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________________ गणितानुयोग : प्रस्तावना २१ हैं । अंगुल के असंख्यातवाँ भाग प्रमाण ज्यामितीय है, साथ ही सूत्र ५०१, पृ० २६८उपमा मान के आधार पर दिया प्रतीत होता है (?) यहाँ कोस यहाँ कुण्ड का आयाम विष्कम्भ ४८० योजन है। परिधि शब्द का भी उल्लेख है। १५०० योजन से कुछ कम बतलायी है। सूत्र ४३३, पृ० २७१ ___ यहाँ परिधि-४८०४ ३.१६२२७- १५१७८८६६० होनी यहाँ सिद्धायतनकूट मूल में ५०० योजन चौड़ा है और चाहिए। उसकी परिधि मूल में १५८१ योजन से कुछ अधिक बतलाई गई अतः यहाँ शोध का विषय है। है। यहाँ ५००४३.१६२२७=१५८१.१३५ योजन प्राप्त होती सूत्र ५०३, पृ० २६६-. है। अर्थात् यहाँ भी अनुमानतः 7 का मान V१० अथवा यहाँ आयाम विष्कम्भ ८ योजन है। इसकी परिधि २५ ३.१६२२७ दिया गया है । अन्य प्रमाण भी दृष्टव्य हैं। योजन से कुछ अधिक दी गयी है। इससे T का V१० का मान • सूत्र ४६४, पृ० २८३ लेने पर २५२६८१६ योजन परिधि प्राप्त होती है। जो २५ से यहाँ सिद्धायतन कूट मूल में ६ योजन और १ कोस चौड़ा 3 कुछ अधिक है। ___ इसी प्रकार सूत्र ५०८, ५१०, ५१३, ५१४ दृष्टव्य हैं । इन - है । अर्थात् ६-योजन अथवा ६.२५ योजन है, जिसकी परिधि = सभी में ग का मान /१० लेकर परिधि को अनुमान रूप से उल्लिखित किया गया है। ६.२५ X ३.१६२२७=१६.७६४१८७५ है। सूत्र ५२१, पृ० ३०४इस प्रमाण को २२ योजन से कुछ कम की परिधि वाला इस सूत्र में पल्योपम स्थिति का उल्लेख है। । कहा गया है । इसी प्रकार अन्य दत्त प्रमाण दृष्टव्य हैं। सूत्र ५२२, पृ० ३०४सूत्र ४६६, पृ० २८४-२८५ -- यहाँ पल्योपम स्थिति का उल्लेख है । इसी प्रकार सूत्र ५२३ यहाँ अतिसम शब्द ज्यामितीय है। भूभाग का मध्य भी में भी उल्लेख है। : ज्यामितीय है। कोस, और धनुष शब्द भी गणितीय हैं। सूत्र ५२५, पृ० ३०५-- सूत्र ४६७, पृ० २८५ यहाँ संख्याएँ दाशमिक संकेतना में हैं । योजन, कोस, धनुष, यहाँ दाशमिक संकेतना में संख्याएँ उल्लिखित हैं। गणितीय शब्दों का उपयोग हैं। गवाक्षकटक (नालियों के समूह) सूत्र ४७१, पृ० २८६ दृष्टव्य है । अतिसम तथा स्तूपिका विचारणीय है। यहाँ पल्योपम स्थिति का उल्लेख है। असंख्य द्वीप समद्रों सूत्र ५२६, पृ० ३०५का भी उल्लेख है। इस प्रकार इस सूत्र में भी संख्याएँ दाशमिक संकेतना में द्रष्टव्य हैं। : सूत्र ४८७, ४८८, पृ० २६३-- पल्योपम स्थिति का भी उल्लेख है । सूत्र ५२६ एवं ५३१ में यहाँ संख्याएँ दाशमिक संकेतना में हैं। भी यह दृष्टव्य है। - सूत्र ४६७, पृ० २६६--- सूत्र ५३५, ५३७ पृ० ३०६, ३१०यहाँ अनेक प्रकार के चित्रों का उल्लेख है। प्रतिरूप शब्द यहाँ दाशमिक संकेतना में संख्या निरूपण है। : ज्यामितीय है। सूत्र ५४३ पृ० ३११.। सूत्र ४६८, ४६६ पृ० २६६, २६७ यहाँ परिधि के सम्बन्ध में, "तं तिगुणं सविसेस परिक्खेवेणं" यहाँ संख्याएँ दाशमिक संकेतना में उल्लिखित हैं। कहा गया है जिससे ज्ञात होता है कि परिधि का मान अनुमान : सूत्र ५००, पृ० २६७ रूप से यहाँ तीन से कुछ अधिक लिया गया है। कुंड की लम्बाई चौड़ाई २४० योजन है । परिधि ७५६ योजन यहाँ योजन, कोस, धनुष का उपयोग है। । दी गयी है। यहाँ परिधि = २४०४३.१६२२७-७५८.९४४८० । लाख के लिए "सय सहस्स" ही उपयोग में लाया गया है। । होती है । इस मान को अनुमानतः ७५६ ले लिया गया है। अर्थात् संख्याएँ दाशमिक संकेतना में ही हैं । 'कोडी' शब्द का भी उपयोग V१० को रूप लिया है। हुआ है।
SR No.090173
Book TitleGanitanuyoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1986
Total Pages1024
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Mathematics, Agam, Canon, Maths, & agam_related_other_literature
File Size34 MB
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