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________________ सूत्र १०१६-१०१७ तिर्यक् लोक : पौरुषी-छाया का निष्पादन गणितानुयोग ५११ एस णं से समिए तावक्खेत्ते, एगे एवमाहंसु, यह (सूर्य से) उत्पन्न ताप क्षेत्र है । वयं पुण एवं वयामो हम फिर इस प्रकार कहते हैता जाओ इमाओ चंदिम-सूरियाणं देवाणं विमाणेहितो सूर्य देवों के विमानों से निकले हुए तेज से तेज तथा चन्द्र लेसाओ बहित्ता उच्छूढा अभिणिसट्ठाओ पंताति, देवों के विमानों से निकले हुए उद्योत से उद्योत निकलकर पुद्गलों को तपाते हैं; प्रकाशित करते है । एयासि णं लेसाणं अंतरेसु अण्णयरीओ छिण्णलेसाओ सूर्य के तेज से निकले हुए तेज तथा चन्द्र के उद्योत से संमुच्छति, तए ण ताओ छिण्णलेस्साओ संमुच्छ्यिाओ निकले हुए उद्योत सम्मूछित होते हुए अनन्तर स्थित बाह्य समाणीओ तदणंतराइ बाहिराइं पोग्गलाई सतावेतीति, पुद्गलों को तपाते हैं, प्रकाशित करते हैं । एस णं से समिए तावक्खेत्ते, यह सूर्य से उत्प तापक्षेत्र है। -सूरिय. पा. ६, सु. ३० (यह चन्द्र से उत्पन्न प्रकाशक्षेत्र है।) पोरिसिच्छाय-निवत्तणं पौरुषी-छाया का निष्पादन१७. ५०-ता कइकट्ठ ते सूरिए पोरिसि च्छाय णिव्वत्ति ? १७. प्र०--सूर्य कितने समय में “पौरुषी-छाया" की निष्पत्ति आहिए त्ति वएज्जा, करता है ? कहें। उ०–तत्थ खलु इमाओ पणवोस पडिवत्तीओ पण्णत्ताओ, उ०-इस सम्बन्ध में ये पच्चीस प्रतिपत्तियाँ (मान्यतायें) तं जहा कही गई हैं, यथातत्थेगे एवमाहंसु उनमें से एक (मान्यता वाले) इस प्रकार कहते हैं१. ता अणुसमयमेव सूरिए पोरिसिच्छायं णिवत्तेइ, (१) सूर्य प्रत्येक समय में पौरुषी-छाया की निष्पत्ति आहिए त्ति वएज्जा, एगे एवमाहंसु, करता है। एगे पुण एवमाहंसु एक (मान्यता वाले) फिर इस प्रकार कहते है-- २. ता अणुमुहुत्तमेव सूरिए पोरिसिच्छायं णिवत्तेइ, (२) सूर्य प्रत्येक मुहूर्त में पौरुषी-छाया की निष्पत्ति आहिए त्ति वएज्जा करता है। जाओ चेव ओयसंठिईए पडिवत्तीओ एएणं अभिलावणं (३-२४) ओज संस्थिति की जितनी (पच्चीस) प्रतिपत्तियाँ णेयवाओ,-जाव-२ (३-२४) हैं उतनी ही यहाँ इन अभिलापों से जाननी चाहिए। एगे पुण एवमाहंसु एक (मान्यता वाले) फिर इस प्रकार कहते हैं -- २५. ता अणुउस्सप्पिणि-ओसप्पिणिमेव सूरिए पोरि- (२५) सूर्य प्रत्येक उत्सपिणी-अवसर्पिणी में 'पौरुषी-छाया" सिच्छायं णिव्वत्तेइ, आहिए ति वएज्जा, एगे एवमाहंसु, की निष्पत्ति करता है। वयं पुण एवं वयामो हम फिर इस प्रकार कहते हैं१. ता सूरियस्स णं (१) सूर्य की ऊँचाई और लेश्या (प्रकाश) की अपेक्षा करके उच्चत्तं च लेसं च, पडुच्च छायुद्देसे, छाया (पौरुषी-छाया) का कथन हैं । २. उच्चत्तं च, छायं च पडुच्च लेसुद्देसे, (२) सूर्य की ऊचाई और छाया (पौरुषी-छाया) की अपेक्षा करके लेश्या (प्रकाश) का कथन है । ३. लेस्सं च छायं च पडुच्च उच्चतो(से' (३) सूर्य की लेश्या (प्रकाश) और छाया (पौरुषी-छाया) -सूरिय. पा. ६, सु. ३१ की अपेक्षा करके ऊँचाई का कथन है। २ सूरिय. पा. ६, सु. २७ । १ ३ चन्द. पा. चन्द. पा. सु.३० । सु. ३१ ।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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