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लोक-प्रज्ञप्ति
तिर्यक्लोक : पुष्करोद समुद्र में ज्योतिषिकदेव
सूत्र ६३६-६३७
(२) उ०-बावरि सूरिया तवेंसु वा, तति वा, तविस्संति
(२) प्र०- बहत्तर सूर्य तपाते थे तपाते हैं और तपाएँगे।
वा,
। उ०-छ महग्गहसहस्सा तिन्निसए य छत्तीसा चारं (३) ख०-छः हजार तीन सौ छत्तीस महाग्रह गति करत चरेसु वा, चरंति वा, चरिस्संति वा,
थे. गति करते हैं और गति करेंगे। (४) उ०-दोण्णि सोला णक्खत्तसहस्सा जोग जोएंसु वा, (४) उ०- सोलह हजार दो नक्षत्र योग करते थे, योग जोएंति वा, जोइस्संति वा,
करते हैं और योग करेंगे। (५) उ०-अडयालीस सयसहस्सा, बावीसं च सहस्सा दोण्णि (५) उ०- अड़तालीस लाख बाईस हजार दो सौ कोटा
य सया तारागणकोडिकोडीणं सोभं सोभेसु वा कोटी तारागण सुशोभित होते थे, सुशोभित होते और सुशोभित सोभंति वा सोभिस्संति वा,
होंगे। गाहाओ
गाथार्थबावरि च चंदा बावत्तरिमेव दिणकरादित्ता। पुष्करवरद्वीपार्ध में बहत्तर चन्द्र, बहत्तर सूर्य प्रकाश करते पुक्खरवरदीवड्ढे, चरंति एए पभासेंता ॥ हुए विचरते हैं । तिणि सया छत्तीसा, छच्च सहस्सा महग्गहाणं तु। छः हजार तीन सौ छत्तीस महाग्रह सोलह हजार दो नक्षत्र, णक्खत्ताणं तु भवे, सोलाई दुवे सहस्साई ॥ अडयालसय सहस्सा, बाबीसं खलु भवे सहस्साई। अड़तालीस लाख बाईस हजार दो सौ कोटाकोटी तारागण है। दो य सण पुक्खरद्ध, तारागण कोडिकोडीणं'।
-सूरिय. पा. १६, सु. १०० पुक्खरोदे समुद्दे जोइसिया देवा
पुष्करोद समुद्र में ज्योतिष्कदेव६३७. ५०–ता पुक्खरोदे णं समुद्दे
६३७. (१) प्र०—पुष्करोदसमुद्र में(१) केवइया चंदा पभासिसु वा, पभासिति बा, पभा- कितने चन्द्र प्रकाशित हुए हैं, प्रकाशित होते हैं और प्रकाशित सिस्संति वा?
होंगे? (२) केवइया सूरा विसु वा, तविति वा, तविस्संति (२) कितने सूर्य तपे, तपते हैं और तपेंगे ?
वा?
(३) कितने ग्रह गति युक्त रहे, गति युक्त हैं और गति युक्त
रहँगे?
(३) केवइया गहा चारं चरिसु वा, चारं चरंति वा,
चारं चरिस्संति वा? (४) केवइया णक्खत्ता जोगं जोएंसु वा, जोगं जोएंति
वा, जोगं जोइस्संति वा? (५) केवइया तारा सोभं सोभिसु वा, सोभं सोभंति
वा, सोभं सोभिस्संति वा ? उ०—(१) पुक्खरोदे णं समुद्दे
संखेज्जा चंदा पभासिसु वा, पभासिति वा, पभा-
सिस्संति वा, (२) संखेज्जा सूरा तविसु वा, तविति वा, तविस्संति
वा, (३) संखेज्जा गहा चारं चरिंसु वा, चारं चरंति वा,
चारं चरिस्संति वा,
(४) कितने नक्षत्र (चन्द्र या सूर्य) के साथ योग युक्त रहे, योग युक्त हैं और योग युक्त रहेंगे?
(५) कितने तारागण शोभा से सुशोभित हुए, शोभा से सुशोभित हैं और शोभा से सुशोभित होंगे?
(१) उ०—पुष्करोद समद मेंसंख्येय चन्द्र प्रकाशित हुए प्रकाशित है और प्रकाशित
होंगे।
(२) संख्येय सूर्य तपे, तपते हैं और तपेंगे।
(३) संख्येय ग्रह गति युक्त रहे, गति युक्त हैं और गति युक्त रहेंगे।
१ (क) चंद पा. १६, सु. १०० ।
(ग) भग. स. ६, उ. २, सु.५।
(ख) जीवा. पडि. ३, उ. २, सु, १७६ । (घ) सम. ७२, सु. ५।