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________________ ५४२ लोक-प्रज्ञप्ति तिर्यक् लोक : सूर्यों को तिरछी गति सूत्र १०४१ (ख) ता जया णं सूरिए सव्व बाहिरं मंडल उवसंक- (ख) जब सूर्य सर्व बाह्यमण्डल को प्राप्त करके गति करता मित्ता चारं चरइ, तयाणं उत्तमकट्टपत्ता उक्कोसिया है तब परम उत्कर्ष प्राप्त उत्कृष्ट अठारह मुहूर्त की रात्रि होती अट्ठारसमुहुत्ता राई भवइ । जहण्णए दुवालसमुहुत्ते है और जघन्य बारह मुहूर्त का दिन होता है। दिवसे भवइ, तंसि च णं दिवसंसि सढि जोयणसहस्साई तावक्खेत्ते उस दिन साठ हजार योजन का तापक्षेत्र कहा गया है उस पण्णत्ते तया णं पंच जोयणसहस्साई सूरिए एगमेगे णं समय सूर्य प्रत्येक मुहूर्त में पाँच पाँच हजार योजन (जितने क्षेत्र) मुहुत्ते णं गच्छइ, को पार करता है।' तत्थ णं जे ते एवमाहंसु इनमें से जो इस प्रकार कहते हैं-- ३. ता चत्तारि चत्तारि जोयणसहस्साई सूरिए एगमेगे सूर्य प्रत्येक मुहूर्त में चार चार हजार योजन (जितने क्षेत्र) णं मुहुत्ते णं गच्छइ, ते एवमाहंसु को पार करता है। (क) ता जया णं सूरिए सम्वन्भंतरं मंडलं उवसंक- (क) जब सूर्य सर्व आभ्यन्तर मण्डल को प्राप्त करके गति मित्ता चारं चरइ, तया णं उत्तमकट्ठपत्ते उक्कोसए करता है तब परम उत्कर्ष प्राप्त उत्कृष्ट अठारह मुहूर्त का दिन अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ । जहणिया दुवालसमुहुत्ता होता है ओर जघन्य बारह मुहूर्त की रात्रि होती है। राई भवइ, तंसि च णं दिवसंसि बावरि जोयणसहस्साई उस दिन बहत्तर हजार योजन का तापक्षेत्र कहा गया है। तावेक्खेत्ते पण्णत्ते, (ख) ता जया णं सूरिए सव्व बाहिरं मंडल उवसंक- (ख) जब सूर्य सर्व बाह्यमण्डल को प्राप्त करके गति करता मित्ता चारं चरइ तया णं उत्तमकट्ठपत्ता उक्कोसिया है तब परम उत्कर्ष प्राप्त उत्कृष्ट अठारह मुहूर्त की रात्रि होती अट्ठारसमुहुत्ता राई भवइ । जहण्णए दुवालसमुहुत्ते है और जघन्य बारह मुहूर्त का दिन होता है । दिवसे भवइ, तंसि च णं दिवसंसि अडयालीसं जोयणसहस्साइं उस दिन अडतालीस हजार योजन का ताप क्षेत्र कहा गया तावक्खेत्ते पण्णत्ते तया णं चत्तारि चत्तारि जोयण- है, उस समय सूर्य प्रत्येक मुहूर्त में चार चार हजार योजन सहस्साई सूरिए एगमेगे णं मुहुत्ते णं गच्छइ, (जितने क्षेत्र) को पार करता है।' तत्थ णं जे ते एवमाहसु इनमें से जो इस प्रकार कहते हैं४. ता छवि पंच वि, चत्तारि वि जोयणसहस्साई (४) सूर्य प्रत्येक मुहूर्त में छः, पाँच और चार हजार योजन सूरिए एगमेगे णं मुहुत्ते गं गच्छइ, ते एवमाहंसु, (जितने क्षेत्र) को भी पार करता है ! ता सूरिए णं उग्गमणमुहुत्तंसि य, अत्थमणमुहुत्तंसि य सूर्य उदय-मुहूर्त (काल) में और अस्त-मुहूर्त (काल) में शीघ्र सिग्धगई भवइ, तया गंछ छ जोयणसहस्साइं एग- गति वाला होता है, उस समय छ: छः हजार योजन (जितने मेगे गं मुहुत्ते णं गच्छइ, ___ क्षेत्र) को प्रत्येक मुहूर्त में पार करता है । मज्झिमं तावक्खेत्ते समासाएमाणे समासाएमाणे सूरिए मध्यम ताप क्षेत्र को प्राप्त सूर्य मध्यम गति वाला होता है, मज्झिमगइ भवइ, तया णं पंच पंच जोयणसहस्साइं उस समय वह प्रत्येक मुहूर्त में पाँच पाँच हजार योजन (जितने एगमेगे णं मुहुत्ते णं गच्छइ, क्षेत्र) को पार करता है। विधियाँ-१. ( ७२००० = ४०००, ४१९२० = ४०००)
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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