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________________ ४३६ लोक-प्रज्ञप्ति तिर्यक् लोक : पुष्करवरद्वीप में ज्योतिषिदेव सूत्र ६३४-६३५ (२) ५०-केवइया सूरा विसु वा, तवेति वा, तविस्संति वा? (२) प्र०-कितने सूर्य तपाते थे, तपाते हैं और तपाते होगे? (३) ५०-केवइया गहा चारं चरिंसु वा, चरंति वा, चरि- (३) प्र०-कितने ग्रह गति करते थे, गति करते हैं और स्संति वा? गति करेंगे? (४) प०-केवइया णक्खत्ता जोगं जोइंसु वा, जोएंति वा, (४) प्र०—कितने नक्षत्र योग करते थे, योग करते हैं और जोइस्संति वा? __योग करेंगे? (५) ५०--केवइया तारागण कोडि कोडीओ सोभं सोभेसु वा (५) प्र०—कितने कोटाकोटी तारागण सुशोभित होते थे, सोभंति वा, सोभिस्संति वा ? सुशोभित होते हैं और सुशोभित होंगे? (१) उ०-ता कालोयणे णं समुद्दे (१) उ०-कालोदसमुद्र मेंबायालीसं चंदा पभासेंसु वा पभासिति वा, पभा- बियालीस चन्द्र प्रभासित होते थे, प्रभासित होते हैं और सिस्संति वा, प्रभासित होंगे। (२) उ०-बायालीसं सूरा तवेंसु वा, तति वा, तविस्संति वा, (२) उ०-बियालीस सूर्य तपाते थे, तपाते हैं और तपाएँगे। (३) उ०—तिन्नि सहस्सा छच्च छन्नउया महगहसया चारं (३) उ०—तीन हजार छ: सौ छिनवे महाग्रह गति करते चरिंसु वा, चरंति वा, चरिस्संति वा, थे; गति करते हैं और गति करेंगे। (४) उ०-एक्कारस छावत्तरा णक्खत्तसग जोगं जोइंसु वा, (४) उ०—इग्यारह सौ छिहत्तर नक्षत्र योग करते थे, योग जोएंति वा, जोइस्संति वा, करते हैं और योग करेंगे। (५) उ०-अट्ठावीसं सयसहस्साइं, बारस सहस्साई नव य (५) उ०-अट्ठावीस लाख बारह हजार नौ सौ कोटाकोटी सयाइं पण्णासा तारागण कोडिकोडीओ सोभं तारागण सुशोभित होते थे, सुशोभित होते हैं और सुशोभित सोभेसु वा सोभंति वा, सोभिस्संति वा, होंगे। गाहाओ गाथार्थबायालीसं चंदा, बायालीसं च दिणकरादित्ता । कालोद समुद्र में वियालीस चन्द्र, बियालीस सूर्य कालोदहिमि एए, चरंति संबद्धलेसागा ॥ इग्यारह सौ छिहत्तर नक्षत्र, तीन हजार छः सौ छिनवे णक्खत्तसहस्सं, एगमिव छावत्तरं ज सतमण्णे। महाग्रह और छच्चसया छण्णउया, महग्गह, तिण्णि य सहस्सा॥ अदावीसं सयसहस्सं, बारस य सहस्साई। अट्ठावीस लाख बारह हजार नौ सौ पचास कोटा कोटी णव य सया पण्णासा, तारागण कोडिकोडीणं'॥ तारागण हैं। -सूरिय० पा० १६, सु० १०० पुक्खरवरदीवे जोईसिय देवा पुष्करवरद्वीप में ज्योतिष्क देव६३५. (१) ५०–ता पुक्खरवरे णं दीवे ६३५. (१) प्र०-पुष्करवरद्वीप मेंकेवइया चंदा पभासेंसु बा, पभासिति वा, पभा- कितने चन्द्र प्रभासित होते थे, प्रभासित होते हैं और प्रभासिस्संति वा ? सित होंगे? (२) ५०-केवइया सूरा विसु वा, तति वा, तविस्संति वा? (२) प्र०—कितने सूर्य तपाते थे, तपाते हैं और तपाएँगे? (३) प०-केवइया गहा चारं चरिंसु वा, चरंति वा, चरि- (३) प्र०-कितने ग्रह गति करते थे, गति करते हैं और स्संति वा? __गति करेंगे? (४) ५०-केवइया लक्खत्ता जोगं जोइंसु वा, जोएंति वा (४) प्र०—कितने नक्षत्र योग करते थे, योग करते हैं और जोइस्संति वा? योग करेंगे? १ (क) चंद पा. १६, सु. १००। (ग) भग. स. ६, उ. २, सु. ४ । (ख) जीवा. पडि. ३, उ. २, सु. १७५ । (घ) सम. ४२, सु. ४ ।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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