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________________ १६४१-९४३ तिर्यक् लोक : देवादि द्वीप में ज्योतिषिक देव उ०- ता देवे णं दीवे असंखेज्जा चंदा पभासेंसु वा जावअसंखेज्जाओ तारागणकोडिकोडीओ सोभं सोभैंसु वा, एवं देवोदे समुद्दे - १. जागे दीवे, २. णागोदे समुद्दे, १. जक्खे दीवे, २. जक्खोदे समुद्दे. १. भूदी २. समु १. सयंभुरमणे दीवे, २. सयंभुरमणे समुद्दे, ' ससि जसा देवदीय सरिसाई ।" सूर. पा. १२. सु. १०१ जोइसियाणं अप्प - बहुत्तं— ४२. ५० - ता एएसि णं चंदिम-सूरिय-गह ताराणं कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा, बहुया वा, तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? उ०- ता चंदा थ सूराय एएणं दोवि तुल्ला, सव्वत्थोवा णक्खत्ता, संखिज्जगुणा गहा, खिजगुणा तारा - सूरिय. पा. १८, सु. १०० उ०- दोषमा इक्कारसहि इक्कीसेहि जोहि अवाहाए जोइस चारं चर, - जंबु. वक्ख. ४, सु. १६४ १ जीवा. पडि ३, उ. २, सु. १८५ । ३ (क) जम्बु बक्ख. ७, सु. १७२ । उ० – देव द्वीप में असंख्य चन्द्र प्रभासित होते - यावत्असंख्य कोटा कोटी तारागण सुशोभित होंगे । इसी प्रकार देवोद समुद्र है (१) नागद्वीप, (२) नागोद समुद्र, (२) यक्षद्वीप, (२) यक्षोद समुद्र, (१) भूतद्वीप (२) भूतोद समुद्र, (१) स्वयंभूरमण द्वीप, (२) स्वयंभूरमण समुद्र सबके ज्योतिक देव देवद्वीप के सदृश हैं। गणितानुयोग ज्योतिष्कों का अल्प-बहुव ९४२. प्र० - इन चन्द्र-सूर्य ग्रह नक्षण और ताराओं में कौन किससे अल्प है, बहुत है, तुल्य है और विशेषाधिक है ? - चन्द्र और सूर्य तुल्य है । उ० २ सबसे अल्प नक्षत्र है । ग्रह संख्येव गुण है। तारा संख्येय गुण है । मंदरपव्वयाओ जोइसियाणं अंतर मन्दर पर्वत से ज्योतिष्कों का अन्तर ४३. ५० - मंदरस्स णं भंते ! पव्वयस्स केवइयाए अबाहाए जोइस ९४३. प्र० - हे भगवन् ! मन्दरपर्वत से कितने अन्तर पर चारं चरइ ? ज्योतिष्क गति करते हैं ? ४४१ उ०- हे गौतम! इग्यारह सौ इकवीस योजन के अन्तर पर ज्योतिष्क गति करते हैं । चंद. पा. १६ सु. १०१ । (ख) चंद. पा. १८, सु. ६६ ॥ (ग) जीवा. पडि. ३, उ. २, सु. २०६ ॥ ४ (क) जम्बूद्दीने दी दीने मंदरस्स पम्ययस्त एक्कारसहि एक्कसीसेहि जोनसह अवाहाए जोइसेवा परंत - सम. ११, सु. ३ (ख) प० - ता मंदरस्स पव्वतस्स केवतियं अबाधाए जोइसे चारं चरइ ? उ०- ता एक्कारस एक्कवीसे जोयणसते अबाधाए जोइसे चारं चरति । यूरिय. पा. १० सु. १२ -- 7 (ग) प० - जम्बुदीवे णं भंते ! दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरथिमिल्लाओ चरिमंताओ केवइयं अत्राहाए जोइस चारं चरति ? उ०- गोपमा ! एक्कारसहि एक्वीहि जोपणसएहि अवाहाए जोइस वारं चरति एवं दक्षताओं पवत्विमिल्लाओ, उत्तरिलामो परिमंताओ एस्कारसहि जणसह अहए जो नारं चरति । जीवा पहि. १ . २ सु. १२५ (घ) इस प्रश्नोत्तर सूत्र में ज्योतिष्कों का जो अन्तर कहा गया हैं वह जम्बुद्वीप के मध्यभागवति मन्दर (मेरु) पर्वत की अपेक्षा से ही कहा गया है । इसी प्रकार धातकीखण्ड और पुष्करार्ध द्वीप के शेष चार मन्दर पर्वतों से भी इतने ही अन्तर पर ज्योतिष्क विमान हैं ।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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