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लोक-प्रज्ञप्ति
तिर्यक् लोक : लोकान्त से ज्योतिष्कों का अन्तर
सूत्र ६४४-६४५
लोगताओ जोइसियाणं अन्तरं
लोकान्त से ज्योतिष्कों का अन्तर१४४. ५०-लोगताओ णं भंते ! केवइआए अबाहाए जोइसे ६४४. प्र०-हे भगवन् ! लोकान्त से कितने अन्तर पर ज्योतिष्क पण्णत्ते ?
कहे गये हैं ? उ०—गोयमा ! एक्कारस एक्कारसेहिं जोयणसएहि अबाहाए उ०-हे गौतम ! लोकान्त से इग्यारह सौ इग्यारह योजन
जोइसे पण्णत्ते', -जंबु. बक्ख. ७, सु. १६४ के अन्तर पर ज्योतिष्क कहे गये हैं । चंदाइच्चाइणं भूमिभागाओ उड्ढतं
चन्द्र-सूर्य आदि की भू-भाग से ऊँचाई१४५. ५०–ता कहं ते उच्चत्ते आहितेति बदेज्जा ?
६४५. प्र०-चन्द्र-सूर्य आदि की भूभाग से कितनी ऊँचाई कही
गई है; सो कहें ? उ०-तत्थ खलु इमाओ पणवीसं पडिवत्तिओ पण्णत्ताओ उ०-इस सम्बन्ध में ये पच्चीस प्रतिपत्तियाँ कही गई हैं तं जहा
यथा१. तत्थेगे एवमाहसु
(१) इनमें से कुछ पर-तीथिकों ने ऐसा कहा हैता एग जोयणसहस्सं सूरे उड्ढं उच्चत्ते णं दिवड्ढं चंदे, सूर्य एक हजार योजन ऊँचाई पर है, चन्द्र डेढ हजार योजन एगे एवमाहंसु,
ऊँचा है। २. एगे पुण एवमाहंसु
(२) कुछ पर-तीथिकों ने ऐसा कहा है-- ता दो जोयणसहस्साइं सूरे उड्ढं उच्चत्तेणं, अड्ढाति- सूर्य दो हजार योजन ऊँचा है, चन्द्र ढाई हजार योजन ज्जाइं चंदे, एगे एवमाहंसु,
ऊँचा है। ३. एगे पुण एवमाहंसु
(३) कुछ पर-तीथिकों ने ऐसा कहा हैता तिनि जोयणसहस्साई सूरे उड्ढे उच्चत्तेणं, अद्ध - सूर्य तीन हजार योजन ऊँचा है, चन्द्र साडे तीन हजार ढाई चंदे, एगे एवमाहंसु,
योजन ऊँचा है। ४. एगे पुण एवमाहंसु
(४) कुछ पर-तीथिकों ने ऐसा कहाता चत्तारि जोयणसहस्साई सूरे उड्ढं उच्चत्तेणं, अद्ध- सूर्य चार हजार योजन ऊँचा है, चन्द्र साडे चार हजार पंचमाइं चंदे, एगे एवमाहंसु,
योजन ऊँचा है।
१ (क) लोगताओ णं एक्कारसहि एक्कारेहिं जोयणसहि अबाहाए जोइसे पण्णत्ते ।
--सम. ११, सु. २ (ख) जीवा. प. ३, सु. १६५ । (ग) प०–ता लोअंताओ णं केवइयं अबाहाए जोइसे पण्णत्ते ? उ०-ता एक्कारस एक्कारे जोयणसए अबाहाए जोइसे पण्णत्ते ।
-सूरिय. पा. १८ सु. ६२ (घ) लोकान्त से इग्यारह सौ इग्यारह योजन के अन्तर पर जो ज्योतिष्क हैं वे स्थिर ज्योतिष्क है, क्योंकि इस प्रश्नोत्तर सूत्र
में ज्योतिष्कों की गति का कथन नहीं है। मनुष्य क्षेत्र के अन्तिम भाग से अर्थात् मनुष्य क्षेत्र के बाहर लोकान्त पर्थन्त स्थिर ज्योतिष्क हैं, मनुष्य क्षेत्र के बाहर लोकान्त पर्यन्त का क्षेत्र असंख्य योजन विस्तृत है, इसमें असंख्य स्थिर
ज्योतिष्कदेव हैं। गाहाओ
अंतो मणुम्सखेत्ते, हवंति चारोवगा य उववण्णा । पंचविहा जोइसिया, चंदासूरागहगणा य ।। तेण परं जे सेसा, चंदाइच्च-गह-तार-नक्खत्ता । नात्थि गई न वि चारो, अवट्ठिया ते मृणेयब्बा ।।
-जीवा. प. ३, उ.२, सू.१७७ गा. २१, २२.