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________________ सूत्र १०३४ १०३६ तिर्यक् लोक रात-दिन का प्रमाण CO ४. ५० - जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे मंदरस्स पव्वयस्स केवइयाए अबाहाए सत्यवाहिरे सूरमण्डले? उ०- गोयमा ! पणयालीसं जोयणसहस्साइं तिष्णि य तीसे जोयणसए अबाहाए सव्वबाहिरे सूरमंडले पण्णत्ते ५. प० - जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे मंदरस्स पव्वयस्स केवइयाए अबहाए सत्यवाहिरात सूरमण्डले पण्णले ? उ०- गोपमा ! पणवालीस जोपणसहस्साई तिमि व सत्तावीसे जोयणसए तेरस य एगसट्टिभागे जोयणस्स अबाहाए बाहिराणंतरे सूरमण्डले पण्णत्ते । ६. प० - जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे मंदरस्स पव्वयस्स केवइयाए अबाहाए बाहिर तच्चे सूरमण्डले पण्णत्ते ? उ०- गोयमा ! पणयालीसं जोयणसहस्साइं तिष्णि य चवीसे जोयणसए छब्वीसं च एगसट्टिभागे जोयणस्स अबाहाए बाहिर तच्चे सूरमण्डले पण्णत्ते । एवं एएवं उपाए पविसमाणे प्यूरिए तथा अंतराओ मण्डलाओ तयाणंतरं मण्डलं संकममाणे संक्रममाणे दो दो जोयणाई अडयालीसं च एगसट्ठिभाए जोयणस्स एगमेगे मण्डले अबाहाए वुद्धिं णिव्वुड्ढेमाणे णिव्वुड्ढेमाणे सव्वमंतरं मण्डलं उवसंकमित्ता चारं चरइ । १ ३ - जंबु. वक्ख. ७, सु. १३१ सव्व सूरमण्डलम सूरस्स गमणागमण-राईदिय प्पमाण ३५. १० – ता जया णं सूरिए सव्वमंतराओ मण्डलाओ सव्वबाहिरं मण्डलं उवसंकमित्ता चारं चरइ । सव्व बाहिओ मण्डलाओ सव्वभंतरं मण्डलं उवसकमित्ता चारं चरइ । एस णं अद्धा केवइयं राइदियग्गे णं आहितेत्ति वदेज्जा ? उ०ता तिमि छाव राइदिए राइदियो अहिलेति वदेज्जा ।" सूरिय. पा. १, पाहु. १, सु. सूरमण्डले सूरस्स सइ दुक्तो वा चार-३६. ५० - ता एताए अद्धाए सूरिए कति मण्डलाई चरइ ? उ०- ता चुलसीयं मंडलसयं चरइ । बासी मण्डलसयं दुक्खुत्तो चरइ, माणे चेव, पवेसमाणे चेव । * दुवे य खलु मण्डलाई सई चरई, तं चेय मण्डल सम्ववाहिर दे चन्द. पा. १ सु. ६ । चन्द. पा. १ सुः १० । तं जहा - क्खिम जहा— सव्वमंतरं - सूरिय. पा. १, पाहु. १, सु. १० गणितानुयोग ५३१ (४) प्र० - भगवन् ! जम्बूद्वीप के मन्दरपर्वत के कितने व्यवहित अन्तर पर सर्वबाह्यसूर्यमण्डल कहा गया है ? उ०- हे गौतम! सर्वासूर्यमण्डल पैतालीस हजार तीन सौ तीस योजन के अन्तर पर कहा गया है । (५) प्र० ] भगवन्! जम्बूद्वीप के मन्दरपर्वत से कितने व्यवहित अन्तर पर सर्व वाह्यानन्तर सूर्यमण्डल कहा गया है ? उ०—हे गौतम! सर्व बाह्यानन्तर सूर्यमण्डल पैंतालीस हजार तीन सौ सत्तावीस योजन और तेरह योजन के इगसठ भाग जितने अन्तर पर कहा गया है । (६) प्र० - भगवन् ! जम्बूद्वीप के मन्दरपर्वत से कितने व्यवहित अन्तर पर बाह्य तृतीय सूर्य मण्डल कहा गया है ? उ० – हे गौतम ! बाह्य तृतीय सूर्य मण्डल पैंतालीस हजार तीन सौ चौबीस योजन और छब्बीस योजन के इकसठ भाग जितने अन्तर पर कहा गया है । इस क्रम से प्रवेश करता हुआ सूर्य एक मण्डल से दूसरे मण्डल पर संक्रमण करता करता प्रत्येक मण्डल की दूरी में दो दो योजन और अड़तालीस योजन के इगसठ भाग जितनी कमी करता करता सर्वाभ्यन्तर मण्डल पर उपसंक्रान्त होकर गति करता है । सर्व सूर्य मण्डलों के मार्ग में सूर्य के गमनागमन के रातदिनों का प्रमाण ३५. प्र०. - सूर्य जब सर्व आभ्यन्तर मण्डल के सर्व बाह्य मण्डल की ओर तथा सर्व बाह्य मण्डल से सर्व आभ्यन्तर मण्डल की ओर गति करता है, तब वह सूर्य मण्डलों का मार्ग कितने रातदिनों में पार करता है ? यह कहें । उ०- वह मार्ग तीन सौ छासठ पूर्ण दिन-रात में पार करता है - ऐसा कहा है । सूर्य मण्डलों में सूर्य की एक बार अथवा दो बार गति३६. प्र० - इन सूर्यमण्डलों के मार्ग में सूर्य कितने मण्डलों में गति करता है ? ० सूर्य एक सौ चौरासी मण्डलों में गति करता है। एक सौ बियासी मण्डलों में सूर्य दो बार गति करता है, यथा - निष्क्रमण करता हुआ और प्रवेश करता हुआ । दो मण्डलों में सूर्य एक बार गति करता है, यथा-सर्वआभ्यन्तर मण्डल में और सर्व बाह्यमण्डल में । २ सम. ८२ सु. १ ।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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