते हैं। योग प्रतिपादित हुआ है।
जब हस्त नक्षत्र का ५+२+
'६२ '६२४६७७
मुहूर्त शेष रहता है तब चन्द्र वर्तमान होकर हेमन्त ऋतु की प्रथम आवृत्ति को प्रवर्तित करना है।
इसी प्रकार २१४१.४३०-४४४ = ३६ ___ अतः ५६७+०३६ = ५७३३८ मुहूर्त होते हैं।