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________________ ५०८ लोक-प्रज्ञप्ति तिर्यक् लोक : तापक्षेत्र और अंधकारक्षेत्र सूत्र १०१३-१०१४ " उ०—ता अट्टतरि जोयणसहस्साई तिण्णि य तेत्तीसे जोयण- उ०-अठहत्तर हजार तीन सौ तेतीस योजन और एक सए जोयणतिभागं च आयामेणं, आहिए त्ति वएज्जा, योजन के तीन भागों में से एक भाग जितना है । तया णं उत्तमकट्टपत्ते उक्कोसेणं अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे उस समय सूर्य का परम उत्कर्ष होने से उत्कृष्ट अठारह भवति, जहणिया दुवालसमुहुत्ता राई भवइ, मुहूर्त का दिन होता है और जघन्य बारह मुहूर्त की रात्रि होती है। प०–ता जया णं सूरिए सव्वबाहिरं मंडलं उवसंकमित्ता प्र०--जब सूर्य सर्वाभ्यन्तर मण्डल का लक्ष्य करके गति चारं चरइ तया णं किं संठिया तावखेत्तसंठिई ? करता है तब सूर्य के उस ताप क्षेत्र की संस्थिति किस प्रकार की आहिए त्ति वएज्जा, होती है ? कहें, उ०–ता उद्धीमुह-कलंबुया पुप्फसंठिया तावक्खेत्तसंठिई उ०-- ऊपर की ओर मुंह किये हुए नलिनी पुष्प जैसी आहिए त्ति वएज्जा, होती है। एवं जं अभिंतरमंडले अंधकारसंठिईए पमाणं तं जिस प्रकार आभ्यन्तर मण्डल में अन्धकार को संस्थिति का बाहिरमंडले तावक्खेत्तसंठिईए जं तहिं तावक्खेत्त- प्रमाण हैं वही बाह्य मण्डल में ताप क्षेत्र की संस्थिति का प्रमाण संठिईए तं बाहिरमंडले अंधकारसंठिईए भाणियव्वं, है और आभ्यन्तर मण्डल में जो ताप क्षेत्र की संस्थिति का प्रमाण जाव... है वही बाह्य मण्डल में अन्धकार की संस्थिति का प्रमाण कहना चाहिए-णवत्तया णं उत्तमकट्ठपत्ता उक्कोसेणं अट्ठारस मुहुत्ता राई उस समय सूर्य का परम उत्कर्ष होने से उत्कृष्ट अठारह भवति, जहण्णिए दुवालस मुहुत्ते दिवसे भवइ,' मुहूर्त की रात्रि होती है और जघन्य बारह मुहर्त का दिन -सूरिय. पा. ४, सु. २५ होता है। जंबहीवे सूरियाणं खेत्तं किरिया परूवणं जम्बूद्वीप में सूर्यों की क्षेत्रों में क्रिया प्ररूपण-. १४. ५०—(क) जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे सूरिया–कि तीए खेत्ते १४. प्र०—(क) हे भगवन् ! जम्बूद्वीप नामक द्वीप में सूर्य क्या किरिया कज्जइ? अतीत क्षेत्र में क्रिया करते हैं ? (ख) पडुप्पन्ने खेत्ते किरिया कज्जइ ? (ख) वर्तमान क्षेत्र में क्रिया करते हैं ? (ग) अणागए खेत्ते किरिया कज्जइ ? (ग) या अनागत क्षेत्र में क्रिया करते हैं ? उ०—(क) गोयमा ! नो तीए खेत्ते किरिया कज्जइ, उ०—(क) हे गौतम ! वे अतीत क्षेत्र में क्रिया नहीं करते हैं। (ख) पडुप्पण्णे खेत्ते किरिया कज्जइ, (ख) वर्तमान क्षेत्र में क्रिया करते हैं, (ग) नो अणागए खेत्ते किरिया कज्जइ, (ग) अनागत क्षेत्र में क्रिया नहीं करते हैं। प०-सा भंते ! किं पुट्ठा किरिया कज्जति, अपुट्ठा किरिया प०-हे भगवन् ! वे स्पृष्ट क्रिया करते हैं या अस्पृष्ट क्रिया कज्जति ? करते हैं ? उ०-गोयमा ! पुट्ठा किरिया कज्जति, नो अपुट्ठा किरिया उ०-हे गौतम ! वे स्पृष्ट क्रिया करते हैं, अस्पृष्ट क्रिया कज्जति-जाव-२ नहीं करते हैं-यावत - १ (क) जम्बु. वक्ख. ७ सु. १३५ । (ख) चन्द. पा. ४ सु. २५ । १ –यावत्-पद से संग्रहित सूत्र प०-से ण भंते ! कि ओगाढा किरिया कज्जइ ? अणोगाढा किरिया कज्जइ? उ०-गोयमा ! ओगाढा किरिया कज्जइ, नो अणोगाढा किरिया कज्जइ । प०–से णं भंते ! कि अणंतरोगाढा किरिया कज्जइ? परंपरोगाढा किरिया कज्जइ? उ०-गोयमा ! अणंतरोगाढा किरिया कज्जइ, नो परंपरोगाढा किरिया कज्जइ । (क्रमशः)
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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