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________________ ३५० लोक-प्रज्ञप्ति तिर्यक् लोक : लवणसमुद्र वर्णन सूत्र ६६४-६६७ तं चेव पमाणं जं गोथूभस्स । णवरं-सव्वरयणामए गोस्तूप पर्वत का जितना प्रमाण है उतना ही इस पर्वत का अच्छे-जाव-निरवसेसं जाव सिहासणं सपरिवारं। प्रमाण है । विशेष यह है कि पूरा पर्वत सर्व रत्नमय है स्वच्छ है -यावत्-सपरिवार सिंहासन का सम्पूर्ण वर्णन है। अट्ठो-से बहुई उप्पलाई कक्कोडप्पभाई सेसं तं चेव। नामहेतु-अनेक उत्पल कर्कोटक जैसी प्रभावाले हैं, शेष णवरि कक्कोडगपव्वयस्स उत्तरपुरस्थिमेणं । एवं तं वर्णन पूर्ववत् है। विशेष यह है कि कर्कोटक पर्वत के उत्तर पूर्व चेव सव्वं । में (कर्कोटका नाम की राजधानी है) इस प्रकार सर्व वर्णन पूर्ववत् है। ६६५. (२) कद्दमस्स वि सो चेव गमओ अपरिसेसो । नवरं- ६६५. (२) कर्दमक (अनुवेलंधर नागराज) का सम्पूर्ण वर्णन दाहिणपुरथिमेणं आवासो, विज्जुप्पभा रायहाणी दाहिण- कर्कोटक जैसा है। विशेष यह है कि कर्दमक आवासपर्वत दक्षिण पुरथिमेणं । पूर्व में है। विद्युत्प्रभा राजधानी दक्षिण-पूर्व में है। (३) कइलासे वि एवं चेव । नवरं-दाहिण-पच्चत्थिमेणं (३) कैलाश (अनुवेलंधर नागराज) का वर्णन भी इसी प्रकार कइलासा वि रायहाणी ताए चेव दिसाए । है। विशेष यह है कि-कैलाश (आवासपर्वत) दक्षिण-पश्चिम में है । कैलाशा राजधानी भी उसी दिशा में है । (४) अरुणप्पभे वि उत्तरपच्चत्थिमेणं, रायहाणी वि ताए (४) अरुणप्रभ आवासपर्वत भी उत्तर-पश्चिम में है। चेव दिसाए। राजधानी भी उसी दिशा में है। चत्तारि वि एगप्पमाणा सब्बरयणामया य । चारों पर्वत एक समान प्रमाण वाले हैं और सर्वरत्नमय हैं। -जीवा. पडि. ३, उ. २, सु. १६० जंबुद्दीवचरमंताओ गोत्थूभाइचरमंताणमंतर- जम्बूद्वीप के चरमान्त से गोस्तूपादि पर्वतों के चरमान्तों का अन्तर६६६. जंबुद्दीवस्स णं दीवस्स पुरथिमिल्लाओ चरमंताओ १. ६४६. जम्बूद्वीप द्वीप के पूर्वी चरमान्त से गोस्तुप आवासपर्वत के गोथभस्स णं आवासपब्वयस्स पच्चथिमिल्ले चरमंते, एस गं पश्चिमी चरमान्त का व्यवहित अन्तर बियालीस हजार योजन बायालीसं जोयणसहस्साई अबाहाए अंतरे पण्णत्ते, का कहा गया है। एवं चउद्दिमि पि, इसी प्रकार चारों दिशाओं में, २. दोभासे, इसी प्रकार जम्बूद्वीप के दक्षिणी चरमान्त से दकावभास आवासपर्वत के उत्तरी चरमान्त का, ३. संखे, जम्बूद्वीप के पश्चमी चरमान्त से शंख आवासपर्वत के पूर्वी चरमान्त का, ४. दगसीमे य । जम्बूद्वीप के उत्तरी चरमान्त से दकसीम आवासपर्वत के दक्षिणी चरमान्त का व्यवहित अन्तर बियालीस हजार योजन -सम. ४२, सु. २-३ का है। ६६७. जंबुद्दीवस्स णं दीवस्स पुरथिमिल्लाओ परमंताओ गोथुभस्स ६६७. जम्बूद्वीप द्वीप के पूर्वी चरमान्त से गोस्तूप आवासपर्वत के णं आवासपव्वयस्स पुरथिमिल्ले चरमंते, एस णं तेयालीसं पूर्वी चरमान्त का व्यवहित अन्तर तियालीस हजार योजन का जोयणसहस्साई अबाहाए अंतरे पण्णते, कहा गया है। एवं चउद्दिसि पि, इसी प्रकार चारों दिशाओं में, २. दोभासे, इसी प्रकार जम्बूद्वीप के दक्षिणी चरमान्त से दकावभास आवासपर्वत के दक्षिणी चरमान्त का ३. संखे, जम्बूद्वीप के पश्चिमी चरमान्त से शंख आवासपर्वत के पश्चिमी चरमान्त का, ४. दगसीमे य । जम्बूद्वीप के उत्तरी चरमान्त से दकसीम आवासपर्वत के उत्तरी चरमान्त का व्यवहित अन्तर तियालीस हजार योजनः -सम. ४३, सु, ३, ४ का है।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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